पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७४६

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0! OX. को सुनकर ये लोग बड़े बिपद में पड़े और आपस में सलाह कर के नक्षत्री न वैश्य एक विचित्र जाति खत्री बन गये। कोई कोई कहते हैं कि खात नामक राजपूत के वंश में एक वेश्या से इन लोगों की उत्पत्ति है और कोई २ कहते हैं कि नहीं ये लोग बढ़ई के वंश में हैं अर्थात बढ़ई को खाति कहते हैं । काल प्रभाव से कुछ द्रव्य पाकर वैश्यों के गिनती में हो गये । जो हो कोई ऐसा भी कहते हैं कि खेचर नामक राजपूत के वंश में खत्री हैं । कोई कहते हैं कि ये लोग क्षत्री हई नहीं हैं क्यों कि परशुरामजी से जो लोग अभय पाये हैं वे लोग वैश्य क्षत्री है जो वैश्यवारे में रहते हैं । और खत्रियों की दास की पदवी अब तक प्रचलित है इस से ये लोग शूद्र हैं परन्तु बड़े अफसोस की बात है कि जिनका बाप दास उनका बेटा अपने को क्षत्री लिखते हैं । ठीक है "श्यार सुत सेर होत निधन कुबेर होत दीनन के फेर होत मेरु होत माटि को" । कोई कहते है कि यदि इन के मूल पुरुष क्षत्री थे तौ मी ये अब क्षत्री नहीं हो सकते कारण खानपान बैठब उठब सब क्षत्रियों से न्यारी है और मूल पुरुष तो पैठान के भी क्षत्री हैं क्योंकि प्राथियन से पैठान शब्द बना है और वेणु वंश के कोल झील खेरो आदि है तो क्या अब ये क्षत्री हो सकते कदापि नहीं । कोई कहते हैं कि चीनी लवण आदि के व्यापार करने से ब्राह्मण शूद्र हो जाता है तो क्षत्री होकर लवणादि बेचे तो क्या रहा ! इसी मांति से लोग अनेक प्रकार से खत्रियों की उत्पत्ति वा वर्णनिर्णय बतलाते हैं परंतु मैं इन बातों को छोड़ कर नृपवंशावली से पता देता है कि ये लोग क्षत्री के वंश में दोहा-- बसुधा तहि प्रगटेउ सिरमौर । सहित. करिहार । पुंडर पुनि एक समय भई. कामधेनु को पुलक गात रोमांच युत. झारि दियो .तन कूप ।। १।। रोमांच के मूल ते. खानि । ताको निज निज नाम सभ, विधिवत कहो बखान ।। २।। जादव वैश निशेन नृप खत्री खाति विजवान । अगरवार सुरवार भौ. पंचगोतिया तृपं जान । ३।। महीदहार कठिहार पुनि. धाकर और नकरिहार जनवास पुनि बड़ गुजर मड़ि और ।। ४।। भदरिया प्रगटे बहुरि. काश्यप और सोमवंश । मंडलिया गाइ पाछिल भो अवतश ।। ५।। कठहरिया उत्पन्न भौ. मलन हांस पाह बुदेल गौरवार मिलवार ।। ६।। हाहा भए नरवनी क्षत्री अति रणधीर । पड़ग दान वर्णन करी. विरदावलि अति वीर ।।। सोनकी और जगार भौ. बहुरि तरेढ गरेर । ठकराई सांवत कही. खीची और धंधेर ।। ८।। पुवि भौ प्रगट सिहोगिया. छन्त्री नृपति कुलीन । किनवार सिंहल नृप. कुलपालक अघहीन ।। २।। पुनि प्रगटेउ महरौठ नृप ते करचोलिया क्षत्री भएउ. पहि प्रकार सभ खानि ।।१०।। नागवंशी क्षत्री भए. गडवरिया सकसेल । जाति वंश कुल उत्तम. पुनि प्रगटेउ रकसेल ।।११।। अनटैया अगरेढ कुश भौ नृप. नाम निहार । अपर वंश कहँ लागि कहीं भए धेनु औतार ।।१२।। (शिवराम सिंह) कामधेनु जानि । भारतेन्दु समग्र ७०२