पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

940 " 1

  • Raker

न रहें हम आज रोटी करके रख देते हैं और पुत्र-कन्या का वस्त्र भी धो देते हैं । हमारे पीछे यह कौन करेगा इस हेतु हम आप ही इन कामों से छुट्टी कर रखते हैं । हमारे अभाव में हमारे पुत्रों को कौन प्यार करेगा ? हमारी इच्छा थी कि आप इन का सिर सँवारें, परंतु हम को संदेह है कि कल कोई उनके मुंह की धूल भी न झारेगा अली यह सुन अत्यंत शोकाकुल हो कर रोने लगे और कहा कि फातिमा ! तुम्हारे पिता के वियोग से हृदय में जो क्षत है वह अब तक पूरा नहीं हुआ और उन महात्मा के चरणदर्शन बिना जो शोक है वह किसी प्रकार से नहीं जाता । इस पर तुम्हारा वियोग भी उपस्थित हुआ । यह आघात पर आघात और विपत्ति पर विपत्ति पड़ी । फातिमा ने कहा – अली ! उस विपत्ति में धैर्य किया है और इस में भी करो, इस क्षण में मुहूर्त भर भी हमसे अलग मत रहो, हमारे श्वासवायु अवसान का समय निकट है ; नित्याधाम में हम तुम फिर मिलेंगे यह प्रतिज्ञा रही । बीबी फातिमा यह कहती थीं और हसन-हुसेन के मुख की ओर देख कर दीर्घश्वास के साथ अनुवर्षण करती जाती थीं । माता की यह बात सुन कर हसन-हुसेन भी रोने लगे । फातिमा ने कहा - प्यारे बच्चो ! थोड़ी देर के वास्ते तुम लोग मातामह के समाधि-उद्यान में जाओ और हमारे हेतु प्रार्थना करो । वे लोग माता के आज्ञानुसार चले गये । फातिमा तब विछौने पर लेट गई और अली से कहा, प्रिय तुम पास बैठो । बिदा का समय उपस्थित है । अली बैठे और शोक से रोने लगे । तब फातिमा ने आसमा नाम की दासी को बुला कर कहा कि अन्न प्रस्तुत रक्खो, हमारे प्यारे हसन-हुसैन आकर भोजन करेंगे। जब वे घर आवै तब उन लोगों को अमुक स्थान पर बैठाना और भोजन कराना । उन को हमारे निकट मत आने देना, क्योंकि हमारी अवस्था देख कर वे घबड़ायेंगे । आसमा ने वैसा ही किया । इधर फातिमा ने अली से कहा -हमारा सिर तुम अपनी गोद में ले बैठो, अब जीवन में केवल कुछ ही क्षण बाकी है । अली ने कहा –फातिमा ! तुम्हारी ऐसी बातें हम नहीं सुन सकते । फातिमा ने उत्तर दिया । अली ! पथ खुला है, हम प्रस्थान करेहींगे और मन अत्यंत शोकाकुल है और तुम से कुछ कहना भी अवश्य है। हमारी बात सुनो और हमारे वियोग का शर्बत वाध्य होकर पान करो । अली फातिमा का सिर गोद में लेकर बैठे । फातिमा ने नेत्र खोलकर अती की ओर देखा ; उस समय अली के नेत्रों से आँसू के बूंद फातिमा के मुख पर टपकते थे । अली को रोते देखकर फातिमा ने कहा - हे नाथ ! यह रोने का समय नहीं है, अवकाश बहुत थोड़ा है । अंतिम कथा सुन लो । अली ने कहा कहती हो । फातिमा ने कहा – हमें चार बात कहनी है ; पहली यह कि हम तुम्हारे साथ बहुत दिन तक रहे । यदि हमसे कोई अपराध हुआ हो तो क्षमा करो । अली रोने लगे और बोले -कभी तुम ने आज तक कोई ऐसी बात ही नहीं किया जो हमारे प्रतिकूल हो । प्यारी तुम तो सर्वदा हमारी मनोरंजनी रही, भूल कर भी तुम ने हम को कोई कष्ट नहीं दिया, तुमने सब आपत्ति अपने ऊपर सहन किया, परंतु हम को दुख न दिया, तुम उपकारिणी थीं, अपकारिणी नहीं । तुम को हम ने कोमल पुष्पमाला की भांति अपने हृदय पर धारण किया कंटक की भाँति नहीं । बोलो, और बोलो और कौन बात है ? फातिमा ने कहा, दूसरे यह कि हमारे प्यारे हसन-हुसैन की रक्षा करना । जिस लाड़ प्यार और राव चाव से हमने उनको पाला है उसमें कुछ न्यूनता न हो ; उनकी सब अभिलाषा पूरी करना । तीसरे यह कि हमारे शव को रात्रि को भूमिशायी करना, क्योंकि जीवन दशा में जैसे पर पुरुष की दृष्टि हमारे शरीर पर नहीं पड़ी है वैसा ही पीछे मी हो । चौथे हमारी समाधि पर कभी कभी आ जाना । इतने में हसन-हुसेन भी आ गए और माता की यह अवस्था देखकर बहुत रोने लगे । फातिमा ने किसी प्रकार समझा कर फिर बाहर भेजा और दासी को बुला कर बीबी फातिमा १ ने स्नान किया और एक धौत वस्त्र परिधान करके एक निर्धन गृह में दक्षिण पार्श्व से शयन करके ईश्वर का स्मरण करने लगी । इसी अवस्था में उन्होंने परलोक गमन किया । कहो क्या इफ़ताम अरबी में बच्चे को दूध से छुड़ाने को कहते हैं । इन का फातिमा नाम इसी हेतु पड़ा था कि छोटेपनही में इन की मृत्यु हुई थी। पंच पवित्रात्मा ७९५ 53