पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८३५

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20h मलिक, फहर, गालिब, लबी, काब, मिरह, कलाव, फजी, अबद्मनाफ, हाशिम, अब्दुल मतलब, अब्दुल्लाह और इनके अबुल कासिम मुहम्मद । अहदुलमतलब के अनेक पुत्र थे, जैसा हमज़ा, अब्बास, अबूतालिब, अबुल्हब, अईदाक । कोई कोई हारिस, हजब, हकूम, जरार जुबैर, कासमे असगर, अबदुलकाबा और मकूम को भी कुछ विरोध से अबदुल मतलब का पुत्र मानते हैं । इन में अबदुल्लाह और अबूतालिब एक मां से हैं । अबूतालिब के तीन पुत्र अकील, जाफर और अली । यह अली महात्मा मुहम्मद के मुसलमानी सत्य मत प्रचार करने के मुख्य सहायक और रात दिन के इनके दुख-सुख के साथी थे और यह अली जब महात्मा मुहम्मद ने दूतत्व का दावा किया तो पहिले पहल मुसल्मान हुए। महात्मा मुहम्मद की माँ का नाम आमिना है, जो अबद्मनाफ के दूसरे बेटे वहब की बेटी है और आदरणीय अली की माँ का नाम फातमा है, जो असद की बेटी है और यह असद हाशिम के हैं। इससे मुहम्मद और अली पितृकुल और मातृकुल दोनों रीति से हाशिमी हैं । महात्मा मुहम्मद १२वीं रबीउलऔवल सन् ५६९ ईस्वी को मक्का में पैदा हुए। महात्मा मुहम्मद के पिता के इन के जन्म से पूर्व (एक लेखक के मत से इन के जन्म के दो वर्ष पीछे) मर जाने से उनके दादा इन का लालन पालन करते थे । अरव के उस समय की असभ्य रीति के अनुसार कोई दाई अनाथ लड़के को दूध नहीं पिलाती थी और इस में वहाँ की स्त्रियाँ अमंगल समझती थीं, किन्तु अलीमा नामक एक स्त्री ने इन को द्ध पिलाना स्वीकार किया । इस दाई को बालक ऐसा हिए लग गया कि एक दिन अलीमा ने आकर महात्मा मुहम्मद की माता अमीना से कहा कि मक्के में संक्रामक रोग बहुत से होते हैं इस से इस बालक को मैं अपने साथ जंगल में ले जाऊंगी । उन की माँ ने आज्ञा दे दी और साढ़े चार बरस तक महात्मा मुहम्मद अलीमा के साथ बन में रहे । परंतु इनके दैवी चमत्कार से कुछ शंका करके दाई फिर इनको इन की माता के पास छोड़ गई । इन को छ: बरस की अवस्था में इन की माता अमीना का भी परलोक हुआ और आठ बरस की अवस्था में इन के दादा अब्दुल मतलब भी मर गए । तब से इन के सहोदर पितृव्य अबूतालिब पर इन के लालन पालन का भार रहा । अबूतालिब महात्मा मुहम्मद के बारह और पितृव्यों में इन के पिता के सहोदर भ्राता थे । हाशिम महात्मा मुहम्मद के परदादा का नाम था और यह मनुष्य ऐसा प्रसिद्ध हुआ कि उस के समय से उस के वंश का नाम हाशिमी पड़ा । यहाँ तक कि मक्का और मदीने का हाकिम अब भी "हाशिमियों के राजा” के पद से पुकारा जाता है । अब्दुल मतलब महात्मा मुहम्मद को बहुत चाहते थे और नाम भी उन्हीं का रक्खा हुआ था । इस हेतु मरती समय अबूतालिब को बुला कर महात्मा की बाँह पकड़ा कर उन के पालन के विषय में बहुत कुछ कह सुन दिया था । अबूतालिब ने पिता की शिक्षा अनुसार महात्मा मुहम्मद के साथ बहुत अच्छा बरताव किया और इन को देश और समय के अनुसार शिक्षा दिया और व्यापार भी सिखलाया। उन्होंने किस रीति-मत से विद्या शिक्षा किया था इस का कोई प्रमाण नहीं मिला । पचीस बरस की अवस्था तक पशु-चारण के कार्य में नियुक्त थे । चालीस बरस की अवस्था में उन का धर्म भाव स्फूर्ति पाया । ईश्वर निराकार है और एक अद्वितीय है ; उनकी उपासना बिना परित्राण नहीं है। यह महासत्य अरब के बहुदेवोपासक आचारभ्रष्ट दुदति लोगों में वह प्रचार करने को आदिष्ट हुए । तैंतालिस बरस की अवस्था के समय में अग्निमय उत्साह और अटल विश्वास से प्रचार में प्रवृत्त हुए । “रौजतुः शोहदा" नामक मुहम्मदीय धर्म ग्रंथ में उन की उक्ति कह कर ऐसा उल्लिखित है । "हमारे प्रति इस समय ईश्वर का यह आदेश है कि निशा जागरण कर के दीन हीन लोगों की अवस्था हमारे निकट निवेदन करो, आलस्य-शय्या में जो लोग निद्रित है उन लोगों के बदले तुम जागते रहो, सुख-गह में आनंद विहवल लोगों के लिए अवर्षण करो ।” पैगंबर महम्मद जब ईश्वर का स्पष्ट आदेश लाभ करके ज्वलंत उत्साह के साथ पौत्तलिकता के और पापाचार के विरुद्ध खड़े हुए और “ईश्वर एक मात्र अद्वितीय है" यह सत्य स्थान स्थान में गंभीरनाद से घोषणा करने लगे. उस समय वह अकेले थे । एक मनुष्य ने भी उन को सम विश्वासी रूप से परिचित होकर उन के उस कार्य में 1. An Ethiopian Female Slave. XOX पंच पवित्रात्मा ७९१