पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७५०

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बूंदी फेर लिया। (1747) और फिर विरक्त होकर राज छोड़ कर चले गए । अजीत सिंह सं. १८२७ (1771), महाराव राजाः विष्णुसिंह सं. १८३० । इन्होंने सं.१८७४ में सकार से अहदनामा किया । महाराज राजा रामसिंह, ये वर्तमान बूंदी के महाराव है । संवत् १८७८ में सावन कृष्ण ११ को इन्होंने राज पाया और पूस सुदी ३ स. १८६६ को इनका जन्म है । ये महाराज बड़े धर्मनिष्ठ और संस्कृत के अनुरागी है । सर्कार से इस राज्य की सलामी १७ तोप की नियत की गई है और महाराव राजा श्री रामसिंह जी को जी.सी.आई. और "काउन्सेलर आफ दी इम्प्रेस" (राजराजेश्वरी के सलाहकार) की उपाधि दिल्ली के दरबार में (1877 A.D.) मिली। कोटा की शाखा। राव माधोसिंह सन् १५७९ ई. राव मुकुंद सिंह सन् १६३० ई. राव जगतसिंह सन् १६५७ ई. राव किशवर (किशोर) सिंह सन् १६६९ ई. राव रामसिंह सन् १६८५ ई. राव भीमसिंह सन १७०७ ई. महाराव अर्जुनसिंह सन् १७१९ ई. महाराव दुर्जनशाल (निस्संतान) महाराव अजीतसिंह (विष्णुसिंह के पोते) महाराज छत्रसाल महाराज गुमानसिंह सन्, १७६५ (अपने भाई छत्रशाल की गद्दी पर बैठे) अलिमसिह इनके फौजदार थे । महाराव उम्मेदसिंह सन् १७७० ई. महाराव किशोरसिंह सन् १८१९ ई. महाराव उम्मेदसिंह सन् १८८९ ई. (स.) और कवि लोगों का बड़ा मान दान देनेवाला था । कीनो तुम मान मैं कियो है कब मान अब कीजे सनमान अपमान कीनो कब मैं । प्यारी हंसि बोलु और बोलें कैसे बुद्ध राज हँसि हँसि बोलु हँसि बोलि हौ जू अब मैं ।। हग करि सौं हैं कोरि सौं हैं करि जानत है अब करि सौं है अनसौंहे कीने कब मैं । लीजै भरि अंक जहाँ आये मरि अंक हो न काहू भरि अंक उर अंक देखे अब मैं ।।१।। ऐसी ना करी है काहू आज लौं अनैसी जैसी सैयद करी है ये कलंक काहि चदेंगे। दूजे को नगाड़े बाजै दिली में दिलीश आगे हम सुनि भागै तौ कविंद कहाँ पढ़ेगे।। कहै राव बुद्ध हमें करने हैं युद्ध स्वामि धर्म में प्रसुद्र जेह जान जस मदेंगे। हाड़ा कहवाय कहा हारि करि कदै ताते झारि शमशेर आजु रारि करि करेंगें ।।२।। 45 भारतेन्दु समग्न ७०६