पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७०६

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'राजाधिराज माधवाचाय॑ टीकायामुक्त' कह के उसने माधवाचार्य के किसी ग्रंथ की टीका से उद्धृत किया है यह संवत और नामादिक प्राचीन इतिहास के उपयोगी जान कर यहाँ प्रकाश किये जाते हैं। सत्ययुग में - कृष्णातीर में अमरेश्वरलिंग, पुष्करतीर्थ, बौद्धपत्तनपीठ । राज-कृतसंज्ञ कृतपुत्र कृतदेव त्यागी मेन, मुचकुन्द, भैरवनंद, अंधक, हिरण्यकशिपु, प्रहलाद, विरोचन, बलि, वाणासुर, गमासुर, कपिलभद्र, निर्घोषा, मान्धाता, वेणु। कश्यप, सूर्य, मनु, महामनु, तक्षक, अनुरञ्जन, विश्वावसु. विमना, प्रद्युम्न, धनञ्जय, महीदास, यौवनाश्व, मान्धाता, मुचकुन्द, पुरूरवा, बलि, सुकान्ति, वीर । त्रेता में -- नैमिषारण्य तीर्थ, सोमेश्वर लिंग, जालंधर पीठ । राजा-कद्, पुरूरवा, प्रीषध, वेण्य, नैषध, त्रिशुंग, मरीचि, इक्षु, मनु, दिलीप, रघु, त्रिशंकु, हरिश्चंद्र, रोहिताश्व, धुंधुमार, जन्हु, सगर, भगीरथ, वेणु, वत्स, भूपाल, अज, अतिथि, नल, नील, नाम, पुंडरीक, क्षेमक, शतधन्वा, शतानीक, पारिजातक, दलनाभ, पुष्पसेन, अजपाल, दशरथ, श्रीराम, लवकुश, अंगस्वामी, अग्निवर्ण । द्वापर में -कुरुक्षेत्र तीर्थ, केदारेश्वरलिंग, अवंती पत्तन । राजा - भर्तृहरि, पृथु, अनुविरक्त, अव्यक्त, फेन, इंद्र, ब्रह्मा, अत्रि, सोम, बुद्ध, धनुर्जव, शतनु, गव्य, गवाक्ष, असमञ्जस, निर्घोष, प्रजापति अंकुर, उपवीर, अनुसंधि, जेष्ठभरत, कनिष्ठभरत, धर्मध्वज, शांतनु, पांडु, नरवाहन, क्षेमक, ययाति, क्षान्त, चित्र, पार्थ, अर्जुन, अभिमन्यु, परीक्षित, जन्मेजय । कलियुग में - गंगा तीर्थ, कालीदेवता, प्रतिष्ठानपुरनगर । कल्कि अवतार इस ने अलग तीन चाल पर यहाँ लिखा है और उन के परस्पर जन्मदिन, पिता माता के सब अलग अलग हैं । कलियुग के आरंभ से ३०४४ वर्ष के भीतर युधिष्ठिर, परीक्षित, जन्मेजय, वत्सराज, क्षेमसिंह, सोमसिंह, राणकण्य, अंनुसेन, रामभद्र, भरतसिंह, पठाणसिंह, विक्रमसिंह, नरसिंह, आदित्यसिंह, ब्रह्मसिंह, वसुधासिह, हर्षसेन, भर्तृहरि । ३०४४ में विक्रम का राज्य, ३१७९ में शालिवाहन का राज्य, फिर सूर्यसेन, शक्तिसिंह, खगसेन, सुखसिंह, मम्मलसेन, मुञ्ज, भरत, श्रीपाल, जयानंद, रामचंद्र, छत्रचंद्र, अनूप सिंह, तुम्वरपाल. ननश्वाहाण, रणवादी, शालपाल, कीर्तिपाल, अनंगपाल, विशालाक्ष, सोमदेव, बलदेव, नागदेव, कोर्तिदेव, पृथ्वीपति इतने प्रसिद्ध राजा हुए । फिर म्लेच्छों का राज्य आरंभ हुआ । सिकंदरशाह ने विश्वेश्वर का अपराध किया । इस के पीछे मुसलमानों का वर्णन है । फिर कालनिर्णय यों किया है व्यासादिक का काल ५१५४ वर्ष कलियुग लगने के पूर्व । श्री कृष्णावतार द्वापर की सध्या प्रारंभ, कलियुग के पूर्व क्योंकि कलि का काल होते भी उसने प्राबल्य नहीं पाया था । क्षेमक तक युधिष्ठिर का वंश, सुमित्र तक इक्ष्वाकु का वंश और रिपुञ्जय तक जरासंध का वंश एक सहस्र वर्ष कलियुग बीते समाप्त हो चुका था । फिर १३८ वर्ष प्रद्योतनों का राज्य गत कलि ११३८ वर्ष । शिशुनाग वंश का राज्य ३६२ वर्ष ग. क. १५०० वर्ष । फिर शुद्ध क्षत्रियों का राज्य छूटकर नंदादिकों का राज्य हुआ । नंदों का राज्य १३७ वर्ष ग. क. ११३७ वर्ष । फिर कण्ववंश के राजा उन का राज्य ५५७ वर्ष ग. क. २१९४ वर्ष । फिर आंध्रराजा का ४५६ वर्ष ग. क. २६५० वर्ष । फिर सात आमीर और दस गर्दभिल राजों का राज्य ३१४ वर्ष ग. क. ३०४४ वर्ष । फिर विक्रमों का राज्य १३५ वर्ष ग. क. ३१२९ वर्ष । अंत के विक्रम को शालिवाहन ने मारा, फिर शालिवाहन वंश ने १५५ वर्ष राज्य किया । शेष पुत्र के वंशने १३९, शक्तिकुमार के वंश ने ११४. शूद्रक ने ९५ और इंदुकिरीटी ने ४८ । सब ४३७ वर्ष हुए । फिर ३३ वर्ष तोमर, ३४ वर्ष चिंतामणि, ३० वर्ष राम और ३६ वर्ष हेमादि राजा ने राज्य किया । सब १३३ वर्ष हुए । तव शक ५७० था। उसी के पीछे तुरुष्कलोगों का प्रवेश होने लगा । फिर भारतवंश के खंडराज हुए । फिर चालुक्य वंश ने ४४४ वर्ष, पल्लोमदत्त ५५ वर्ष, गौड़राज्य २०. भिल्लराज ५० वर्ष राज्य तब शाके १००६ वर्ष कलि ४१८५ । फिर यादवराजे २२७ वर्ष तब शक १२३३ वर्ष । इस वंश के देवगिरि के अंतिम राजा रामदेव को शक १२१७ में अल्लाउद्दीन ने जीत कर राज्य फेर दिया, राम देव ने ५६ वर्ष और राज्य किया फिर तुरकों का राज्य ३३४ वर्ष हुआ । भारतेन्दु समग्र ६६२