पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७५१

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काश्मीर कुसुम अथवा राजतरंगिणी-कमल 'कोऽन्य: कालमतिक्रांतं नेतुं प्रत्यक्षतां क्षमः । कवीन् प्रजापतींस्त्यक्त्वा रम्यनिर्माणशालिन:'। “भुजतरुवन छायां येषां निषेव्य महौजसां। जलधिरसनामेदिन्यासीदसाधकुतोभया स्मृतिमपि न ते यान्ति क्ष्मापा विना यदनुग्रह प्रकृतिमहते कुर्मस्तस्मै नमः कविकर्मणे'। 1 इस ग्रन्थ में काश्मीर का संक्षिप्त इतिहास संकलित है। राज तरंगिणी के बाद की सारी ऐतिहासिक घटनायें भी इसमें वर्णित है। सन् १८८४ मैं पहली बार 'व मेडिकल हाल' प्रेस, वाराणसी से मुद्रित और भारतेन्दु बाबू के स्वयं के मल्लिक चन्द्र एण्ड कम्पनी से प्रकाशित । दूसरी बार सन् १८८७ मे खंगविलास प्रेस ने इसे छापा। सं. DEDICATION. हे सौभाग्य काश्मीर, केवल ग्रंथकर्ता ही से नहीं इस ग्रंथ से भी तुम से अनेक संबंध हैं। तुम कुसुम जाति हो, यह ग्रंथ भी। काश्मीर के क्षेत्र से दर्शकों का मन प्रसन्न होता है, तुम्हारे दर्शन से हमारा । कश्मीर इस पृथ्वी का स्वर्ग है, तुम हमारे हेतु इस पृथ्वी में स्वर्ग हो। यह ग्रंथ राजतरंगिणी कमल है, तुम वर्ण से राज तरंगिणी कमला ही नहीं हमारी आशाराजतरंगिणी में कमल हो। तरंगिणी गण की रानी भोगवती भागीरथी है, तुम हमारी हृदयपातालवाहिनी राजतरंगिणी हौ। कश्मीर भू स्वर्णमयी नीलमणि-प्रभवा है, तुम भी इन्हीं अनेक संबंधों से समझो या केवल हमारे हृदय संबंध से यह ग्रंथ को समर्पित है। काश्मीर कुसुम ७०७