पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७४१

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हतात्तु उन में प्राय : बड़े बड़े पंडित हुए । बहुत दिनों पीछे जब सोढ़ियों ने सुना कि हमारे दूसरे भाई लोग काशी में वेद पढ़कर पंडित हुए हैं तो उनको काशी से बुलाया और वेद सुनकर अपना सब राज्य उन लोगों को दे दिया जिनकी वेद पढ़ने से बेदी संज्ञा हो गई थी । काल के बल से इन दोनों वंश के राज्य नष्ट हो गए और देदियों के पास केवल बीस गाँव रह गये और उन्हीं वेदियो के वंश में संवत १५२६ में कालू चोणे के घर बाबा नानक का जन्म हुआ और सीढ़ियों के वंश में गुरु गोबिंद सिंह हुए" । गुरु नानक साहब अपने ग्रंथ साहब में जहाँ चारों वर्गों का नाम लिखते हैं वहाँ ब्राह्मण, खत्री, वैश्य, शुद्र लिखते हैं। कोई कहते हैं कि बाबर के पहिले की किसी पुस्तक में खत्री का शब्द नहीं मिलता । इससे निश्चय होता है कि बाबर ने जिन क्षत्रियों को अपने सेना में नौकर रक्खा था उनका नाम खत्री रक्खा । परंतु कोई कहते हैं कि पंजाब में नाग भाषा का बहुत प्रचार था और अब भी पंजाबी भाषा में उनके बहुत शब्द मिलते हैं और क्षत्री खत्री की नाग भाषा है। ऊपर के लेख से हम सिद्ध कर चुके कि खत्री क्षत्रिय हैं और उस में लोगों के जो अनेक विकल्प है, वे भी लिखे गए परंतु हम कोई विकल्प नहीं करते क्योंकि नीचे लिखे हुए वाक्य पुराणोपपुराण सारसंग्रह में दशावतार प्रकरण में परशुराम जी के दिग्विजय में मिले हैं : जिन से इनका क्षत्रिय होना स्पष्ट है, यथा यदा श्रीमत्परशुरामो गतो दिग्विजयेच्छया । सकलाभूस्तदाजाता पूर्ण मोदान्विता यत:।।२४।। दुष्टसंहारकृतीमान् दृष्टभाराकुला रसा । पर्यटन सकलां पृथ्वी जयन बाहुबलेन च ।।२५।। गत: पंचनदान्देशान्यद्राज्ञा क्रूरसंगर । कृत परशुरामेण महाविक्रमशालिना ।।२६।। एकाकिनापि तद्राक्ष: सैन्य सर्व विनाशित । कतिचिद्रुवुवीरी बहवो भवन् ।।२७।। भूमि: शुशुभे रणमंडले । ।। लोहितपंकाढ्या बभूवातिभयंकरा ।।२८।। धूलि : सैन्यस्य यस्या सा मग्ना पंकीबभूव जन्यभूमिगता यत्र बीराणां मृतमस्तका: ।।२९।। कमलामा वहन्ती कल्लोलेरावृताप्यभूत । राजानं संनिहत्यासो रामस्तत्र तरो: पदे ।।३०।। श्रान्तो तिष्ठत क्षण यावद्रिपुनार्य : समागताः । अन्वेषयन्त्य: संग्रामभृभ्यां स्वीयान पतीन मृतान् ।३१।। आक्रोशत्योभिधेयेन पुत्रवृतगृहादिना । विलपन योमुहुर्दु :खादातयन्त्य उर :स्थल ।।३२।। लक्ष्मीविलास नामैको वैश्यस्तावत्समागत:। करुणापूर्ण हृदयो दृष्ट्वा हि दुर्गतिम् ।।३३।। पत्यु शं महददु:ख ज्ञातवा ता: शीलशालिनी : । दानशौण्डोधनाढयश्च सदबुध्या ता: सुदु:खिता :।।३४।। बालाननाथान sसोवनयत स्वगह प्रति । सान्त्वयित्वा विवेकेन परमा: सती: ।।३।। लालन पालन तेषा पोषण तस्त्रियाभुत । बालाना क्षत्रवश्यानामकरात, एवमेव ततोरंगभूम्या : काश्चित स्त्रियो हृताः । दुष्टै: काश्चिद्विइनिभैश्च दयालुभिरूपाहृता : ।।३७॥ लक्ष्मीविलास विशा ते बालका यदा । ब्रतबंधार्हता प्राप्ता: समकार्युपनायनं ।।३।। खत्रियों की उत्पत्ति ६९७ अमृइ मेदवनी धुनी या तासां मतवा परण स्नेहभावत : ।।३।। संज्ञेन