पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७४८

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he सामनदेव. महादेव. अजयसिंह (अजयपाल ?), वीरसिंह, विंदुसूर और वैरी विहंड इन राजाओं के नाम क्रम से मिलते हैं। यदि अजय पाल से मिला कर यह क्रम माना जाय तो वैरिबिहंड तक एक प्रकार का क्रम मिलेगा. कितु दोलाराय (दुल्लभराय ?) जिस से सन ६८४ ईस्वी में मुसल्मानों ने अजमेर छीना उस के पूर्व दो सौ बरस के लगभग कौन राजे हुए इसका पता नहीं । दोलाराय के पीछे माणिक्य राय (सन् ६९५ ई.) हुआ, जिसने साँभर का शहर बसाया और साँभरी गोत स्थापन किया । फिर महासिंह, चंद्रगुप्त (2) प्रतापसिंह, मोहनसिंह, सेतराय, नागहस्त, लोहधार, वीरसिंह (?), बिबुधसिंह और चंद्रराय के नाम क्रम से मिलते है । Bombay Government Selection Vol. III. P. 193 टॉड साहब लिखते हैं कि भट्ट लोगों ने दूसरे ग्यारह नाम यहाँ पर लिखे हैं । परंतु प्रिंसिप साहब के क्रम से दोलाराय के पीछे हरिहर राय (टॉड साहब के मत से हर्षराय) सन् ७७४ ई. में हुआ और इसने सुबुकतर्गी को लड़ाई में हराया. फिर बली अगराय (बेलनदेव Tod) हुआ जो सुल्तान महमूद के अजमेर के युद्ध में मारा गया । उसके पीछे प्रथमराय और उस को अगराज (अमिल्लदेव) हुआ । अमिल्लदेव के विशालदेव राजा हुआ । विल्फई १०१६ ई., लिपि १०३१ से १०९५ ई. तक टॉड साहब के मत में चंद के रायसे अनुसार संवत ९२१ में और फीरोज को एक लिपि से (१२२० संवत) फिर सिरंगदेव (सारंगदेव वा श्रीरंगदेव), अन्हदेव (जिस ने अजमेर में अन्ह सागर खुदवाया), हिसपाल (हंसपाल), जयसिंह तारीख फिरिश्ता का जयपाल जो प्रिसिप साहब के मत से सन् ९७७ ईस्वी में हुआ), सोमेश्वर (जिसने दिल्ली के राजा अनंगपाल की बेटी से ब्याह किया), पृथीराय (लाहौर का जिसे शहाबुदीन ने कत्ल किया ११७६), रायनसी (रायनृसिंह जो ११९२ में दिल्ली के युद्ध में मारा गया), विजयराज और उसके पीछे लकुनसी (लक्ष्मण सिंह) हुआ, जिसकी सत्ताईसवीं पीढ़ी में वर्तमान समय के नीमरान के राजा अब टॉड साहब का मत है कि हाडालोगों का वंश माणिक्य देव की शाखा में वा विशाल देव के पुत्र अनुराज से यह बंश चला है । प्रिसिप साहब अनुराज ही से हाड़ा लोगों की वंशावली लिखते हैं । किंतु बूंदी के भट्ट संगृहीत ग्रंथों में और तरह से इस वंश की उत्पत्ति लिखी है । ये लिखते हैं१ "वशिष्ठ जी ने आजू पहाड़ पर यज्ञ किया । उस से चार उत्तम पुरुष उत्पन्न हुए. उन में से चतुर्भुज जी (चौहान वा चहुमान) से १५६ पीढी में भोमचंद्र राजा हुआ । उस का पुत्र भानुराज राक्षसों (यवनों) की लड़ाई में मारा गया । तब आशापुरा देवी ने कृपा कर के भानुराध की अस्थि एकत्र कर के जिला दिया और तब से भानुराज का नाम अस्थिपाल हुआ । अस्थिपाल के पीछे क्रम से पृथ्वीपाल, सेनपाल, शत्रुशल्य, दामोदर, नृसिंह, हरिवंश. हरियश. सदाशिव, रामदास, रामचंद्र, भागचंद्र, रूपचंद्र, मंडन जी (जिसने दक्षिण में मांडलगढ़ बसाया), आत्माराम, आनंदराम, राव हमीर, राव सुमेर, राव सरदार, राव जोधराज, राव रत्न जी, राव कील्हण जी, राव आशुपाल, राव विजयपाल और राव बंगदेव जी हुए ।" राव बंगदेव से भट्टो की और प्रिंसिप साहब की वंशावली एक है । प्रिंसिप साहब के मत से अनुराज से आसी वा हाँसी का राज किया । उसके पीछे इष्टपाल वा इष्ठपाल (शायद अस्थिपाल यही है। ने १०२४ ई. में असीरगढ़ में राज किया । उस का चण्डकर्ण वा कर्णचंद्र, उस का लोकपाल १. अग्नि कुल की उत्पत्ति पुराणों में इस तरह लिखी है । जब परशुराम जी के मारे क्षत्रिय कुल का नाश हो गया तब उन्हों ने पृथ्दी की रक्षा के हेतु चिंता कर के आबू पर्वत पर ऋषियों से इस विषय का परामर्श कर के सब के साथ क्षीरसागर पर जा कर भगवान की स्तुति किया । आज्ञा हुई कि चार कुल उत्पन्न करो । फिर ऋषियों के साथ ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र और इंद्र आबू पहाड़ पर आये और वहाँ यज्ञ किया । इंद्र ने पहले अपनी शक्ति से घास का पुतला बना कर कुंड में डाला जिस से मार मार कहता हुआ भाला लिए हुए एक पुरुष निकला, जिस को ऋषियों ने प्रमार नाम देकर धार और उज्जैन का देश दिया । उसी भांति बला ने वेद और खड़ग लिए हुए एक पुरुष उत्पन्न किया, एक चुलुक (चुल्लू) जल से जी उठने से इस का नाम चालुक्य हुआ और अन्हलपुर इस की राजधानी हुई । रुद्र ने तीसरा क्षत्री गंगाजल से उत्पन्न किया, यह धनुष लिए काला और कुरुप था, इस से इस का नाम परिहार रख कर पर्वतो और बनों की रक्षा इस को दी । अंत में विष्णु ने चार भुजा का एक मनुष्य चतुर्भुज नामक उत्पन्न किया । इस की राजधानी अकावती (गढ़ मंडल) हुई । इन्हीं चार पुरुषों से क्रम से पँवार, सोलखी, परिहार और चौहान वंश हुए । प्राचीन काल में चौहान लोगों का समवेद, पंच प्रवर, मधु (मध्य ?) शाखा वत्सगोत्र, विष्णु (श्रीकृष्ण) वंश होने से सोमवंश, अम्बिका देवी, अर्बुद अचलेश्वर शिव, भूगुलक्षण विष्णु और कालभैरव क्षेत्रपाल थे।

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भारतेन्दु समग्र ७०४