पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८२८

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रामायण का समय सं. सन् १८८४ में लिखा गया यह लेख यह सिद्ध करता है कि भारतेन्दु जी अच्छे पुरातत्ववेत्ता भी थे । - रामायण का समय (रामायण बनने के समय की कौन कौन बातें विचार करने के योग्य है) पुराने समय की बातों को जब सोचिये और विचार कीजिये तो उनका ठीक ठीक पता एक ही बेर नहीं लगता । जितने नये नये ग्रंथ देखते जाइए उतनी ही नई नई बातें प्रकट होती जाती है । इस विद्या के विषय में बुद्धिमानों के आज कल दो मत हैं । एक तो वह जो बिना अच्छी तरह सोचे विचारे, पुराने अंग्रेजी विद्वानों की चाल पर चलते हैं और उसी के अनुसार लिखते पढ़ते भी है और दूसरे वे लोग जिनको किसी बात का हठ नहीं है, जो बातें नई जाहिर होती गई उनको मानते गये । दूसरा मत बहुत दुरुस्त और ठीक तो है, पर पहिला मत माननेवालों को ऐंटिक्वेरियन (Antiquarian) बनने का बड़ा सुभीता रहता है । दो चार ऐसी बंधी बातें हैं जिन्हें कहने ही से वे ऐंटिक्वेरियन हो जाते हैं । जो मूर्तियाँ मिलैं वह जैनों की हैं, हिन्दू लोग तातार से वा और कहीं पच्छिम से आये होंगे, आगे यहाँ मूर्तिपूजा नहीं होती थी इत्यादि कई बातें बहुत मामूली हैं, जिनके कहने ही से आदमी ऐंटिक्वेरियन हो सकता है । जो कुछ हो इस बात को लेकर हम इस समय हुज्जत नहीं करते, हम सिर्फ यहाँ वाल्मीकीय रामायण में से ऐसी थोड़ी सी बातें चुन कर दिखाते हैं जो बहुत से विद्वानों की जानकारी में आज तक नहीं आई हैं। रामायण बनने का समय बहुत पुराना है, यह सब मानते हैं । इससे उसमें जो बातें मिलती हैं वे उस जमाने में हिन्दुस्तान में बरती जाती थीं, यह निश्चय हुआ । इससे यहाँ वे ही बातें दिखाई जाती हैं जो वास्तव में पुरानी हैं पर अब तक नई मानी जाती हैं और विदेशी लोग जिनको अपनी कहकर अभिमान करते हैं। रामायण कैसा सुंदर ग्रंथ है और इसकी कविता कैसी सहज और मीठी है, इसे जिन लोगों ने इस की सैर की है वे अच्छी तरह जानते हैं, कहने की आवश्यकता नहीं । और इसमें धर्मनीति कैसी चाल पर कही है, इससे हम यहाँ पर और बातों को छोड़ कर केवल वही बातें दिखाना चाहते हैं जो प्राचीन विद्या (ऐंटीक्केटी) से संबंध रखती हैं। बालकांड - अयोध्या के वर्णन में किले की छत पर यंत्र रखना लिखा है । यंत्र का अर्थ कल है । इस से यह स्पष्ट होता है कि उस जमाने में किले की बचावट के हेतु किसी तरह की कल अवश्य काम में लाई १. यंत्र उस को कहते है जिस से कुछ चलाया जाय । श्रीगीता जी में लिखा है "ईश्वर : सर्वभूतानां हृदेशे ऽर्जुन तिष्ठति । प्रामयन् सर्वभूतानि यन्त्राकानि मायया ।" ईश्वर प्राणियों के हृदय में रहता है और वह भूत मात्र को जो (मानो) कल पर बैठे है माया से घुमाता है । तो इस से स्पष्ट होता है कि यंत्र से इस श्लोक में किसी ऐसी चीज से मतलब है जो चरखे की तरह घूमती जाय । कल शब्द भी हिंदी है. "कल गतौ से बना हो वा "कल पेरणे" से निकला होगा (कवि-कल्पद्रुम कोष देखो) दोनों अर्थ से उस चीज़ को कहेंगे जो आप चलै वा दूसरे को चलावै ।

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भारतेन्दु समग्न ७८४