पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८३८

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BOX यह कह कर बीबी फातिमा घर से निकली और उस विवाह सभा की ओर अकेली चली परंतु लिखा है कि ईश्वर के अनुग्रह से उनके अंग पर दिव्य अमूल्य वस्त्राभरण सज्जित हो गये । कुरेशवंश में और अरब की स्त्री लोग अभिमान से फातिमा की मार्ग की प्रतीक्षा कर रही थी और कहती थीं कि आज हम लोगों की सभा में महात्मा महम्मद की बेटी फटा कपड़ा पहन कर आवेगी और हम लोगों के उत्तम वस्त्राभूषण देख के आज वह भली भाँति लज्जित होगी । इतने में विद्युल्लता की भांति साम्हने से फातिमा की शोभा नमकी और विवाह-मंडप में इन के आते ही एक प्रकाश हो गया । फातिमा ने नम्न भाव से सब स्त्रियों को यथायोग्य अभिवादन किया, परंतु वे सब स्त्रियाँ ऐसी हतबुद्धि और धैर्यरहित हो गई कि सलाम का उत्तर न दे सकी । फातिमा का मुखचंद्र देख कर अभिमानिनी स्त्रियों के हृदय-कमल मुरझा गये और आँखों में चकचौंधी छा गई । सब की सब घबड़ा कर उठ खड़ी हुई और आपस में कहने लगी कि यह किस महाराज की कन्या और किस राजकुमार की स्त्री है । एक ने कहा, यह देवकन्या है । दूसरी बोली नहीं, कोई तारा टूट कर गिरा है । कोई बोली सूर्य की ज्योति है। किसी ने कहा, नहीं नहीं, आकाश से चंद्रमा उतरा है । परंतु जिस के चित्त में धर्मवासना थी उन्हों ने कहा कि यह ईश्वरीय ज्योति है । यह अनेक अनुमान तो लोगों ने किये, परंतु यह संदेह सब को रहा कि कोई होय पर यह यहाँ क्यों आई है ? अंत में जब लोगों ने पहचाना कि यह बीबी फातिमा है तो सब को अत्यंत लज्जा और आश्चर्य हुआ । सबसे ऊंचे आसन पर उनको लोगों ने बैठाया और आप सब सिर झुका कर उनके आस पास बैठ गई । कई उनमें से हाथ जोड़कर बोली '-हे महापुरुष महम्मद की कन्या ! हम लोगों ने आप को बड़ा कष्ट दिया, हम लोगों के कारण जो आप के नित्य कर्म में व्यवधान पड़ा हो उसे क्षमा कीजिये और हमारे योग्य जो कार्य हो आज्ञा कीजिये । हम लोगों को जैसा आदेश हो वैसा भोजन और शरबत आप के वास्ते सिद्ध करें। बीबी फातिमा ने विनयपूर्वक उत्तर दिया भोजन और शरबत से हमारा संतोष नहीं, हमारा और हमारे पितृदेव का विषय में विराग सहज स्वभाव है । अनशन व्रत हम लोगों को सुस्वादु भोजन के बदले अत्यंत प्रिय । हमारा और हमारे पिता का संतोष ईश्वर की प्रसन्नता है । तुम लोग देवी, देवता, भूत, प्रेत इत्यादि की पूजा और पाखंड छोड़ कर सत्य धर्म के प्रकाश में आओ, इस परमेश्वर की भक्ति करो, परस्पर वैर का त्याग और आपस में प्रीति करो । अनेक स्त्रियाँ फातिमा का यह अतुल प्रभाव देख कर उसी समय मुसलमान हुई और दिन्होंने उनका धर्म नहीं ग्रहण किया उन्होंने भी उनका बड़ा आदर किया । किसी विशेष रोग के कारण इनकी मृत्यु नहीं हुई । पितृवियोग का शोक ही इनकी मृत्यु का मुख्य कारण है । कहते हैं कि महात्मा महम्मद की मृत्यु के पीछे फातिमा शोक से अत्यंत विहवल रहीं । किसी भांति मी इन को बोध नहीं होता था, रात दिन रोती थीं और आरबार मूर्छित हो जाती थीं । एक दिन उन्होंने कुछ स्पप्न देखा और मृत्यु के हेतु प्रस्तुत हो कर अपने प्रिय स्वामी आदरणीय अली को बुला कर कहा “कल पितृदेव को स्वप्न में देखा है जैसे वह चारों ओर नेत्र फैला कर किसी के मार्ग की प्रतीक्षा कर रहे हैं । हम ने कहा, पिता ! तुम्हारे विच्छेद से हमारा हृदय विदाध और शरीर अत्यंत जीर्ण हो रहा है । उन्होंने उत्तर दिया, कि पुत्री ! हम भी तो मार्ग ही देख रहे हैं । फिर हम ने ऊँचे स्वर से कहा -पिता ! आप किस का मार्ग देख रहे है ? तब उन्होंने कहा - कि तुम्हारा मार्ग देख रहे हैं । पुत्री फातिमा ! हमारा तुम्हारा वियोग बहुत दिन रहा, इस से तुम्हारे बिना अब हमारे प्राण व्याकुल हैं । तुम्हारे शरीर त्याग का समय उपस्थित है ; अब तुम अपनी आत्मा को शरीर संपर्क शून्य करो। इस निकृष्ट संकीर्ण जगत् का परित्याग कर के उस प्रसारित उन्नत देदीप्यमान आनंदमय जगत में गृहस्थापन करो। संसाररूपी क्लेश-कारागारसे छुट कर नित्य सुखमय परलोक-उद्यान की ओर यात्रा करो । फातिमा ! जब तक तुम न आओगी तब तक हम नहीं जायगे । हम ने कहा -पिता ! हम भी तुम्हारी दर्शनार्थी हैं, तुम्हारी सहवास संपत्ति लाभ करें यही हमारी भी आकांक्षा है। इस पर उन्होंने कहा - तो फिर विलंब मत करो, कल हमारे पास आओ । इस के पीछे हमारी नींद खुली, अब उस उन्नत लोक में जाने के लिये हमारा हृदय व्याकुल है । हम को निश्चय है कि आज साँझ या पहर रात तक हम इस लोक का त्याग करेंगे । हमारे पीछे तुम आल्येत शोकाकुल रहोगे, इससे जिस में हमारे संतान भूखे २ हमारे पुराणों में भी लिखा है कि सती जब उदास हो कर दक्ष के यज्ञ में बिना सिंगार किये ही चली तो मार्ग में कुबेर ने उनको उत्तम उत्तम वस्त्राभूषण पहिना दिया । वैसे ही अनुमान होता है कि अपने आचार्य महात्मा मुहम्मद की बेटी को वस्त्रहीन देख कर उन के किसी घनिक सेवक ने अमूल्य वस्त्राभूषण से उनको सजा दिया । भारतेन्दु समग्र ७२४