पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८२९

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जाती थी, चाहे वे तोप हों या और किसी तरह की चीज़ (या यंत्र से दूरबीन मतलब हो) । शतघ्नी ' यह उस चीज़ को कहते हैं जिस से सैकड़ों आदमी एक साथ मारे जा सकें। कोषों में इस शब्द के अर्थ यह दिये हैं कि शतघ्नी उस प्रकार की कल का नाम है जिस से पत्थर और लोहे के टुकड़े छूट कर बहुत से आदमियों के प्राण लेते हैं और इसी का दूसरा नाम वृश्चिकाली है । (सर राजा राधाकान्त देव का शब्दकल्पद्रुम देखो ।) इस से मालूम होता है कि उस समय में तोप या ठीक उसी प्रकार का कोई दूसरा शस्त्र अवश्य था । अयोध्या के वर्णन में उस की गलियों में जैन फकीरों का फिरना लिखा है, इस से प्रकट है कि रामायण के बनने से पहिले जैनियों का मत था । जिस समय राजा दशरथ ने अश्वमेघ यज्ञ किया उस समय का वर्णन है कि रानी कौशिल्या ने अपने हाथ से घोड़े को तलवार से काटा । इस बात से प्रगट होता है कि आगे की स्त्रियों को इतनी शिक्षा दी जाती थी कि वह शस्त्रविद्या में भी अति निपुणता रखती थीं। अभी एशियाटिक सोसाइटी के जरनल में पंडित प्राणनाथ एम.ए. ने इसका खंडन किया है कि वराहमिहर के काल में श्रीकृष्ण की पूजा ईश्वर समझ के नहीं करते थे और बराहमिहर के श्लोकों ही से श्रीकृष्ण की पूजा और देवतापन का सबूत भी दिया है । और भी बहुत से विद्वान इस बात में झगड़ा करते हैं । और योरोप के विद्वनों में बहुतों का यह मत है कि श्रीकृष्ण की पूजा चले थोड़े ही दिन हुए, पर ४०वें सर्ग के दूसरे श्लोक में नारायण के वास्ते दूसरा शब्द वासुदेव लिखा है और फिर पच्चीसवें श्लोक में कपिलदेव जी को वासुदेव का अवतार लिखा है ; इससे स्पष्ट प्रगट है कि उस काल से श्रीकृष्ण को लोग नारायण कर के जानते और मानते है। अयोध्याकाण्ड २०वें सर्ग के २९ श्लोकों में रानी कैकेयी ने राम जी को वन जाते समय आज्ञा दिया कि मुनियों की तरह तुम भी मांस न खाना, केवल कंदमूल पर अपनी गुजरान करना । इससे प्रकट है कि उस समय मुनि लोग मांस नहीं खाते थे । ३ ३०वें सर्ग के ३७ श्लोक में गोलोक का वर्णन है । प्राय: नये विद्वानों का मत है कि गोलोक इत्यादि पुराणों के बनने के समय के पीछे निकाले गए हैं और इसी से सब पुराणों में इन का वर्णन नहीं मिलता । किन्तु १. शतघ्नी को भी यंत्र करके लिखा है । शतघ्नी कौन चीज है इसका निश्चय नहीं होता । तीन चीज़ में इस का संदेह हो सकता है, एक तोप, दूसरे मतवाले, तीसरे जाहीरे में । इस के वर्णन में जो जो लक्षण लिखे हैं उन से तोप का तो ठीक संदेह होता है, पर यह मुझे अब तक कहीं नहीं मिला कि ये शतघ्नियां आग के बल से चलाई जाती थीं, इसीसे उनके तोप होने में कुछ संदेह हो सकता है । मतवाले से शतघ्नी के लक्षण कुछ नहीं मिलते, क्योंकि मतवाले तो पहाड़ों वा किलों पर से कोल्हू की तरह लुढकाये जाते हैं और इस के लक्षणों से मालूम होता है कि शतघ्नी वह वस्तु है जिस से पत्थर छूटें । जहमीरा वा जम्हीरा एक चीज़ है, उस से पत्थर छूट छूट कर दुश्मन की जान लेते हैं (हिंदुस्तान की तबारीख में मुहम्मद कासिम की लड़ाई देखो) । इस से शतघ्नी के लक्षण बहुत मिलते हैं । पर रामायण में लिखा है कि लोहे की शतघ्नी होती थीं और फिर सुंदरकांड में टूटे हुए वृक्षों की उपमा शतघ्नी की दी है । इससे फिर संदेह होता है कि हो न हो यह तोप ही हो । रामायण के सिवा और पुराणों में भी किले पर शतघ्नी लिखा है ? (मत्स्य-पुराण में राज्यधर्म वर्णन में) दुर्गेयंत्रा : प्रकर्तव्या : नाना प्रहरणन्विता :। सहस्रघातिनो राजस्तैस्तुरक्षाविधीयते ।।१।। दुर्गञ्च परिस्वोपेत वप्राट्टालसंयुतं । शतघ्नी यंत्र मुख्यैश्च शतशश्च समावृतं ।।२।। इस में ऊपर के श्लोकों में शतघ्नी के बदले सहस्रघाती शब्द है (यहाँ शत और सहन शब्दों से मुराद अनगिनत से है) । तोप की भाँति सुरंग उड़ाना भी यहाँ के लोग अति प्राचीन काल से जानते है । आदि पर्व का ३७८ श्लोक देखो । सुरंग शब्द ही भारत में लिखा है। २. भारत के भी आदि पर्व का २४७ से २५३ श्लोक तक और २४२७ से २४३२ श्लोक तक देखो, श्रीकृष्ण को परब्रह्म लिखा है। और भी भारत में सभी स्थानों में है, उदाहरण के हेतु एक पर्व मात्र लिखा । ३. यहाँ मांस से बिना यज्ञ के मांस से मुराद होगी । रामायण का समय ७८५