पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७४९

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स और उस का हम्मीर हुआ । इस हम्मीर का पृथ्वीराज रायम में भी जिक्र है और पृथ्वीराज ही के युद्ध में यह ११९३ ई. में मारा गया । हम्मार के पीछे क्रम में कालकर्ण, महामन्द (महामत्त), राब बच (राव वन्स) और रामचंद्र दए । रावचंद्र का परिवार शहाबुद्दान न सन १२९८ में मारा । कंवल एक पुत्र गयसा बच गया, जो चित्तौर में पाला गया और जिसने भैस रोर में रात्र स्थापन किया । रायन्ना के कानन राय हा जिसन मध्य दश में प्रमारा का राज्य किया और उनके बंगदेव हा जो हुन के राजा हा मैनाल लाग प्रभुन्च किया । गव बंगदेव से वंश परंपरा में और भद नहीं है, कवन समर सिंह के पुत्र हर गज (हागगन. जिसस हाड़ा वंश चला) प्रिसिप साहब वंशावला में विशष मानत हैं । बूंदावाला के मत स बंगदेव न (सन १३४१ ई. में) बंबावदा में राज किया और इन के पुत्र राव देव सिंह ने बूंदी में राज स्थापन किया और अपने पुत्र देव सिंह (संवत् १२९८) को बूंदी राज देकर चले गए । यही राव देव लोधी लोगों के दरबार में बुलाए गए, जो प्रिंसिप साहब के मत से अपने पुत्र हरराज को राज दे कर चले गए । बूंदी परंपर में हरराज का नाम नहीं है, इस से संभव होता है कि हरराज और समरसिंह दोनों व देव के पुत्र है । हाराज ने कुछ दिन राज किया, फिर समरसिंह ने भीलों को जीता था । समरसिंह के पीछे क्रम से ये राजा हुए । राव रनपालसिंह (नापा जी) संवत १३३२. राव हम्मीर (हामाजी वा हामूजी) सं. १३४३, राव बरसिंह वा वीरसिंह सं. १३५३. राव बैरीशल्य वा बैरीसाल वा बीरूजी सं. १४५० (P. 4190. A.D.G.), राव सुभाडदेव वा बाँदा जी सं. १४९०, इनके समय में बड़ा काल पड़ा (ई. १४८७) और समरकंदी अमरकंदी नामक दो भाइयों ने इन को राज से उतार कर बारह बरस राज्य किया, राव नारायण दास ने पिता का राज्य अपने चचा लोगों से लिया । राव सूरजमल ने संवत १५८४ ( 1533 A.D.) में भट्ट लोगों के मत से महाराना रत्न सिंह जी का बध किया, किंतु जेम्स प्रिंसिप साहब के मत से महाराना ने इन्हें मारा । इससे संभव होता है कि इन दोनों राजाओं में ऐसा घोर बैर हुआ कि दोनों मृत्यु के परस्पर कारण हुए । राव राजा सुरतान जी स. १५८८ (1537A.D.), यह पागल थे, इस से पंचों ने इनको राव से अलग कर के नारायणदास के पुत्र अर्जुनराव को राजा किया । इनके बहुत थोड़े ही समय राज के पीछे चित्तौर की लड़ाई में मारे जाने से राजावली में इन की गिनती नहीं हुई । राव राजा सुरजन जी सं. १६११ (1560 A.D.), इन्होंने महाराजाधिराच अकबर से काशी और चुनार पाया और काशी में राजमंदिर बसाया । राव राजा भोज सं. १६८२. इनके समय से कोटा और बूंदी का राज अलग हुआ । राव रतन जी सं. १६६४ (T. 1613 A.D.), इनके पुत्र कुँवर माधवसिंह ने जहांगीर से कोटा पाया और कुँअर गोपीनाथ युवराज हुए । कुँआर गोपीनाथ भी (सं. १६७१) युवराजत्व के समय ही में शांत हुए, इस से उन के पुत्र रावराजा शत्रुशाल राव रत्न जी के गोद बैठे (सं. १६८८) और माधव सिंह कोटा के राजा हुए । यह राजा शत्रुशाल (प्रसिद्ध छत्रसाल) बड़ा वीर हुआ है, जिसने कुलवर्गा जीता और उज्जैन की प्रसिद्ध लड़ाई में १२ राजाओं के साथ मारा गया, १ राव राजा भावसिंह सं. १७१५ (1658 A.D.) इन्होंने औरंगजेब से औरंगाबाद की सूबेदारी पाया । राव राजा अनरुदसिंह सं. १७३८ (P. 1681 A.D.), ये भावसिंह के छोटे भाई के पौत्र थे । राव राजा बुधसिंह सं. १७५२ P. 1710 A.D.) इन्होंने बहादुरशाह की सहायता की थी, किंतु जयपुरवालों ने इन्हें राज्यच्युत कर दिया । महाराव राजा उमेदसिंह सं. १८०१ (1744 A.D.), होलकर की सहायता से 1 १. दारासाहि औरंग जुरे है दोऊ दिल्ली दल एकै गए भाजि एक रहे सैधि चाल में । भयो घोर युद्ध उन माच्यो अति दुंद जहाँ कैसहु प्रकार प्रान बचत न काल में।। हाथी तें उतरि हाड़ा जूझयो लोह लंगर दै एती लाज का मैं चेती लाज छत्रसाल में तन तरवारन में मन परमेश्वर में प्रन स्वामि कारज मैं माथो हर माल में।। २. शिवसिंहसरोज में लिखा है, बुदराव (संवत १७५५) ये महाराज बूंदी के राजा जयसिंह सवाई आमेरवाले के बहनोई थे । बहादुरशाह बादशाह ने इन का बड़ा मान किया । इस बादशाह के यहाँ दूसरे की ऐसी इज्जत न थी । जब सय्यद बारहा ने बादशाह को बेदखल कर आप ही बादशाही नक्कारा बजाते हुए गली कूचों में निकलने लगा तब तो इस शूरवीर से कब रहा जाता था । सय्यदों का मुंह तरवारों की धार से फेर दिया और तमाम उमर बादशाह के यहाँ रहा । कविता इनको बहुत ही अपूर्व है। ROM बूंदी का राजवंश ७०५