पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८४९

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लखि दीन जीव संसार के परम कृपा गहि कछु कहत । । कार्तिक-धर्म यहाँ क्यों विधान करते हैं ? इस हेतु से कि सब धर्मों में भगवद्धर्म मुख्य है और यही श्री मुख से भी कहा है - “मन्मनाभवमद्भक्तो मद्याजीमान्नमस्कुरु मावेवैष्यसिकौन्तेय" इत्यादि ।। विशेषतः कलियुग में भगवद्धर्म ही की नित्यता है, यह भी निश्चय है। यथा हेमाद्री श्री भागवद्वाक्यम् कलौ सभाजयन्त्यार्याः गुणज्ञास्सारभागिनः । यत्र सकीर्तनेनैव सर्व स्वार्थोभिलभ्यते ।। अनेक निबन्धेषु महाभारते कलौ कलिमलध्वंसं सर्वपापहरं हरिम् । ये चयन्ति नरानित्यं तेपिवंद्या यथा हरिः ।। मदन पारिजाते योगि याज्ञवल्क्यः विष्णुर्ब्रहमाचरुद्रश्च विष्णुद्दे वो जनाईनः । तस्मात्पूज्यतमनान्यमहमन्ये जनाईनात् ।। इत्यादि और इसमें विशेषता यह है कि एक श्री भगवान के पूजन में सबका पूजन आ जाता है - यथा श्री मद्भागवते - यथा तरोमलनिषेचनेन तृप्यन्ति ततस्कन्दभुजोपशाखाः । प्राणोपहाराच्च तथेन्द्रियाणां तथैव सर्हिणमच्युतेज्या ।। और इस भगवद्धर्म के सब अधिकारी हैं ; यह श्री मुख से गाया है - सियोवैश्यास्तथा शुद्रास्तेपियान्ति परांगतिम् । ऐसा ही परम भक्त श्री प्रहलाद जी ने भी कहा है नाल ऋषित्वं द्विजत्वं देवत्वं वाऽसुरात्मजाः । प्रीणनाय मुकुन्दस्य धनं इससे सर्वसाधारण को और अनेक धर्मों को छोड़कर केवल भगवद्धर्म मुख्य हुआ तो भगवद्धर्मों में परम पुनीत कार्तिक व्रतादि यहाँ दिखाते हैं । कार्तिक सब मासों में पवित्र है और उसकी नित्य क्रिया क्या है यह कार्तिक कर्म विधि नामक निबंध में लिख चुके हैं । यहाँ वे धर्म लिखे जाते हैं जो नैमित्तिक हैं और जैसे कार्तिक-स्नान आश्विन शुद्ध ११ से आरंभ होता है, इससे नैमित्तिक कृत्य भी उसी दिन से लिखते हैं । अथ आश्विन शुद्ध, ११ – इसी एकादशी से कार्तिक के सब व्रत आरंभ करना । इस एकादशी का नाम पापांकुशा है। इसमें भगवान की पद्मनाभ नाम से पूजा करै । अथ आश्विन शुद्ध १५ - यदि एकादशी से कार्तिक-स्नान न आरंभ किया हो तो इस दिन से करना । इस पूर्णिमा में दो कर्म हैं - प्रथम रासोत्सव, द्वितीय कोजागर व्रत । रासोत्सव जिस दिन सायंकाल में पूर्ण चन्द्र हो उस दिन करना क्योंकि, "कलाहीने शशांके तु न कुर्य्याच्छारदोत्सवम्” इस वाक्य में हीन चंद्र का निषेध है और भगवान को श्वेत वस्त्र, श्वेतााभरण, श्वेत नैवेद्य समर्पण करना और चाँदनी में शुगार सहित बैठाकर रासलीला के भजन गाना । इस दिन श्री मद्भागवत की रासपंचाध्यायी का पाठ बहुत पुण्य देने वाला है और किसी ग्रंथकार ने यह भी लिखा है कि रात्रि को चंद्रमा की चाँदनी में सूई में डोरा पिरोना और कुछ अक्षर पढ़ना, इससे नेत्र की जोति बढ़ती है। कोजागर व्रत जिस दिन आधीरात को पूर्णिमा हो, उस दिन करना । साँझ से लक्ष्मी और इंद्र का स्थापन करके पूजा करना और नारियल का जल लक्ष्मी को भोग लगाकर पीना । आधीरात के समय लक्ष्मी जी यह कहती हुई निकलती हैं कि जो जागता मिलेगा और जुआ खेलता होगा, मैं उसे धन दूँगी । कमल पर बैठी हुई लक्ष्मी का ध्यान करना और 'ॐ लक्ष्म्यैनमः' इस मंत्र से सब पूजा करके इस मंत्र से पुष्पांजलि देना । न न बहुज्ञता । । इत्यादि कार्तिक नैमित्तिक कृत्य ८०५