पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७७६

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wake प्यारे भोले भाले हिन्दू भाइयो ! अकबर का नाम सुनकर आप लोग चौकिए मत । यह ऐसा बुद्धिमान शाबु चा कि उसकी वद्धि-बल से आज तक आप लोग उस को मित्र समझते है । किन्तु ऐसा है नहीं । उस की नीति (Policy) अंगरेजों की भांति गूढ़ थी। मूर्ख औरंगजेब उसको समझा नहीं, नहीं तो आव दिन हिन्दुस्तान मुसामान होता । हिन्दू-मुसल्मान में खाना पीना व्याह शादी कभी चल गई होती । अँगरेज़ों को भी जो बात नहीं सूझी वह इस को सूझी थी। यपि उस उर्दू शेर के अनुसार 'बागवाँ आया गुलिस्तां में कि सैयाद आया । जो कोई आया मेरी जान को जल्लाद आया ।' क्या मुसल्मान क्या अंगरेज भारतवर्ष को सभी ने जीता. किन्तु इन में उनमें तव भी बड़ा प्रभेद है । मुसलमानों के काल में शत सहस्त्र बड़े बड़े दोष थे किन्तु दो गुण थे । प्रथम तो यह कि उन सबोने अपना वर यहीं बनाया था इससे यहाँ की लक्ष्मी यही रहती थी । दूसरे बीच बीच में जब कोई आग्रही मुसल्मान बादशाह उत्पन्न होते थे तो हिन्दुओं का रक्त भी उष्ण हो जाता था इससे वीरता का संस्कार शेष चला आता था । किसी ने सच कहा कि मुसल्मानी राज्य हैजे का रोग है और अंगरेजी क्षयी का । इनकी शासनप्रणाली में हम लोगों का धन और वीरता नि :शेष होती जाती है । बीन में जाति-पक्षपात. मुसलमानों पर विशेष दृष्टि आदि देख कर लोगों का जी र भी उदास होता है । यद्यपि लिबरल दल से हमलोगों ने बहुत सी आशा बांध रक्खी है पर वह आशा ऐसी है जैसे रोग असाध्य हो जाने पर विषवटी की आशा । जो कुछ हो, मुसल्मानों की भांति इन्होंने हमारी आँख के सामने हमारी देवमूर्तियां नहीं तोड़ी और स्त्रियों को बलात्कार से छीन नहीं लिया. न घास की भांति सिर काटे गए और न जबरदस्ती मुंह में चूक कर मुसल्मान किए गये । अभागे भारत । यही बहुत है । विशेषकर अंगरेजो से हम लोगों को जैसी शुभ शिक्षा मिली है उसके हम इनके ऋणी है । भारत कृतघ्न नहीं है । यह सदा मुक्तकंठ से स्वीकार करेगा कि अंगरेजों ने मुसलमानो के कठिन दंड से इभको छुड़ाया और यद्यपि अनेक प्रकार से हमारा धन ले गए किन्तु पेट भरने को भीख मांगने की विद्या भी सिखा गए । मेरे प्रमातामह राय गिरधरलाल साहब, जो यावनी पिया के बड़े भारी पंडित और काशीस्व दिल्ली के शहज़ादो के मुख्य दीवान थे, उन की इच्छा से दिल्ली के प्रसिद्ध विद्वान सेयद अहमद ने एक ऐसा चक्र बनाया था, जिसमे तैमूर से लेकर शाह आलम तक सब बादशाहों के नाम आदि लिखे थे । उस फारसी ग्रंथ से इस में बहुत सी बाते ली गई है, इस कारण तैमूर के पूर्व के बादशाहों का वर्णन इतना पूरा नही है जितना तैमूर के पीछे है । फिर मेरे मातामह राय विरोधरलाल ने बहादुरशाह के काल के आरंभ तक शेष पत्त संग्रह किया और और बातें और स्थानों से एकन की गई है । इसमें परंपरागत बहुत से बादशाहों के नाम है जो और इतिहास में नहीं मिलते। यद्यपि इस से कुछ विशेष उपकार नहीं है किन्तु हम लोगों को इस से बहुत सा कौतूहल शांत होगा जब हमलोग इस में बादशाहो की माता आदि के नाम जो अन्य इतिहास में नहीं है. पदेंगे । 4 भारतेन्दु समग्र ७३२