पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७२६

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भी है । बहुत से राजा लोग उस राज्य के चारों ओर, बहुत से वहाँ से और कहीं जा बसे, पर इनके महल अब भी वहीं खड़े हैं जहाँ पहले खड़े थे । सतयुग से आज तक इसी वंश के सब पुरुष सिंहासन हो पर मरे । भगवान रामचंद्र के ज्येष्ठ पुत्र लव ने अपने राज्य-समय में लवपुर अर्थात् लाहौर बसाया था और सुमित्रायु नामक राजा लव से पचपन पीढ़ी पीछे हुआ । पुराणों में लिखा है कि सुमित्र ने कलियुग में राज्य किया और बहुत से प्रमाणों से मालूम होता है कि ये विक्रमादित्य के कुछ पहले वर्तमान थे । इनके पीछे कनकसेन तक राजाओं का ठीक वृत्तांत नहीं मिलता । जहाँ तक नाम मिले हैं उसमें पहला महारथ. उस का पुत्र अंतरीक्ष, उस का अचलसेन और उस का पुत्र राजा कनकसेन हुआ । राजा कनकसेन ही सौराष्ट्र देश में आये, परंतु इस का नहीं पता लगता कि उन्होंने लाहौर किस हेतु से छोड़ा और किस पथ से सौराष्ट्र पहुँचे । यहाँ आकर इन्होंने किसी पवार वंश के राज का अधिकार जीत कर सन् १४४ में वीर नगर नामक नगर संस्थापन किया । कनकसेन को महामदनसेन, उनको शोणादित्य और उनको विजय भूप हुआ । इस ने जहाँ अब घोल का नगर है वहाँ पर विजयपुर नामक नगर संस्थापन किया और जहाँ अब सिहोर है तहाँ विदर्भ नगर बनाया । और बल्लभीपुर नामक एक बड़ा नागर बसा कर उसे अपनी राजधानी बनाया । अब धोल नगर से पाँच कोस उत्तर-पश्चिम बालभी नामक जो गाँव है वहीं इस प्रसिद्ध बल्लभीपुर का अवशेष है । शत्रुञ्जय-माहात्म्य नामक जैन ग्रंथ में भी इस नगर की बड़ी शोमा लिखी है । मेवाड़ के राजा लोग बल्लभीपुर से आए हैं यह प्रवाद बहुत दिन से था, पर कोई इस का पक्का प्रमाण नहीं था । अब उदयपुर के राज्य में एक टूटे शिवालय में एक प्राचीन खोदा हुआ पत्थर मिला है, उस से यह संदेह मिट गया, क्योंकि उस में लिखा है कि जिन महात्माओं का ऊपर वर्णन हुआ उस की साक्षी वल्लभीपुर के प्राचीर हैं । राणा राजसिंह के समय के बने हुये एक ग्रंथ में भी लिखा है कि सौराष्ट्र देश पर बरबरों ने चढ़ाई करके बालकानाथ को पराजय किया । इस बल्लभीपुर के विप्लव में सब लोग नष्ट हो गये और केवल एक प्रमार की दुहिता मात्र बची । बल्लभीपुर शिलादित्य के समय में नाश हुआ । विजयभूप के पद्मादित्य, उन के शिवादित्य, उन के हरादित्य, उन के सुयशादित्य, उन के सोमादित्य, उन के शिलादित्य । शिलादित्य वा शीलादित्य तक एक प्रकार का क्रम लिख आए हैं । अब आगे नामों में और उन के समय कितना गड़बड़ और उसके ठीक निर्णध में कितनी विपत्ति है यह दिखाते हैं । आर्यमत के अनुसार चार युग में काल बाँटा गया है । इसमें ब्रहमा की उत्पत्ति से सत्ययुग माना जाता है । अब अनेक पुराणों से और प्रसिद्ध विद्वानों के मत से प्रारंभ से काल लिखते हैं। पुराण के मत से इक्ष्वाकु को २१८५००० वर्ष हुए । जोन्स के मत से ६८७७ और विलफडं के मत से ४५७८, टॉड के मत से ४०७७, वेण्टली के मत से ३४०५ । श्री रामचंद्र का समय पुराण ८६५७९७९ वर्ष, जोन्स० ३९०६, विलफर्ड० ३२३७, वेण्टली० २८२७, टॉड० ४००० । महाराज युधिष्ठिर का समय पुराण० ४९७९, वेंटली २४५३, और जोन्स-टाड ३३०७ और विलफर्ड के से श्री रामचंद्र का और युधिष्ठिर का मय एक है, विल्सन के मत से ३३०७ । सुमित्र का समय पुराण ३९७७, जोन्स २९०६, विलफर्ड २५७७, वेटली १९९६, विल्सन २८०२, ब्रहमावालों के मत से २४७७ । शिशुनाग का समय पुराण. ३८३६, जोन्स. २७४७, विलफर्ड. २४७७. बिल्सन, २६५४, ब्रहमावाले. २४७७ । नंद का समय पुराण० ३४७७, जोन्स० २५७६, विल्सन० २२९२, ब्रहमावाले० २२८१ । चंद्रगुप्त का समय पुराण० ३३७९, जोन्स०२४७७, विलफर्ड० २२२७, विल्सन० २१९२, टॉडo २१९७, ब्रहमावाले० २२६९ । अशोक का समय पुराण ३३४७, जोन्स. २५१७. विल्सन. २१२७, ब्रह्मावाले. २२०७ । जोन्स प्रिंसिप साहब के मत से परशुराम जी को ३०५३ वर्ष हुए और वेटली साहब के मत से बाल्मीकि रामायण बने केवल १५८६ वर्ष हुए।

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भारतेन्दु समग्र ६८२