पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७१४

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महाराज अजयगढ़, बड़ौदा, बिजावर, भरतपुर, नरखारी, दतिया, ग्वालियर, इंदौर, जयपुर, जंबू, जोधपुर, करौली, किशुनगढ़, पन्ना, मैसूर, रीवा, उछा, महाराना उदयपुर. महाराव राजा अलवर, बूंदी, महाराज राना झलावर, राना धौलपुर, राजा बिलासपुर, बमरा, बिरोदा, चवा, छतरपुर, देवास, धार, फरीदकोट, जींद. खरोंद, कूचविहार. मंडी. नाभा, नाहन, राजपीपला, रतलाम, समथर, सुकेत. टिहरी, राव जिगनी, टोरी, नवाब टोंक, पटौदी, मलेरकोटला, लुहारू, जूनागढ़, जौरा, दुलाना, बहावलपुर, जागीरदार अलीपुरा, बेगम भूपाल. निज़ाम हैदराबाद, सरदार कलसिया, ठाकुर साहिब भावनगर. मुर्वी, पिपलोदा, जागीरदार पालदेव, मीर खैरपुर, महंत कोंदका, नंदगाँव और जाम नवानगर । वाइसराय के सिंहासन के पीछे. परंतु राजसी चबूतरे की अपेक्षा उस से अधिक पास, धनुषखंड के आकार की दो श्रेणियाँ चबूतरों की और बनी थीं जो दस भागों में बांट दी गई थीं । इन पर आगे की तरफ घोड़ी सी कुर्सियाँ और पीछे सीढ़ीनुमा बेंचें लगी थीं. जिन पर नीला कपड़ा मढ़ा था । यहाँ ऐसे राजाओं को जिन्हें शासन का अधिकार नहीं है और दूसरे सरदारों, रईसों, समाचारपत्रों के संपादकों और यूरोपियन तथा हिंदुस्तानी अधिकारियों को, जो गवर्नमेंट के नेवते में आये थे या जिन्हें तमाशा देखने के लिये टिकट मिले थे, बैठने की जगह दी गई थी । ये ३००० के अनुमान होंगे । किलात के खाँ, गोआ के गवरनर-जेनरल, विदेशी राजदूत, बाहरी राज्यों के प्रतिनिधि समाज और अन्यदेश संबंधी कासल लोगों की कुर्सियाँ भी श्रीयुत वाइसराय के पीछे सरदारों और रईसों की चौकियों के आगे लगी थीं । दरबार की जगह के दक्खिन तरफ १५००० से ज्यादा सरकारी फौज हथियार बांधे लैस खड़ी थी और उत्तर तरफ राजा लोगों की सजी पलटनें भांति भाँति की वरदी पहने और चित्र विचित्र शस्त्र धारण किये परा बांधे खड़ी थीं । इन सब की शोभा देखने से काम रखती थी । इस के सिवाय राजा लोगों के हाथियों के परे जिन पर सुनहली अमारियाँ कसी थी और कारचोबी झूलें पड़ी थीं, तोपों की कतार, सवारों की नंगी तलवारों और भालों की चमक, फरहरों का उड़ना. और दो लाख के अनुमान तमाशा देखने वालों की भीड़ जो मैदान में डटी थी, ऐसा समा दिखलाती थी जिसे देख जो जहाँ था वहीं हक्का बक्का हो खड़ा रह जाता था । वाइसराय के सिंहासन के दोनों तरफ हाइलैन्डर लोगों का गार्ड ऑव ऑनर और बाजेवाले थे, और शासनाधिकारी राजाओं के चबूतरे पर जाने के जो रास्ते बाहर की तरफ थे उन के दोनों ओर भी गार्ड ऑव ऑनर खड़े थे । पौने बारह बजे तक सब दरबारी लोग अपनी अपनी जगहों पर आ गए थे । ठीक बारह बजे श्रीयुत वाइसराय की सवारी पहुंची और धनुष खंड आकार के चबूतरों की श्रेणियों के पास एक छोटे से खंभे के दरवाजे पर ठहरी । सवारी पहुँचते ही बिलकुल फौज ने शस्त्रों से सलामी उतारी पर तो नहीं छोड़ी गई । खभे में श्रीयुत ने जाकर स्टार आँव इंडिया के परम प्रतिष्ठित पद के ग्रांड मास्टर का वस्त्र धारण किया । यहाँ से श्रीयुत राजसी छत्र के तले अपने राजसिंहासन की ओर बढ़े। श्री लेडी लिटन श्रीयुत के साथ थीं और दोनों दामनबरदार बालक, जिन का हाल ऊपर लिखा गया है, पीछे दो तरफ से दामन उठाए हुए थे । श्रीयुत के चलते ही बंदीजन (हेरल्ड लोगों) ने अपनी तुरहियाँ एक साथ बहुत मधुर रीति पर बजाई और फौजी बाजे से ग्रांड मार्च बजने लगा । जब श्रीयुत राजसिंहासनवाले मनोहर चबूतरे पर चढ़ने लगे तो ग्रांडमार्च का बाजा बंद हो गया और नैशनल ऐन्थेम अर्थात (गौड सेव दि क्वीन – ईश्वर महारानी को चिरंजीवी रक्खे) का बाजा बजने लगा और गाईस आँव ऑनर ने प्रतिष्ठा के लिये अपने शस्त्र झुका दिये । ज्योंही श्रीयुत राबसिंहासन पर सुशोभित हुए, बाजे बंद हो गए और सब राजा महाराजा, जो वाइसराय के आने के समय स्खड़े हो गए थे. बैठ गए । इस के पीछे श्रीयुत ने मुख्य बंदी (चीफ हेरल्ड) को आज्ञा की कि श्रीमती महारानी के राजराजेश्वरी की पदवी लेने के विषय में अंगरेजी में राजाज्ञापत्र पढ़ो । यह आज्ञा होते ही बंदीजनों ने, जो दो पाँती में राज्यसिंहासन के चबूतरे के नीचे खड़े थे, तुरही बजाई और उसके बंद होने पर मुख्य बंदी ने नीचे की सीढ़ी पर खड़े होकर बड़े ऊँचे स्वर से राजाज्ञापत्र पद्य, जिस का उल्था यह है :- महारानी विक्टोरिया ऐसी अवस्था में कि हाल में पार्लियामेंट की जो सभा हुई उन में एक ऐक्ट पास हुआ है, जिसके द्वारा परम कृपालु महारानी को यह अधिकार मिला है कि यूनाइटेड किंगडम और उस के अधीन देशों की राजसंबंधी पदवियों और प्रशस्तियों में श्रीमती जो कुछ चाहें बढ़ा लें और इस ऐक्ट में यह भी वर्णन है कि ग्रेट ब्रिटेन और भारतेन्दु समग्र ६७०