पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

शिवाजी शिवनेरी किले में जनमा और तब उस का बाप करनाटक में रहता था, इस से उसने छोटेपन में पूना प्रांत में दादोजी कोणदेव से शिक्षा पाई थी । छोटेहीपन से इस में वीरता के चिन्ह और लड़ाई के उत्साह प्रगट थे। उन्नीस बरस की अवस्था में तारन का किला जीत लिया और दादोजी कोणदेव के मरने पर पूना के जिले का सब काम अपने हाथ ले लिया । बीजापुर के पुरंदर और दूसरे दूसरे कई किले अपने अधिकार में कर के उस पर संतोष न करके दिल्ली के बादशाही देशों में भी लूट कर इसने अपना बल, सेना और धन बढ़ाया । मालव नाम की सूर जाति के लोग इस की सेना में बहुत थे और सन १६४८ ई. में बीजापुर के बादशाह से इस के कल्याण की सूबेदारी लिया, परंतु जब बादशाह ने उसका बल बढ़ते देखा तो सन् १६५९ में अपने अफजल खाँ नामक सरदार को उससे लड़ने को भेजा, पर शिवाजी ने धोखा दे कर इस सरदार को मार डाला । सन् १६६४ ई. में शिवाजी का बाप मर गया और तब से उसने अपना पद राजा रख कर अपने नाम की एक टकसाल जारी किया। यह पहले राजगढ़ और फिर रायगढ़ के किले में रहता था । उस ने अपने बहुत से किले बनाये थे, जिन में राजगढ़ और प्रतापगढ़ ये दो मुख्य थे । सन् १९५६ ई. में सामराज पंत को शिवाजी ने पेशवा नियत किया । बीजापुर का बादशाह तो शिवाजी को दमन करने में समर्थ न हुआ, औरंगजेब ने राजा जसवंत सिंह को बहुत सी फौज दे कर शिवा जी को जीतने को भेजा, पर शिवाजी ने बादशाह के आधीन रहना स्वीकार कर के राजा से मेल कर लिया । और सन् १६६६ में आप भी दिल्ली गया. पर वहाँ उस का यथेष्ट आदर न हुआ, इस से उसने बादशाह को कटु वचन कहा, जिससे थोड़े दिन तक कैद में रह कर फिर अपने बेटे समेत दक्खिन भाग गया । कुछ दिन पीछे औरंगजेब ने उस को राजा का खिताब दिया और उसी अधिकार से उस ने दक्खिन में सन् १६७० में चौथ और सरदेशमुखी नाम के दो कर स्थापन किये । सन् १६६५ में इस ने पानी के राह से मालाबार पर चढ़ाई की और दो बेर सूरत लूटा । जब यह दूसरे बेर सूरत लूटने जाता था तब १५००० फौज इसके साथ थी और राह में हुबली नामक शहर लूटने से बहुत सा धन इस के हाथ आया और फिर तो वह यहाँ तक बलवान हो गया था कि जो अपने भाई बेंकों जी से बाप की जागीर बँटवाने और बीजापुर का इलाका लूटने को कर नाटक की तरफ गया था तो इसके साथ ४००० पैदल और ३०००० सवार थे । सामराज पंत से पेशवाई ले कर मोरोपंत पिंजले को उस स्थान पर नियत किया और प्रतापराव गूजर इस का मुख्य सेनापति था, जिस के मरने पर हंबीर राव मोहिता उसी काम पर हुआ । सन् १६७६ में रामगढ़ में शिवाजी का विधिपूर्वक राज्याभिषेक हुआ और तब इसने आठ अपने मुख्य प्रधान रखे थे । पेशवापंत, अमात्य, पंतसचिव, मंत्री, सेनापति, सुमंत, न्यायाधीश और पंडितराव, यही आठ पद उस ने नियुक्त किये थे और अपने जीते हुए देशों का काम आकाजी सोनदेव के अधिकार में दिया । जिस समय सब कोंकन और पूना का इलाका और करनाटक और दूसरे देशों में भी कुछ पृथ्वी इस के अधीन थी उस समय सन् १६८० ई. में संभाजी और राजाराम नाम के दो पुत्र छोड़ कर तिरपन वर्ष की अवस्था में यह परलोक सिधारा । शिवाजी के मरने के पीछे तेईस वर्ष की अवस्था में संभाजी गद्दी पर बैठा, पर यह ऐसा क्रूर और दुर्व्यसनी था कि इस से सब लोग दुखी थे । इस ने अपने छोटे भाई राजाराम की मा को मार डाला और सब पुराने कारबारियों को निकाल कर कलूसा नामक कनौजिया ब्राहमण को सब राजकाज सौंप दिया । इस की दुष्टता से इस के पिता का सब प्रबंध बिगड़ गया और सब सर्दार इस के अशुभ-चिंतक हो गये और यहां तक कि सन् १८८९ ई० में जब यह संगमेश्वर की ओर शिकार खेलने गया था तो इस को मुगलों ने पकड़ कर औरंगजेब की आज्ञा से कलूसा ब्राहमण समेत तुलापुर मार डाला । इस का पुत्र शिवाजी जिस को साइजी भी कहते हैं. औरंगजेब की कैद में था, इस से इस का सौतेला माई राजाराम गद्दी पर बैठा । इस ने सितारा में अपनी राजधानी स्थापन किया और पंत प्रतिनिधि नाम का एक नया पद नियुक्त किया और बड़े भाई के बिगाड़े हुए सब प्रबंधों को नए सिरे से संवारा । यह १७०० ई में मरा और फिर आठ वर्ष तक इस की स्त्री ताराबाई ने अपने पुत्र शिवाजी को गद्दी पर बिठा कर उस के नाम से राज्य भारतेन्दु समग्र ६६४