पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८४१

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चुप रहो और चले जाओ और स्पा करके जीवन को कलंकित मत करो । मनुष्य का क्या साध्य है कि ईश्वर को परीक्षा में बुलावै । केवल उन को परीक्षा करने का अधिकार है । वह प्रति मुहूर्त में मनुष्य के निकट परीक्षा उपस्थित करते हैं। वह हम लोगों के पास हैं। हम लोग क्या हैं वह प्रकाश कर देते हैं । अंतर में हम लोग किस भाँति धर्मभाव रखते हैं, वह दिखला देते हैं । कौन मनुष्य ईश्वर को ऐसी बात कह सकता है कि यह सब पाप अपराध करके हम ने तुम्हारी परीक्षा किया । हे ईश्वर ! देखें, तुम्हारी कितनी सहिष्णुता है ! हा! ऐसा कहने का किस को अधिकार है ? तुम्हारी बुद्धि अत्यंत दुष्ट हुई है । तुम्हारी यह उक्ति सब पापों से बढ़ कर है । जो यह सुविशाल नभोमंडल का रचयिता है उस की तुम परीक्षा करने क्या जानो ? तुम अपना शुभाशुभ तो जानते ही नहीं हो । पहिले अपनी परीक्षा करो, पीछे दूसरे को परीक्षा करना । पथप्रदर्शक अग्रगामी गुरु की जो शिष्य परीक्षा करता है वह मूर्ख है। जिस को तुम ने परीक्षक किया है, हे अविश्वासी, यदि उन्हीं की धर्ममार्ग में तुम परीक्षा करो, तो तुम्हारी दुःसाहसिकता और मूर्खता प्रकाश होगी । तुम ईश्वर की क्या परीक्षा करोगे ? धूलिकणिका क्या पर्वत की परीक्षा कर सकती है ? मनुष्य अपने बुद्धिगत अनुमान से तुला यंत्र प्रस्तुत करके ईश्वर को उस में स्थापन करने जाता है, किन्तु ईश्वर बुद्धि के अनायत हैं, उन के द्वारा बुद्धि-निर्मित परिमाण यंत्र चूर्ण हो जाता है । ईश्वर की परीक्षा करना और उनको आयत्त करना एक ही है । तुम एतादृश महाराज को आयत्त करने की चेष्टा मत करो, चित्रित वस्तु किस प्रकार से चित्रकार की परीक्षा करेगा उनके असीम ज्ञान में जो सब चित्र विद्यमान हैं उनके पास परिदृश्यमान विश्वचित्र क्या पदार्थ है ? जब परीक्षा ग्रहण की कुबुद्धि के द्वारा तुम आक्रांत होते हो, तब जानना तुम को संहार करने के लिए दुर्भाग्य उपस्थित हुआ है । अकस्मात् ईश्वर में ऐसी कुबुद्धि उपस्थित हो तो भूमिष्ठ प्रणत होना । भूमि को शोका स्रोत से अभिषिक्त करना और कहना. हे ईश्वर ! इस कुचिंता से हमारी रक्षा करो । तब परम परीक्षक ईश्वर तुम को रक्षा करेंगे। इमाम हसन और इमाम हुसैन महात्मा मुहम्मद के जन्म का समाचार पूर्व में लिखा जा चुका है । इनको अठारह संतति हुई, किन्तु वंश किसी के आगे नहीं चला, केवल बीबी फ़ातिमा को वंश हुआ । यह बीबी फातिमा आदरणीय अली से व्याही थी । जब तक यह जीती थीं और विवाह आदरणीय अली ने नहीं किया केवल इन्हीं को अली मान कर इन्हीं के मुखपकज के अली बने रहे । बीबी फातिमा को पांच संतति हुई, तीन पुत्र हसन, हुसैन और मुहसिन, और जैनब और उम्म कुलसुम यह दो बेटियाँ थीं । इन में मुहसिन छोटेपन ही में मर गए । अली ने बीवी फ़ातिमा के मरने के पीछे उमुल्नवीन से विवाह किया। उसके चार पुत्र अब्बास, जाफर, उसमान औन अब्दुल्लाह से उत्पन्न हुए, जो चारो अपने भाई इमाम हुसेन के साथ करबला में वीर गति को गए । इनमें से अब्बास की संतति चली । तीसरी स्त्री केसी, उससे अब्दुल्लाह और अबूबकर, यह दोनों भी करबला में मारे गए । चौथी स्त्री इसमानित से मुहम्मद और यहिया दो पुत्र हुए । इन चारों की संतति नहीं है । पाँचावी स्त्री सहवाई से उमर और रकिया, जिनमें से उमर की संतति है। छठवीं स्त्री अम्मामा । इसको मुहम्मद मध्यम नामक पुत्र हुआ, किन्तु आगे संतति नहीं । सातवीं स्त्री इनकी खूला है, जिनके पुत्र बड़े मुहम्मद हुए, जिनका वंश वर्तमान है । आदरणीय अली को इन बेटों के सिवा चौदह बेटियां भी हुई । इन सब से इमाम हसन, इमाम हुसैन, अब्बास, मुहम्मद और उमर का वंश है, जिनमें इमाम हसन और इमाम हुसेन की संतति सैयद कहलाती है और शेष तीनों की साहबजादों के नाम से पुकारी जाती है । किन्तु शीया लोगों में अनेक इमाम हसन के वंश को भी सैयद नहीं कहते हैं और कहते हैं कि ठीक सैयद केवल इमाम जैनुलआबदीन (इमाम हुसेन के मध्यम पुत्र) का वंश है । आदरणीय अली सब के पहिले मुसल्मान हुए और दाहिनी भुजा की भाँति महात्मा के सदा सहायक रहे । इन्हीं अली के पुत्र इमाम हुसेन थे, जिनका दुष्टों ने करबला में बध किया, जिस का हम क्रम से वर्णन करते हैं। महात्मा मुहम्मद के (६३२ ई.) मृत्यु के पीछे अबूबकर (६३२ ई.) खलीफा हुए और उन के पीछे उमर (६३४ ई.) । इस में कुछ संदेह नहीं की महात्मा मुहम्मद के पीछे उनके सब शिष्यों को धन और देश और शासन के लोभ ने ऐसा घेर लिया था कि सब धर्म को भूल गए थे । केवल आड़ के वास्ते धर्म था । यद्यपि मुहम्मद पंच पवित्रात्मा ७२७