पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७३९

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खत्रियों की उत्पत्ति ( अनेक शास्त्रों से संगृहीत) यह सन् १८७३ से १८७८ तक लिखा है, क्योंकि इसका कुछ भाग 'हरिश्चन्द्र मैगजीन' सन् १८७३ में और फिर 'हरिश्चन्द्र चन्द्रिका' सन् १८७८ की नवम्बर में छपा है। बतौर पुस्तक यह सन् १८८३ में खंग विलास प्रेस बांकीपुर से प्रकाशित सं. 1 खत्रियों की उत्पत्ति मेरी बहुत दिन से इच्छा थी कि इस जाति का पुरावृत्त संग्रह करूं परंतु मुझे इस में कोई सहायक न मिला और जिन जिन मित्रों ने मुझ से पुरावृत्त देने कहा था वे इस विषय में असमर्थ हो गए और इसी से मेरा भी उत्साह बहुत दिनों तक मंद पड़ा रहा । परंतु मेरे परम मित्र ने इस विषय में मुझे फिर उत्साहित किया और कुछ मुझे ऐसी सहायता भी मिल गई कि मैं फिर इस जाति के समाचार अन्वेषण में उत्सुक हुआ । लाहौर निवासी श्रीपंडित राधाकृष्णजी ने इस विषय में मुझे बड़ी सहायता दी और वैसी ही कुछ सहायता श्री मुंशी बुधसिंह के मिहिर प्रकार और श्रीयुत शेरिंग साहब के जातिसंग्रह से मिली । इस समय में प्राय : बहुत जाति के लोग अपनी उन्नति दर्शन में प्रवृत्त हुए हैं जैसा टूसर (जिन के वैश्यत्व में भी संदेह है क्योंकि उनके यहाँ फिर से कन्या का पति होता है) अपने को कहते हैं कि हम ब्राहमण है, कायस्थ (जो शूद्रधर्म कमलाकर की रीति से सकर शूद्र है) कहते हैं कि हम क्षत्रिय है और जाट लोगों में भी मेरे मित्र बेसवां के राजा श्री ठाकुर गिरिप्रसाद सिंह ने निश्चय किया है कि वे क्षत्रिय हैं तो इस दशा में इस आर्य जाति का पुरावृत्त होना भी अवश्य है. जो मुख्य आर्य जाति के निवास-स्थल पंजाब और पश्चिमोत्तर देश में फैली हुई है और जिस में सर्वदा से अच्छे लोग होते आए हैं । हमारे पूर्वोक्त आर्य शब्द के दो बेर प्रयोग से कोई यह शका न कर कि देश के पक्षपात से मैंने यह आग्रह से आदर का शब्द स्वखा है क्योंकि आर्य जाति के निवास का मुख्य यही देश है और यहीं से आर्य जाति के लोग सारे भारतवर्ष में फैले हैं, यह अंगरेजी हिंदुस्तान के इतिहासों के पाठ से स्पष्ट हो जायगा । हमारे एक मित्र से इस बात का मुझ से बड़ा विवाद उपस्थित हुआ था । वह कहते थे कि पंजाब देश अपवित्र है क्योंकि महाभारत में कर्ण पर्व के आरंभ में शल्य राजा से कर्ण ने पंजाब देश की बड़ी निंदा की है और वहाँ के बहुत बुरे आचरण दिखाये हैं परंतु वह निंदा निंदा की भांति गृहीत नहीं होती क्योंकि पश्चिम में गुजराती या मध्य देश के वासियों की भांति सोला पामरा का प्रचार नहीं है और न ऊपर से वे लोग स्वच्छ रहते हैं परंतु यह में निस्संदेह कह सकता हूँ कि यहाँ के काले चित्तथाले मनुष्यों से उनका चित्त कहीं उजला है । इसके अतिरिक्त कर्ण शल्य का शत्रु है इससे शत्रु की हुई निंदा निंदा नहीं कहाती । हाँ. इस बात का हम पूर्ण रूप से प्रमाण देते है कि भारतवर्ष में पहिले पहिले आर्य लोग केवल पंजाब से लेकर प्रयाग Ot *** 03 खत्रियों की उत्पत्ति ६९५