पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८१२

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ग्रंथ का उपष्टम्भक कार अकबर ने काश्मीर में हिन्दुओं के हेतु एक मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था, क्योंकि उस का मुसल्मान लोग तोड़ डाला करते थे । और उस पर उस की एक आज्ञा भी खुदी हुई है, जो यहाँ प्रकाशित होती है । इस से लोग उसका चित्त देखें। किताबए अबुलफजल बरलौह संग कलीसाए कश्मीर कि बमुजिब हुक्म अकबर तामीर याफ्त : बूद व आँरा- औरंगजेब आलमगीर गाज़ी मिस्मार साख्त । इलाही बहर कुजा कि मीनिगरम् जूयाये तवानद व बहर जुबान कि मीशनूम गोयाये तवानद । शैर - कुफ्रो इस्लाम दर रहश पोयाँ । वहद : लाशरीक वलह गोयाँ । अगर मस्जिदस्त बयाद तो नार : कुट्स मीज़नंद व अगर कलीसास्ता बशौक तो नाकम मीजुंबानंद । और - गहे मुहतकिफ दैरम व गहे साकिने मस्जिद । यानी कि तुरा मीतलबम् खान : बखान:11 गर्चे खासान तररा बकुफ्रो इस्लाम कारे न पस ई हर दोरा दरपर्दा : इसरार तो बारी न : । शैर - कुफ्र काफिर रा व दीन दीनदार रा । जर्र : ददै दिल अत्तार रा ।। ई खान : कि बनीयत तालीफ कुलूब मूहिदान हिन्दुस्तान खसूसा माबूद परस्ता अर्सए कश्मीर तामीर याफ्त: । शैर- बफर्माने खदीवे तख्तो अफसर । चिरागे आफरीनश शाह अकबर ।। हरखान : खराब कि नज़र बर सिद्क न : अंदाख्त : ई खान : रा ख़राब साजद बायद कि नखस्त मोबिद खुद रा बर अंदाजद गर्चे नज़र बदिल अस्त बाहम : साजनीस्त व अगर चश्म बर आबो गिलस्त हम : अंदारुतनीस्त । और खुदावंदा चु दारी दादी। मदारे कार नीयत निहादी ।। तुई बारगाहे नीयत आगाह । पेशे दादी नीयते शाह ।। हे परमेश्वर ! जिस स्थान को देखता हूँ वहाँ सब तेरे ही खोज में हैं और जिस से सुनता हूँ तेरी ही बात करते हैं । धर्माधर्म सब तेरे ही मार्ग में चलते हैं और एक ब्रह्माद्वैत ही का भाषण करते हैं । यदि तेरे वंदना के स्थान हैं तो वहाँ तेरे पवित्र नाम की शब्दध्वनि करते हैं और यदि देवस्थान हैं तो वहाँ सब तेरे ही अभिलाषा में शंखनाद करते हैं । कभी मैं मूर्तिमंदिर की परिक्रमा करता हूँ और कभी तेरे वंदनालय में रहता हूँ, अर्थात् तुझी को घर घर ढूँढ़ता हूँ । यद्यपि जो लोग तुझ में ही लवलीन हो रहे हैं, उन्हें इस द्वैतता से कुछ प्रयोजन नहीं और इन दोनो को तेरे अंतर भेद में गम्य नहीं । मूर्तिपूजकों को मूर्तिपूजा और वंदनावालों को वंदना किसी प्रकार चित्तरोग की शांति है। यह मंदिर भारतवर्ष के ब्राहमद्वैतवादियों के विशेष कर काश्मीर प्रांत के प्रिय मूर्तिपूजकों के चित्त तोषार्थ सिंहासन और मुकुट के स्वामी साम्राज्य के मणिद्वीप महाराजाधिराज अकबर की आज्ञा से बनाया गया । जो सत्यानाशी सत्य पर दृष्टि न रखकर इस घर को गिरावेगा वह मानों अपने इष्ट का मंदिर ढहावेगा । यदि ईश्वर से सच्चे चित्त से संबंध है तो सब मत के स्थानों को बनाना चाहिये और मिट्टी पत्थर पर दृष्टि है तो सब को गिराना चाहिये। हे ईश्वर ! तू सब कर्मों के तत्व का समझनेवाला है और कर्मों की मूल मति है और तू ही हमलोगों की अंतर मति को जानता है और तू ही ने राजा के राजा योग्य मति दी है। किन्तु इस आज्ञापत्र पर दुष्ट औरंगजेब ने कुछ ध्यान न दिया और अपनी आज्ञा से इसे तोड़वा दिया ।

भारतेन्दु समग्र ७६८ बर बर व शाह