पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७१३

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ज्योतिष, गणित आदि ईश्वर जाने कितनी विद्याओं का पंडित बखान गए । नवाब साहिब ने कहा कि हम ने और रईसों की तरह अपनी उमर खेल कूद में नहीं गंवाई वरन लड़कपन ही से विद्या के उपार्जन में चित्त लगाया और पूरे पंडित और कवि हुए । इस के सिवाय नवाब साहिब ने बहुत से राजभक्ति के वाक्य भी कहे । वाइसराय ने उत्तर दिया कि हम आप की अंगरेजी विद्या पर इतना मुबारकबाद नहीं देते जितना अँगरेजों के समान आप का चित्त होने के लिये । फिर नवाब साहिब ने कहा कि मैंने इस भारी अवसर के वर्णन में अरबी और फारसी का एक पद्य ग्रंथ बनाया है जिसे मैं चाहता हूँ कि किसी समय श्रीयुत को सुनाऊँ । श्रीयुत ने जवाब दिया कि मुझे भी कविता का बड़ा अनुराग है और मैं आप सा एक भाई-कवि (Brother-poet) देख कर बहुत प्रसन्न हुआ, और आप की कविता सुनने के लिये कोई अवकाश का समय निकालूंगा । २९ तारीख को सब के अंत में महारानी तंजौर वाइसराय से मुलाकात को आई । ये तास का सब वस्त्र पहने थी और मुंह पर तास का नकाब पड़ा हुआ था । इस के सिवाय उन के हाथ पांव दस्ताने और मोजे से ऐसे ढके थे कि सब के जी में उन्हें देखने की इच्छा ही रह गई। महारानी के साथ में उन के पति राजा सखाराम साहिब और दो लड़कों के सिवाय उन की अनुवादक मिसेज फर्थ भी थीं । महारानी ने पहले आकर वाइसराय से हाथ मिलाया और अपनी कुर्सी पर बैठ गई । श्रीयुत वाइसराय ने उन के दिल्ली आने पर अपनी प्रसन्नता प्रगट की और पूछा कि आप को इतनी भारी यात्रा में अधिक कष्ट तो नहीं हुआ ? महारानी अपनी भाषा की बोलचाल में बेगम भूपाल की तरह चतुर न थीं. इस लिये जियादा बातचीत मिसेज फर्थ से हुई. जिन्हें श्रीयुत ने प्रसन्न हो कर "मनभावनी अनुवादक कहा । वाइसराय की किसी बात के उत्तर में एक बार महारानी के मुंह से "वस" निकल गया, जिस पर श्रीयुत ने बड़ा हर्ष प्रगट किया कि महारानी अँगरेजी भी बोल सकती है. पर अनुवादक मेम साहिब ने कहा कि वे अंगरेजी में दो चार शब्द से अधिक नहीं जानतीं । इस वर्णन के अंत मेंयह लिखना अवश्य है कि श्रीयुत वाइसराय लोगों से इतनी मनोहर रीति पर बातचीत करते थे जिस से सब मगन हो जाते थे और ऐसा समझते थे कि वाइसराय ने हमारा सबसे बढ़ कर आदर सत्कार किया । भेंट होने के समय श्रीयुत ने हर एक से कहा कि आप से दोस्ती कर के हम अत्यंत प्रसन्न हुए और तगमा पहिनाने के समय भी बड़े स्नेह से उन की पीठ पर हाथ रख कर बात की । १ जनवरी को दरबार का महोत्सव हुआ। यह दरबार, जो हिंदुस्तान के इतिहास में सदा प्रसिद्ध रहेगा, एक बड़े भारी मैदान में नगर से पांच मील पर हुआ था । बीच में श्रीयुत वाइसराय का षटकोण चबूतरा था, जिसकी गुंबदनुमा छत पर लाल कपड़ा चढ़ना और सुनहला रुपहला तथा शीशे का काम बना था । कंगुरे के ऊपर कलसे की जगह श्रीमती राजराजेश्वरी का सुनहला मुकुट लगा था । इस चबूतरे पर श्रीयुत अपने राजसिंहासन में सुशोभित हुए थे । उन के बगल में एक कुर्सी पर लेडी साहिब बैठी थीं और ठीक पीछे सवास लोग हाथों में चंबर लिये और श्रीयुत के ऊपर कारचोबी छत्र लगाए खड़े थे । वाइसराय के सिंहासन के दोनों तरफ दो पेज (दामन बरदान) जिन में एक श्रीयुत महाराज जबू का अत्यंत सुंदर सब से छोटा राजकुमार और दूसरा कर्नल बर्न का पुत्र था, खड़े थे और उन के दहने बाएँ और पीछे मुसाहिब और सेक्रेटरी लोग अपने अपने स्थानों पर खड़े थे । बाइसराय के इस चबूतरे के ठीक सामने कुछ दूर पर उस से नीच एक अचंद्राकार चबूतरा था, जिस पर शासनाधिकारी राजा लोग और उनके मुसाहिब, मदरास और बंबई के गवरनर, पंजाब, बंगाल और पश्चिमोत्तर देश के लेफटिनेंट गवरनर, और हिंदुस्तान के कमांडरइनचीफ अपने अपने अधिकारियों समेत सुशोभित थे । इस चबूतरे की छत बहुत सुंदर नीले रंग के साटन की थी, जिसके आगे लहरियादार छज्जा बहुत सजीला लगा था । लहरिये के बीच बीच में सुनहले काम के चाँद तारे बने थे । राजाओं की कुर्सियां भी नीली साटन से मढ़ी थीं और हर एक के सामने वे अंडे गड़े थे जो उन्हें वाइसराय ने दिये थे और पीछे अधिकारियों की कुर्सियां लगी थीं, जिन पर भी नीली साटन चढ़ी थी । हर एक राजा के साथ एक एक पोलिटिकल अफसर भी था । इन के सिवाय गवर्नमेंट के भारी भारी अधिकारी भी यहीं बैठे थे । राजा लोग अपने अपने प्रांतों के अनुसार बैठाए गए थे. जिस से ऊपर नीचे बैठने का बखेड़ा बिल्कुल निकल गया था । सब मिलाकर तिरसठ शासनाधिकारी राजाओं को इस चबूतरे पर जगह मिली थी. जिनके नाम नीचे लिखे हैं :- दिल्ली दरबार दर्पण ६६९