पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७२५

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उदयपुरोदय (अर्थात् मेवाड़ का पुरावृत्त-संग्रह) यह मेवाड़ का पुरावृत्त संग्रह है। इसका रचनाकाल सन् १८७७ है। इसे आप भारतेन्दु के इतिहास लेखन की शैली का उदाहरण मान सकते हैं। इसकी टिप्पणी देखने मात्र से पता चलता है कि इसके लेखन में भारतेन्दु जी को कड़ी मेहनत करनी पड़ी होगी। सं. उदयपुरोदय पहिला अध्याय मेवाड़ का शुद्ध नाम मेदपाट है और यहाँ के महाराज की संज्ञा सीसौंधिया है । कहते है कि इन के वश में कोई राजा बड़े धार्मिक थे। एक समय वैद्यों ने छल से औषध में मद्य मिला कर उन को पिला दिया, क्योंकि जिस रोग में वे ग्रस्त थे उस को औषधि मद्य ही के साथ दी जाती थी । शरीर स्वच्छ होने पर जब उन्होंने जाना कि हम ने मद्य पीया था, तो उसके प्रायश्चित के हेतु गलता हुआ सीसा पीकर प्राण त्याग किया । तभी से सीसौंधिया इस वंश की संज्ञा हुई । यही वंश भारतखंड में सब से प्राचीन और सब से माननीय है। इसी वंश में महात्मा मांधाता, सगर, दिलीप, भगीरथ, हरिश्चंद्र, रघु आदि बड़े बड़े राजा हुए हैं और इसी वंश में भगवान श्रीरामचंद्र ने अवतार लिया है । इसी वंश के चरित्र में कालिदास, भवभूति, वरंच व्यास, बाल्मीक ने भी वह ग्रंथ बनाए है जो अब तक भारतवर्ष के साहित्य के रत्नभूत हैं । हिंदुस्तान में यही वंश ऐसा बचा है जिस मे लोग सत्ययुग से लेकर अब तक बराबर राज्यसिंहासन पर अचल छत्र के नीचे बैठते आए । उदयपुरवाले ही ऐसे हैं जिन्होंने और और विलायत के बादशाहों की बेटी ली, पर अपनी बेटी मुसलमान को न दी । आज हम उसी बड़े पराक्रमशाली प्राचीन वंश का इतिहास लिखने बैठे हैं । इसमें हमारे मुख्य सहायक ग्रंथ टॉड साहिब का राजस्थान, उदयपुर के वंशचरित्र के भाषाग्नथ और प्राचीन तानपत्र हैं । जैसे संसार के सब राजों के इतिहास प्रारम्भ में अनेक आश्चर्य घटना पूरित होते हैं वैसे ही इस के भी प्रारंभ में अनेक आश्चर्य इतिहास हैं । उन से कोई इस के ऐतिहासिक इतिवृत्ति में संदेह न करें; क्योंकि प्राय : प्राचीन इतिवृत्त अनेक अद्भुत घटना पूर्ण होते हैं और इतिहासवेत्ता लोग उन्हीं चमत्कृत इतिहासों का सारासार निस्सार पूर्वक सारा निर्णय बुद्धि बल से कर लेते हैं। राजस्थान में मेवाड़ और जैसलमेर का राज्य सब से प्राचीन है । आठ सौ बरस से भारतवर्ष में विदेशियों का राज्य प्रारम्भ हुआ, तब से अनेक राज्य बिगड़े और बने यह ज्यों का त्यों है । गजनी के बादशाह लोग सिंधु नदी का गंभीर जल पार कर के हिंदुस्तान में आए । उस समय जहाँ मेवाड़ के राज्य का सिंहासन था वहीं अब १. कहते हैं कि जब औरंगजेब ने उदयपुर घेर लिया था तब राना साहब शिकार खेलते थे और उन को बादशाह की दो बेगम फौज से बिछड़ी जंगल में भटकती हुई मिलीं, जिन को राना ने अपनी बहिन कह के पुकारा और रक्षापूर्वक लाकर उन को औरंगजेब को सौंप दिया । मुसलमान तवारीख लिखनेवालो ने अपनी क्षति इसी बहाने पूरी की और कहा कि उदयपुरवालों ने बेटी नहीं दी, तो क्या हुआ, बादशाह बेगम को अपनी बहिन बनाया तो सही । वरच इसी हेतु उस दिन से उन बेगमों को उदयपुरी बेगम लिखा गया । भाषाग्रंथों में इन बेगमों के नाम रंगी चंगी बेगम लिखे हैं। उदय पुरोदय ६८१