पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रसिद्ध हैं । और जो परशुराम जी को शिरोनमन पूर्वक प्रणाम करि बद्धांजलि हो गए तब तो परशुराम जी ने प्रसन्न होकर कहा, धन्य हो तुम निर्भय रहो क्योंकि तुम अरुट हो अर्थात् क्रोध बिना ही सोई अब अरोड़ा कहलाते हैं । और मेरे मित्र पंडित गोकुलचंद्र जी के पास एक पुस्तक थी । तिस में लिखा है कि लव जी के वंश में एक राजा ये तिन्ह के दो स्त्री थीं । जो कि छोटी थी वह राजा को परम प्यारी थी जो दूसरी बड़ी थी उस में रुचि कम थी एक एक पुत्र दोनों में प्रकट भये । छोटी स्त्री ने स्वामी से कहा कि राज्य मेरे पुत्र को देवो । राजा ने न माना । अंत में मंत्री को भी उस राणी ने स्ववशवर्ति करि के कहवाया कि छोटे को राज्य देना चाहिए । मंत्रियों ने कहा कि राजन ! एक को समस्त धन दे दो । एक को केवल राज्य दे दो । सुनि के राजा ने बड़े पुत्र को समस्त धन दे दिया । छोटे पुत्र को स्वकीय राज्य दे दिया । छोटे पुत्र ने राज्य पाय के बड़े भ्राता से कहा कि तुम मेरे देश तें निकल जाओ, तब तो वह तिलाचार होकर मूलत्राण नगर अर्थात् मुलतान के पास में चला आया । और उस के और और जातियों के मित्र जो थे वे भी चलि आये तब तो उसने कहा कि हम सब एक जाति कहलावै और एक अपने नाम पर ग्राम बसावें जहाँ हमारी जाति सब सुखपूर्वक निवास करें । इस सलाह को सबने माना तब उस राजकुमार ने सब को कहा कि हम सब रुट् (कोप) कभी कर नहीं आपस में अतएव अरुट् हमारा नाम हुआ । सब ने प्रसन्न होकर माना ! परंच जो पुरुष आये थे उनके नाम से अरुट में भी कई जाति हो गई सो सब इस पंचनद देश में विस्तृत हैं । उसी समय उस राजकुमार ने उक्त नगर के निकट में एक अरुट कोट नाम ग्राम बनवाय कर निवास किया जिस को आज कल आरोडकोट कहते हैं । वह ग्राम अरोड़ों का पूर्व निवास भूमि है । आज कल भी कई एक पुरुष उसी स्थान में जाय के विवाहादि करि आते हैं । जिन्हों को इस देश में कन्या नहीं मिलती हैं। अब देश प्रभाव से उस देश के लोक आचार से हीन होते हैं दूसरे गदहा को अनेक ही पुरुष रखते हैं उस पर नि:संक सवार भी हो जाते है एतएव नीच गिने जाते हैं नही तो जाति में अच्छे हैं । जो लघु राजकुमार क्षत्री था उस को इस पांचाल देश के लोगों ने खत्री शब्द से प्रसिद्ध किया क्योकि जो श्री गुरु अंगद जी ने गुरुमुखी अक्षर बनाये उसमें केवल मून्य खकार है और (क्ष) अक्षर नहीं है एतएव देश बोली से सब खत्री कहलाने लगे । सोई रीति अद्यावधि चली आती है । इत्यादि प्रकार से प्रसिद्ध है । जो आकाश निवासी ३ मृषि हैं उनका नाम १ आकर्ष २ पद्याज्य ३ खर्विश इत्यादि सुदर्शन संहिता में लिखा है । खत्रिश की सन्तान खत्री कहलाते हैं । यह आख्यायिका उक्त संहिता के द्वादश अध्याय में विदित है। इत्यलम्बहुना । (शालिग्रामदास) आज कल बहुधा गोग श्रेष्ठ वर्ण बनने के अधिकारी हुए हैं उनमे एक रात्री भी हैं ! ये लोग अपने को क्षत्री कहते है इस बात का में भी मानता हूँ कि इनके आद्य पुरुष क्षत्री थे । क्योंकि जो जो कहानियाँ इस विषय में सुनी गई है उन से स्पष्ट मालूम होता है कि ये लोग क्षत्री वश में हैं। लोग कहते है कि खत्रा हयहा वंश के वंश में हैं । सहस्रार्जुन से और परशुराम से जब युद्ध ठनी तो परशुराम ने उस वंश के क्षत्रियों को मार डाला और यह प्रतिज्ञा किया कि इस वंश के क्षत्री को निवेश कर डालेग । यह प्रतिज्ञा सुनकर उस वंश के दूषण कुलकर्णक कई एक कायर यह कह कर बच गये कि हम बनियों के बालक हैं । और जब परशुराम जी दले गये तो ये जाकर हयहोवंशियों से कहने लगे कि भाई हम लोग विपत्ति में ऐसा कह कर बच गये । यह सुनकर उन सबों ने बहुत प्रकार से धिक्कार दिया और कहा कि रे नाडाल तुम सबों ने यह क्या किया अपनी जननी को कलंक लगाया । हाय ! तुम सब क्षत्री कुल में कलंक पैदा हए । जाओ यहाँ से भागा दूर हटो न तो अभी शिर काट लेंगे क्या तुम सब हम लोगों के तुल्य हो सकते हो ? अपने वंश के लोगों की रक्षा क्या करोगे अपने बाप के माथे पाप चढ़ाये अब हम लोग तुम लोगों के साथ कोई व्यवहार न रक्खेंगे तुम लोगों न अपने माता पिता को कैसा कलक लगाया । यह सुनकर ये सब अपनी श्री गवाकर वहाँ से आके वैश्यों से कहा कि भाई तुम लोग अपनी जाति अर्थात वैश्य हम लोगों को बनाओ । कारण हम लोग बनिया के बालक कहकर बच गये हैं और अपनी सारी व्यवस्था कह गये । बनियांओं ने भी इस बात को अस्वीकार किया अर्थात कहा कि आज विपत्ति पड़ने पर तुम लोग बनिया के बालक कहकर बन गये कल विपत्ति पड़ने पर शूद्र के बालक कहाग इस से हम लोग तुम लोग को वैश्य अर्थात बनिया न बनावेंगे इस बात 3*** खत्रियों की उत्पत्ति ७०१