पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७१९

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केवल अपने ही राज से नहीं है वरन् श्रीमती शुद्ध चित्त से यह भी इच्छा रखती हैं कि जो राजा लोग इस बड़े राज की सीमा पर हैं और महारानी के प्रताप की छाया में रहकर बहुत दिनों से स्वाधीनता का सुख भोगते आते हैं उन से निष्कपट भाव और मित्रता को दृढ़ रक्खें । परंतु यदि इस राज के अमन चैन में किसी प्रकार के बाहरी उपद्रव की शंका होगी तो श्रीमती हिंदुस्तान की राजराजेश्वरी अपने पैत्रिक राज की रक्षा करना खूब जानती हैं । यदि कोई विदेशी शत्रु हिंदुस्तानी के इस महाराज्य पर चढ़ाई करे तो मानो उसने पूरब के सब राजाओं से शत्रुता की, और उस दशा में श्रीमती को अपने राज के अपार बल, अपने स्नेही और कर देने वाले राजाओं की वीरता और राजभक्ति और अपनी प्रजा के स्नेह और शुभचिंतकता के कारण इस बात की भरपूर शक्ति है कि उसे परास्त करके दंड दें। इस अवसर पर उन पूरव के राजाओं के प्रतिनिधियों का वर्तमान होना जिन्होंने दूर दूर देशों से श्रीमती को इस शुभ समारंभ के लिये बधाई दी है, गवर्नमेंट ऑव इंडिया के मेल के अभिप्राय, और आस पास के राजाओं के साथ उसके मित्र का स्पष्ट प्रमाण है । मैं चाहता हूँ कि श्रीमती की हिंदुस्तानी गवर्नमेंअ की तरफ से श्रीयुत खानकिलात और उन राजदूतों को जो इस अवसर पर श्रीमती के स्नेही राजाओं के प्रतिनिधि होकर दूर दूर से अंगरेजी राज में आए हैं और अपने प्रतिष्ठित पाहुने पर श्रीयुत गवरनर-जेनरल गोआ और बाहरी कांसलों का स्वागत करूँ। हे हिंदुसतान के रईस और प्रजा लोग, -मैं आनंद के साथ आप लोगों को यह कृपापूर्वक संदेसा जो श्रीमती महारानी और आप लोगों की राजराजेश्वरी ने आज आप लोगों को अपने राजसी और राजेश्वरीय नाम से भेजा है सुनाता हूँ । जो वाक्य श्रीमती के यहाँ से आज सबेरे तार के द्वारा मेरे पास पहुंचे हैं, ये हैं :- "हम, विक्टोरिया, ईश्वर की कृपा से, संयुक्त राज (ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड) की महारानी, हिंदुस्तान की राजराजेश्वरी अपने वायसराय के द्वारा अपने सब राजकाज संबंधी और सेना संबंधी अधिकारियों, रईसों, सरदारों और प्रजा को, जो इस समय दिल्ली में इकट्ठे हैं, अपना राजसी और राजराजेश्वरीय आशीर्वाद भेजते हैं और उस भारी कृपा और पूर्ण स्नेह का विश्वास कराते हैं जो हम अपने हिंदुस्तान के महाराज्य की प्रजा की ओर रखते हैं । हम को यह देख कर जी से प्रसन्नता हुई कि हमारे प्यारे पुत्र का इन लोगों ने कैसा कुछ आदर सत्कार किया, और अपने कुल और सिंहासन की ओर उनकी राजभक्ति और स्नेह के इस प्रमाण से हमारे जी पर बहुत असर हुआ । हमें भरोसा है कि इस शुभ अवसर का यह फल होगा कि हमारे और हमारी प्रजा के बीच स्नेह और दृढ़ होगा, और सब छोटे बड़े को इस बात का निश्चय हो जायगा कि हमारे राज में उन लोगों को स्वतंत्रता, धर्म और न्याय प्राप्त हैं और हमारे राज का अभिप्राय और इच्छा सदा यही है कि उन के सुख की वृद्धि, सौभाग्य की अधिकता, और कल्याण की उन्नति होती रहे ।' मुझे विश्वास है कि आप लोग इन कृपामय वाक्यों की गुणग्राहकता करेंगे । ईश्वर विक्टोरिया संयुक्त राज की महारानी और हिंदुस्तान की राजराजेश्वरी की रक्षा करे। इस ऐड्रेस के समाप्त होते ही नैशनल एन्थेम का बाजा बजने लगा और सेना ने तीन बार हुरै शब्द को आनंदध्वनि की । दरबार के लोगों ने भी परम उत्साह से खड़े होकर हुरै शब्द और हथेलियों की आनंदध्वनि करके अपने जी का उमंग प्रगट किया । महाराज सेंधिया, निजाम की ओर से सर सालारजंग, राजपुताना के महाराजों की तरफ से महाराज जयपुर, बेगम भूपाल, महाराज कश्मीर और दूसरे सरदारों ने खड़े होकर एक दूसरे को बधाई दी और अपनी राजभक्ति प्रगट की । इस के अनंतर श्रीयुत वाइसराय ने आज्ञा की कि दरबार हो चुका और अपनी चार घोड़े की गाड़ी पर चढ़कर अपने खेमे को रवाने हुए । श्रीमती महारानी के राजराजेश्वरी की पदवी लेने के उत्सव में गवरन्मेंट आँव इंडिया ने हिंदुस्तान के रईसों और साधारण लोगों पर जो अनेक अनुग्रह किये हैं उन्हें हम संक्षेप के साथ नीचे लिखते हैं। सलामी जंबू, ग्वालियर, इंदौर, उदयपुर और त्रावणकोर के महाराजों की सलामी उनकी जिंदगीभर के लिए १९ । दिल्ली दरबार दर्पण ६७५