पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७७५

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बादशाहदर्पण अर्थात् [ हिन्दुस्तान के मुसल्मान बादशाहों के समय और जन्म आदिक मुख्य बातों के वर्णन का चक्र ] इसमें मुसलमान राजाओं का वृतान्त है। अनेक ऐसी भी बातें हैं जिनका वर्णन अन्यत्र कहीं नहीं मिलता। यह सन् १८८४ में पहली बार छपा है। अकबर ने काश्मीर के एक हिन्दू मन्दिर का जिर्णोछार करा उस पर आज्ञा खुदवायी थी वह भी इस ग्रन्थ में प्रकाशित है।- सं. भूमिका रामायण में भगवान बाल्मीकिजी ने कहा है जो वस्तु हुई हैं नाश होंगी, जो खड़ी हैं गिरेगी, जो मिले हैं बिछुड़ेंगे, और जो जीते हैं अवश्य मरेंगे । सच है इस जगत की गति पहिए की आर की भांति है । जो आर अभी ऊपर थी नीचे गई और जो नीचे थी ऊपर हो गई । आधीरात को सूर्य का वह प्रचंड तेज कहाँ है जो दोपहर को था ? दिन की ठंडी किरनों से जी हरा करने वाला चंद्रमा कहाँ है ? संसार की यही गति है । जो भारतवर्ष किसी समय में सारी पृथ्वी का मुकुटमणि था, जिसकी आन सारा संसार मानता था और जो विद्या वीरता और लक्ष्मी का एक मात्र विश्राम था वह आज हीन दीन हो रहा है - यह भी काल का एक चरित्र है। जब से यहाँ का स्वाधीनता सूर्य अस्त हुआ उसके पूर्व समय का उत्तम श्रृंखलाबद्ध कोई इतिहास नहीं है । मुसल्मान लेखकों ने जो इतिहास लिखे भी हैं उनमें आर्यकीर्ति का लोप कर दिया है । आशा है कि कोई माई का लाल ऐसा भी होगा जो बहुत सा परिश्रम स्वीकार कर के एक बेर अपने 'बाप दादों' का पूरा इतिहास लिख कर उनकी कीर्ति चिरस्थायी करेगा। इस ग्रंथ में तो केवल उन्हीं लोगों का चरित्र है जिन्होंने हम लोगों को गुलाम बनाना आरंभ किया । इस में उन मस्त हाथियों के छोटे छोटे चित्र हैं जिन्होंने भारत के लहलहाते हुए कमलवन को उजाड़ कर पैर से कुचल कर छिन्न भिन्न कर दिया । मुहम्मद, महमूद, अलाउद्दीन, अकबर और औरंगज़ेब आदि हन में मुख्य बादशाह दर्पण ७३१ 49