पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८०८

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अकबर अति बुद्धिमान और परिणामदर्शी था । आलस्य तो इस को छू नहीं गया था । प्रथमावस्था में तो कुछ भोजन पानादि का व्यसन भी था किंतु अवस्था बढ़ने पर यह बड़ा ही सावधान हो गया था । बरस में तीन महीना मांस नहीं खाता था । आदित्यवार को मांस की दुकानें बंद रहती थी । जिजिया नामक कर और प्रत्यक्ष गोहिंसा उसने उठा दिया था। कर का भी बंदोवस्त अच्छा किया था । महाराज टोडर मल्ल (टन्नन खत्री). अबुलफजल. खानखाना मानसिंह, तानसेन, गंग, जगन्नाथ पंडितराज और महाराज बीरबल आदि सब प्रकार के चुने हए मनुष्य इस की सभा में थे । कागज. हुंडी, बही आदि का नियम इन्हीं टोडर मल्ल का बाँधा हुआ है। विधवाविवाह के प्रचार में भी इस ने उद्योग किया था और तीर्थों का कर भी छूट गया था । भूमि की उत्पत्ति से तृतीयांश लिया था और पंद्रह सूबों में राज बटा हुआ था । अकबर के मरने पर सलीम नूरुद्दीन जहांगीर के नाम से सिंहासन पर बैठा । इस ने बहुत से कर जो अकबर के समय भी बच गए थे बंद कर दिये । नाक कान काटने की सजा. बादशाही फौज का जमींदार या प्रजा से रसद लेना और अफीम और मद्य का प्रचार इस ने बंद कर दिया । महल में एक सोने की जंजीर लटकाई थी कि किसी दीन दुखी की पुकार जो कोई राजपुरूष न सुनै तो वह जंजीर हिला दे । जंजीर की घटी के शब्द पर वह आप बाहर निकल आता था और न्याय करता था । किंतु १६०६ में जब उसका लड़का खुसरो पंजाब में बागी हो गया था तब जहाँगीर ने उसके सात सौ साथियों को बड़ी निर्दयता से उस के आँस के सामने मरवा डाला । १८१० से चार बरस तक मलिक अंबर और अहमद से लड़ाई होती रही । १६१४ में खुर्रम (शाहजहाँ) के साथ एक बड़ी सेना इस ने उदयपुर जीतने को भेजी थी, किन्तु राजा ने मेल कर लिया । १६११ में जहाँगीर ने नूरजहाँ से व्याह किया । नूरजहाँ का पिता गियासबेग ईरान का एक धनी था किन्तु विपत्ति पड़ने से वह व्यापार को हिन्दुस्तान आता था । मार्ग में नूरजहाँ का जन्म हुआ । गियास यहाँ आकर अकबर के दरबार में भरती हो गया था । उसी समय से जहांगीर की नूरजहां पर दृष्टि थी. अकबर के डर के मारे कुछ कर न सका और शेर अफगन नामक एक पठान अमीर के साथ जिसे अकबर ने बंगाल और बिहार में जागीर दी थी. नूरजहाँ का ब्याह हो गया था । बादशाह होते ही जहाँगीर ने बंगाल के सूबेदार को नूरजहां को किसी प्रकार भेज देने को लिखा । शेर अफ़गन बड़ी वीरता से मारा गया और नूरजहाँ बादशाह के पास भेज दी गई । चार बरस तक जहाँगीर ने इसकी सुश्रुषा करके इसके साथ विवाह किया । फिर तो नूरजहाँ ही सारी बादशाहत करती थी ; जहाँगीर नाम मात्र को बादशाह था । यह स्त्री चतुर भी अतिशय थी । १६२१ में जहाँगीर का बड़ा बेटा खुसरो मर गया । परवेज़ मूर्ख था. इससे जहाँगीर ने खुर्रम शाहजहाँ को ही अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहा । किन्तु नूरजहाँ की बेटी जहांगीर के चौथे पुत्र शहरयार को ब्याही थी. इससे नूरजहाँ ने उसी को बादशाह बनाने की इच्छा से जहाँगीर का मन शाहजहाँ से फेर दिया । पिता का मन फिरा देख शहाजहाँ बागी हो गया । दक्षिण में और बंगाने में यह बराबर लड़ता रहा और बादशाही फौज इस का पीछा किए फिरती थी । अंत में एक अर्जी भेजकर बाप से इसने अपराध की क्षमा चाही और अपने दो लड़कों को दरबार में भेज कर आप दक्षिण की सूबेदारी पर चला गया । नूरजहाँ ने एक बेर बंगाल के सूबेदार प्रसिद्ध वीर महाबतखाँ को हिसाब दने को बुला भेजा । महाबतखाँ इस आज्ञा से शंकित होकर आया सही, किन्तु पाँच हज़ार चुने हुए राजपूत अपने साथ लाया । इस समय जहाँगीर काबुल जाता था । ज्योंही झेलम पार इस की सैना उतर नुकी थी कि महाबतखाँ ने बादशाह और बेगम को घेर कर अपने अधिकार में कर लिया । किन्तु नूरजहाँ की चालाकी से कुछ दिन पीछे (१६२६) जहांगीर महाबतखाँ के अधिकार से निकल आया । १६२७ में कश्मीर में जहाँगीर ऐसा रोगग्रस्त हुआ कि लाहौर में आकर साठ बरस की अवस्था में मर गया । आसफ़खाँ नामक नूरजहाँ के भाई ने जिसके हाथ में साग राज्यचक्र था खुसरो के बेटे दावरबख्श को नाममात्र बादशाह कर के आप काम काज करने लगा और शाहजहाँ को दक्खिन से बुला भेजा । शाहजहाँ के पहुंचने पर आसफला ने दावरबख्श को मार डाला । कहते हैं कि चौदह महीने यह नाम मात्र को बादशाह था । इंग्लिास्तान के बादशाह जेम्स (१) का एलची सर टामस रो जहाँगीर की सभा में आया था । शाहजहाँ १६२८ में बड़ी धूम धाम से दिल्ली के तस्न पर बैठा । डेढ़ करोड़ रुपया उसी दिन व्यय हुआ था। महाबतखाँ और आसफ़खाँ इसके मुख्य मंत्री थे । दिल्ली फिर से बसाई गई । सात करोड दस लास रुपया लगाकर तख़तताऊस (मोर का सिंहासन) बनवाया । आगरे में ताजगंड नामक प्रसिद्ध स्थान इसी भारतेन्दु समग्र ७६४