पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८३६

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सहानुभूति दान नहीं किया । किन्तु उन्हों ने किसी की मुखापेक्षा नहीं किया, किसी का अणु मात्र भय नहीं किया, बुद्धि-विचार-तर्क की तृसीमा में भी नहीं गये, प्रभु का आदेश पालन करना ही उन का दृढ़ व्रत था । जब वह ईश्वर के आदेश से “ला इलाह इल्लिल्लाह" (ईश्वर एक मात्र अद्वितीय है) इस सत्य प्रचार में प्रवृत्त हुए, तब सब अरबी लोग, उन के कई एक पितृव्य और समस्त ज्ञाति संबंधी निज अवलंबित धर्म के विरुद्ध वाक्य सुन कर भयानक क्रोधांध हुए और उनके स्वदेशीय और आत्मीय गण “महम्मद मिथ्यावादी और ऐंद्रजालिक हैं" इत्यादि उक्ति कहके उनके प्रति और सबों का मन विरक्त और अविश्वस्त करने लगे। स्वजन संबंधियों के द्वारा क्लेश अपमान प्रहार यंत्रणा आदि उन को जितनी सहय करनी पड़ती थी उतनी दूसरे किसी महापुरुष को नहीं सहनी पड़ी । विपरीत लोगों के प्रस्तराघात से उनका शरीर क्षत विक्षत हुआ था । किसी के प्रातराघात से उनका दो दाँत भग्न और ओठ विदीर्ण तथा ललाट और बाहु आहत हुआ था । किसी शत्रु ने उनको आक्रमण करके उन का मुखमंडल कंकड़मय मृत्तिका में घर्षण किया था, उससे मुँह क्षत विक्षत और शोणिताक्त हुआ था । एक दिन किसी ने उन के गले में फांसी लगा कर स्वासरोध कर के उन को बध करने का उपक्रम किया था । एक दिन किसी ने उन का गला लक्ष्य कर के करवालाघात किया था, तब गहवर में छिपकर उन्होंने अपने प्राण की रक्षा किया था । कई बार उन की जीवनाशा कुछ भी नहीं थी । एक दिन उनके पितृव्य और जातिवर्ग उन को बध करने को कृत संकल्प हुए थे । उन की प्रियतमा दुहिता फातिमा ने जान कर रोते रोते उन से निवेदन किया । उस में धर्मवीर विश्वासी महम्मद अकुतोभय भाव से बोले कि वत्से ! मत रो, हम को कोई बध नहीं कर सकेगा, हम उपासनारूप अस्त्र धारण करेंगे, विश्वास वर्म से आवृत होंगे । जब हजरत महम्मद को प्रहार-क्षत-कलेवर और निःसहाय देख कर उन के पितृव्य हमजा महाक्रोध से अबुलहब और अबूजोहल प्रभृति मुहम्मद के परम शत्रु पितृव्य और दूसरे दूसरे ज्ञाति संबंधियों को प्रहार करने जाते थे, उस समय वह बोले, "जिन ने हम को सत्यधर्म प्रचार के हेतु मनुष्य मंडली में प्रेरणा किया है, उस सत्य परमेश्वर के नाम पर शपथ करके हम कहते हैं, यदि तुम सुतीक्ष्ण करवाल के द्वारा नीच बहुदेवोपासक लोगों को निहत करो और उसी भाव से हमारी सहायता करने को अग्रसर हो तो तुम अपने को शोणित में कलंकित कर के पुण्यमय सत्य परमेश्वर से दूर जा पड़ोगे । ईश्वर के एकत्व में और हम उन के प्रेरित हैं, इस सत्य का विश्वास जब तक न करोगे तब तक तुम को युद्ध-विवाद में कोई फल नहीं होगा । पितृव्य, यदि तुम वात्सल्यरूप औषध हम को प्रदान करना चाहते हो, और हमारे आहत हृदय में आरोग्य का औषध लेपन करना चाहते हो, तो "ला इलाह इल्लिल्लाह महम्मद रसूलल्लाह" (ईश्वर एकमात्र अद्वितीय और मुहम्मद उस को प्रेरित है) यह वाक्य उच्चारण करो । यह सुन कर हमजा विश्वासी होकर कलमा उच्चारण पूर्वक एक ईश्वर के धर्म में दीक्षित हुए । तीन बरस शत्रु मंडली से अवरुद्ध होकर हजरत महम्मद को महा क्लेश से एक गिरिगुहा में कालयापन करना पड़ा था । इस बीच में बहुत से मनुष्यों ने उन के साथ उस उन्नत विश्वास में योग दिया था और उन के निकट एक ईश्वर के धर्म में दीक्षित हुए थे । ईश्वर की आज्ञापालन के लिए वह दस बरस मक्का नगर में अपरिसीम क्लेश और अत्याचार सहन कर के पीछे मदीना नगर में चले गए । वहीं शत्रुगण से आक्रांत होकर उन लोगों के अनुरोध से और आवाहन से युद्ध करने को बाध्य हए । वह विपन्न अत्याचारित होकर कभी तनिक भी भीत और संकचित नहीं हुए थे । जितनी बाधा और विघ्न उपस्थित होता था उतना ही अधिक उत्साहानल से प्रज्वलित हो उठते थे । सब विघ्न अतिक्रम करके अटा विश्वास से वह ईश्वरादेश पालन व्रत में दृढ व्रती थे । वह ईश्वर और मनुष्य के प्रभु-भृत्य का संबंध अपने जीवन में विशेष भाँति प्रदर्शन करा गए हैं । वह स्वामी-आदेश शिरोधार्य कर के स्वर्गीय तेज और अलौकिक प्रभाव से कोटि कोटि मनुष्य को अंधेरे से ज्योति में लाए । लक्ष लक्ष जन का सांसारिक बल एक विश्वास के बल से चूर्ण कर के जगत में अद्वितीय ईश्वर की महिमा को महीयान किया । एकेश्वर की पूजा और सत्य का राज्य प्रतिष्ठित किया । प्रभु का आदेशपालन के हेतु सब प्रकार का दारिद्र, क्लेश, अपमान और आत्मीय जन का निग्रह अम्लान बदन से सिर नीचा करके सहन किया । धन्य ! ईश्वर के विश्वास किंकर महम्मद ! आज मुसलमान धर्म के प्रवर्तक ईश्वर के आज्ञाकारी विश्वस्त भृत्य मुहम्मद के नाम और उनके प्रवर्तित पवित्र एकेश्वर के धर्म में एशिया से योरोप आफ्रिका तक कोटि कोटि मुसलमान एक सूत्र में ग्रथित हैं । वह ऐसा आश्चर्य धर्म का बंधन जगत मे संस्थापन कर गए हैं कि आज दिन उस के खोलने की किसी को सामर्थ्य नहीं है NOK भारतेन्दु समग्र ७९२ 1