पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७१६

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सन् १८५८ ईसवी की १ नवंबर को श्रीमती महारानी की और से एक इश्तिहार जारी हुआ था, जिसमें हिंदुस्तान के रईसों और प्रजा को श्रीमती की कृपा का विश्वास कराया गया था, जिस को उस दिन से आज तक वे लोग राजसंबंधी बातों में बड़ा अनमोल प्रमाण समझते हैं। वे प्रतिज्ञा एक ऐसी महारानी की ओर से हुई थी, जिन्होंने आज तक अपनी बात को कभी नहीं तोड़ा, इस लिये हमें अपने मुंह से फिर उन का निश्चय कराना व्यर्थ है । १८ बरस की लगातार उन्नति ही उन को सत्य करती है और यह भारी समागम भी उन के पूरे उतरने का प्रत्यक्ष प्रमाण है । इस राज के रईस और प्रजा जो अपनी अपनी परंपरा की प्रतिष्ठा निर्विघ्न भोगते रहे और जिन को उचित लाभों की उन्नति के यत्न में सदा रक्षा होती रही उन के वास्ते सरकार की पिछले समय की उदारता और न्याय आगे के लिये पक्की जमानत हो गई है हम लोग इस समय श्रीमती महारानी के राजराजेश्वरी की पदवी लेने का समाचार प्रसिद्ध करने के लिये इकट्ठे हुए हैं, और यहाँ महारानी के प्रतिनिधि होने की योग्यता से मुझे अवश्य है कि श्रीमती के उस कृपायुक्त अभिप्रय को सब पर प्रकट करूँ जिस के कारण श्रीमती ने अपने परंपरा की पदवी और प्रशस्ति में एक पद और बढ़ाया। पृथ्वी पर श्रीमती महारानी के अधिकार में जितने देश हैं -जिन का विस्तार भूगोल के सातवें भाग से कम नहीं है, और जिन में तीस करोड़ आदमी बसते हैं - उन में से इस बड़े और प्राचीन राज के समान श्रीमती किसी दूसरे देश पर कृपादृष्टि नहीं रखतीं । सब जगह और सदा इंगलिस्तान के बादशाहों की सेवा में प्रवीण और परिश्रमी रहते आए हैं, परंतु उन से बढ़कर कोई पुरुषार्थी नहीं हुए, जिन की बुद्धि और वीरता से हिंदुस्तान का राज सरकार के हाथ लगा और बराबर अधिकार में बना रहा । इस कठिन काम में जिसमें श्रीमती की अंगरेजी और देशी प्रजा दोनों ने मिलकर भली भाँति परिश्रम किया है, श्रीमती के बड़े बड़े स्नेही और सहायक राजाओं ने भी शुभचिंतकता के साथ सहायता दी है, जिन की सेना ने लड़ाई की मिहनत और जीत में श्रीमती की सेना का साथ दिया है, जिन की बुद्धिपूर्वक सत्यशीलता के कारण मेल के लाभ बने रहे और फैलते गए हैं, और जिन का यहाँ आज वर्तमान होना, जो कि श्रीमती के राजराजेश्वरी की पदवी लेने का शुभ दिन है, इस बात का प्रमाण है कि वे श्रीमती के अधिकार की उत्तमता में विश्वास रखते हैं और उन के राज में एका बने रहने में अपना भला समझते हैं । श्रीमती महारानी इस राज को, जिसे उन के पुरखों ने प्राप्त किया और श्रीमती ने दृढ़ किया, एक बड़ा भारी पैतृक धन समझती हैं जो रक्षा करने और अपने वंश के लिये संपूर्ण छोड़ने के योग्य है, और उस पर अधिकार रखने से अपने ऊपर यह कर्तव्य जानती है कि अपने बड़े अधिकार को इस देश की प्रजा की भलाई के लिये यहाँ के रईसों के हकों पर पूरा पूरा ध्यान रखकर काम में लावें । इस लिये श्रीमती का यह राजसी अभिप्राय है कि अपनी पदवियों पर एक और ऐसी पदवी बढ़ावें, जो आगे सदा को हिंदुस्तान के सब रईसों और प्रजा के लिये इस बात का चिन्ह हो कि श्रीमती के और उन के लाभ एक हैं और महारानी की ओर राजभक्त्ति और शुभचिंतकता रखनी उन पर उचित है । वे राजसी घरानों की श्रेणियाँ जिन का अधिकार बदल देने और देश की उन्नति करके के लिये ईश्वर ने अँगरेजी राज को यहाँ जमाया, प्राय : अच्छे और बड़े बादशाहों से खाली न थीं परंतु उन के उत्तराधिकरियों के राज्यप्रबंध से उन के राज्य के देशों में मेल न बना रह सका । सदा आपस में झगड़ा होता रहा और अंधेर मचा रहा । निर्बल लोग बली लोगों के शिकार थे और बलवान अपने मद के इस प्रकार आपस की काट मार और भीतरी झगड़ों के कारण जड़ से हिलकर और निर्जीव होकर तैमूरलंग का भारी घराना अंत को मिट्टी में मिल गया, और उस के नाश होने का कारण यह था कि उस से पश्चिम के देशों की कुछ उन्नति न हो सकी । आजकल ऐसी राजनीति के कारण जिस से सब जात और सब धर्म के लोगों की समान रक्षा होती है, श्रीमती की हर एक प्रजा अपना समय निर्विघ्न सुख से काट सकती है । सरकार के समभाव के कारण हर आदमी बिना किसी रोक टोक के अपने धर्म के नियमों और रीतों को बरत सकता है । राजराजेश्वरी का अधिकार लेने से श्रीमती का अभिप्राय किसी को मिटाने या दबाने का नहीं है वरन रक्षा करने और अच्छी राहा बतलाने का । सारे देश की शीघ्र उन्नति और उस के सब प्रांतों की दिन पर दिन वृद्धि होने से अंगरेजी राज के फल सब जगह प्रत्यक्ष देख पड़ते हैं। भारतेन्दु समग्र ६७२