पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८०४

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was सदा के हेतु अस्त हो गया । पीछे शहाबुद्दीन ने कन्नौज का राज भी ले शिया और धनारस को भी ध्यस किया ।। भाई के मरने पर शहाबुद्दीन सन १२०२ में पूरा पादशाइ हुआ. किंतु आठ अरस भी राज्य करने नहीं पाया' था कि अदमाशों के हाथ से (१२१०) मारा गया । उस समय हिंदुस्तान उस के पास कुतपुषीन एवक के हाथ में था क्योंकि इसी को वह यहां का प्रबंध सौप गया था । यो भारतवर्ष के राजेश्वरों का राज्य एक दास के अधीन कुतुबुद्दीन ऐबक को शहाबुदीन के भतीजे महमूद गोरी ने बादशाह का खिताब भेज दिया और तब से हिंदुस्तान का राज्य निष्कटक इस के अधिकार में आया ! चार बरस राज्य कर के वह मर गया । इस का पुत्र आरामशाह साल भर भी राज्य करने न पाया था कि इस के बहनोई शम्सुलीन ने जो पहिले एक गुलाम था इस को सिद्धासन से उतार मुकुट अपने सिर पर रक्सा । इस के समय में बंगाणा, मुलतान, कच्छ, सिंधु, कन्नौज, विहार, माजया और ग्वालियर तक दिल्ली के राज्य में मिल चुका था । इस के मरने के पीछे इस का बेटा रुकुनुधीन फोरोज बादशाह हुआ किंतु यह ऐसा नष्ट था कि इस को उतार कर लोगों ने इस की अहिन रजिया बेगम को बादशाह बनाया । साढ़े तीन बरस राज्य कर के पलवाइयों के हाथ से यह मारी गई । इस का भाई मुइजुधीन बहराम दो बरस दो महीना बादशाह रहा । फिर लोगों ने इस को कैद कर के इस के भतीजे अलाउद्दीन मसऊद को पादशाह बनाया । किंतु चार बरस बाद यह भी मारा गया और इस का चाचा नसीरुद्दीन महमूद बादशाह हुला । अन्तिमश का दास और दामाद बलबन इस के समय में मंत्री था और इसने नरवर और चदेरी का किला तथा गजनी का राज्य जय किया था । सन १२६६ में नसोर के मरने पर बलवन बावज्ञाह हुआ और श्रीस बरस राज्य कर के ८० बरस की अवस्था में मर गया । इसका पोता कैहुबाद राजा हुआ किंतु यह ऐसा विषयी था कि वो बरस भी राज्य न करने पाया कि लोगों ने इसको मार डाला और दिल्ली का राज्य गुलामों के वंश से निकल कर खिलजियों के हाथ में आया । पंजाब से आकर सत्तर वर्ष की अवस्था में जलाराधीन खिलजी तख्त पर बैठा । मालया और उज्जैन उस के समय में विजय हुए । इस के भतीजे अलाउदीन ने सन १२९४ में देवगढ़ भी जीत लिया । किंतु दुष्ट अलाउदीन ने इस विजय के पीछे ही अपने युद्ध चाचा को प्रयाग में मिलने के समय कटवा दिया और आप बादशाड हुआ । (१२९५) बादशाह होते ही इसने जलालुद्दीन के दो लड़के और उस के पक्षपाती कई सर्दारों को कल्ल किया और फिर बड़ी निर्दयता से गुजराज पीता । अनेक प्रकार के दुखदाई कर प्रचलित किए । १३०० में रणथम्भौर का प्रसिद्ध किला एक बरस की लड़ाई में टूटा और धारणागतवत्सल परम वीर हम्मीर राजा सकुटुंध वीरों की गति को गया । १३०३ में इस ने चित्तौर पर चढ़ाई की । राजा रतन सेन से प्रथम मित्रता दिखला कर फिर विश्वास कर के उन को बंदी किया किंतु रानी पद्मावती अपनी बुद्धि और वीरता से राजा को छुड़ा ले गई । फिर तो क्षत्रियों ने जीवनाशा छोड़कर बड़ा युद्ध किया और सब के सब पीरगति को गए । भवानियाँ सब चिता पर पैठ कर भस्म हो गई । १३०६ में देवगढ़ के राजा के कर न देने से फिर से उस पर चढ़ाई हुई और किला तोड़ा । १३१० में कर्नाटक में दारसमुद्र के राजा पल्लालदेव को और तेलंग के राजा लक्षधर को जीता । १३११ में विद्रोह के कारण एक दिन में इस ने अपने पंद्रह हजार मुगल सिपाही कटवा दिए । यह अति उग्र अभिमानी और निष्ठुर था । इस के मृत्यु के वर्ष १३१६ में देवगढ़ के राजा के जामाता राजा हरपाल ने देषगढ़ और गुजराज को जीतकर स्वतंत्र कर दिया । इसके मरने पर मलिक काफूर नामक एक इस के गुलाम ने जिसे इसने सरि बनाया था इसके दो बड़े बेटों को अंधा कर दिया और तीसरे मुवारक को अंधा करते समय आप ही मारा गया । कुतुबुद्धीन मुबारक ने बादशाह होकर (१३१७) अपने छोटे भाई को अंधा किया और बहुत से सदारों को मार डाला । यह अति विषयी और मूर्ख था । इस के एक हिंदू गुलाम ने, जिस का मुसल्मान होने पर खुसरो नाम हुआ था, १३१९ में मलावार जीता और १३२० में मुबारक को सकुटुम्ब १. मीर मुहम्मदशाह मंगोल नामक एक सरि पर अपनी एक उपपली से व्यभिचार के संदेह से जलाउग्रीन ने क्रोष करके के अध की बज्ञा दी थी। यह हम्मीर की शरण गया । वादशाह ने हम्मीर से मगोल को मांगा किंतु धीर पीर हम्मीर ने अपने शरणागत को नहीं दिया इसी पर अाउदीन चढ़ दौड़ा । राजा हम्मीर के विषय में यह दोहा गतप्रसिद्ध है. सिंह सुवन सुपुरुष अयन, दलि फले इक सार । तिरिया तेल हमीर हठ चढ़े न दुजी भार । भारतेन्दु समग्न ७६० Skoltuk