पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७२८

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हुआ और वही लिखते हैं कि विजय वा अजयसेन का नामांतर नौशेरवां था । इस ने विजयपुर वा विराटगढ़ बसाया ओर सन् ३१९ में बल्लभीषक स्थापन किया । उन्हीं का मत है कि शिलादित्य को यवनों ने जीता और सौराष्ट्र से यह राज छिन्न भिन्न हो गया और इसका पुत्र केशव वा गोप वा ग्रहादित्य भांडेर के जंगल में रहा और उस के पुत्र नागादित्य के समय से इस वंश का गोत्र गहलौत कहलाया और फिर आशादित्य ने मेवाड़ में अपने वंश की पहली राजधानी आशापुर और आहार बसाया और इस के पीछे बापा ने सन् ७१४ में चित्तौड़ का राज्य पाया, दूसरे ग्रहादित्य का नाम द्वितीय नागादित्य भी लिखा है। वापा तक नाम का क्रम हम पूर्व में लिख आए हैं, परंतु प्राचीन ताम्रपत्रों से लेकर यदि वंशावली लिखी जाया. तो सेनापति व भट्टारक तथा धरासेन. द्रोणसिंह (प्रथम), ध्रुवसेन, धरापति, गृहसेन, श्रीधरसेन (प्रथम), शिलादित्य (प्रथम), चारुग्रह वा खड़ग्रह (द्वितीय), श्रीधरसेन (द्वितीय), ध्रुवसेन (तृतीय), श्रीधरसेन (. (तृतीय), शिलादित्य (इस के पीछे तीन नाम छूट गए है). शिलादित्य (तृतीय) और (चतुर्थ) शिलादित्य । टॉड साहब की वंशावली और बल्लभीपुर की वंशावली में कितना अंतर है यह ऊपर के नामों से प्रगट होगा । पादरी अंडरसन साहब ने दो नए ताम्रपत्र पढ़कर इस वंशावली को शोधा है और वे कहते है कि इस में जहाँ जहाँ श्रीधरसन लिखा है वह सब नाम धरासेन है और शिलादित्य का नाम क्रमादित्य वा विक्रमादित्य है और इन्हीं को धर्मादित्य भी कहते हैं । और वंशावली के प्रथम पुरुष को सेनापति वा भट्टारक वा धर्मादित्य भी लिखा है। दोनों वंशावली में बल्लभीपुर का अंतिम राजा शिलादित्य है और इन दोनों के संवत् भी पास पास मिलते हैं पारसी इतिहासवेत्ताओं के मत से इसी शिलादित्य का पुत्र ग्रह वा ग्रहादित्य, जिस ने ग्रहलोत व ममोधिया गोत्र चलाया. नौशेरवा का रक्षित पुत्र था, परंतु महाराज जैसिंह ने राजा अजयसेन का ही नामांतर नौशेरवा लिखा है। पारसी इतिहासवेत्ताओं के मत से नौशेरवा के पुत्र नोशीजाद (हमारे यहाँ का नागादित्य) और यजदिजिर्द की बेटी माहबानू, जो इन्हीं राजाओं में से किसी को ब्याही थी, इस वंश के मूल पुरुष है। विलर्फ साहब के मत से बल्लभीशक के स्थापनकर्ता अजयसेन वा दूसरी वंशावली के अनुसार धरासेन को ही पुराणों में शुद्रक वा शरक लिखा है, जिस ने ३२९० वर्ष कलियुग बीते सन् १९१ वा २९१ में प्रथम विक्रमादित्य के नाम से राज्य किया था !: मेजर वॉटसन के मत से सेनापति भट्टारक के सौराष्ट्र जीतने के दो वर्ष पीछे प्रसिद्ध स्कन्दगुप्त मरा ।' इस से गुप्त संवत के आस ही पास बल्लभी संवत् भी है और इस विषय के उन्होंने अनेक प्रमाण भी दिए हैं। इस बल्लभी संवत के निर्णय में इतिहासवेता विद्वानों के बड़े बड़े झगड़े हैं, जिससे कई दरजन कागज के बड़े ताव रंग गये है । लोग सिद्धांत करते हैं कि गुप्तवंश जब प्रबल था तब बल्लभीवंश के लोग उसके वंश के अनुगत थे, यहाँ तक कि भट्टारक सेनापति गुप्त वंश बिगड़ने के पीछे स्वाधीन हुआ और अपने दूसरे बेटे द्रोणसिंह का महाराज किया । पाँच छ : ताम्रपत्र इस वंश के जो मिले हैं इन के परस्पर नामों में बड़ा फरक है. जैसा गुहसेन धरासेन शिलादित्य धरासेन शिलादित्य वा गुहसेन के दो पुत्र शिलादित्य और खड़ग्रह के दो पुत्र धरासेन और ध्रुवसेन वा शिलादित्य के देरभट्ट. उनके शिलादित्य खड़ग्रह और ध्रुवसेन और शिलादित्य के बाद फिर शिलादित्य । इन नामों के परस्पर अत्यत ही विरुद्ध होने से कोई निश्चित वंशावली नहीं बन सकती. अतएव इन झगड़ों को छोड़ कर राजा कनकसेन के समय से हम ने पूर्व वृत्तांत प्रारंभ किया । कारण यह कि जब एक बड़ा सधि । ३६ ना. अवस्वान इसी महाश्व के पीछे विश्वबाहुः प्रसेनजित और तक्षक नामक तीन राजा वृहदाल के पहने अनेक ग्रंथकार मानते है और कहते हैं, कलियुग का प्रारभ इसी समय से हुआ । ३७ प्रतिव्योम और देवकर के बीच में कोई भानु को भी जोड़ते हैं । इसी देवकर का नामांतर दिवाकर है । ३८ सहदेव. तब बोर. तब वृहदश्व, यह किसी का मत है । ३९ ना. भानुमत वा मानुमान, ग्रंथकारों का मत है कि ईरान का जो प्रसिद्ध बहमन नामक राजा हुआ था । वह यही भानुमान है । इस के और सुप्रतीक के बीच में कोई प्रतिशोश्व नामक राजा मानते हैं । ४० ना, पुश्चर । ४१ ना. रेख । ४२ ना. सुतुपा । ४३ ना. बाढ़ि। ४४ कोई ग्रंथकार कहते हैं कि यही कृतंजय प्रथम सौराष्ट्र में आया । ४५ ना. जयरान । ४६ ना. शुद्धोधन इसी का पुत्र प्रसिद्ध शाक्यसिंह है, जो भादो सुदी ५ को जन्मा था, और बौद्ध और जैन के नाम से जिस का मत संसार की एक तिहाई में व्याप्त है । ४७ ना. लांगल वा सिंघल वा रातुल । ४८ ना. सुरत वा सुराष्ट्र, कहते है कि इसी के नाम से सौराष्ट्र देश बसा है । 1. Bomb. Jour. VLIII P. 216 2. as Ras VL IX pp. 135. 230. ok भारतेन्दु समग्र ६८४