पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८५१

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यमायनमः, धर्मराजायनमः, मृत्यवेनमः, अंतकायनमः, वैवस्वतायनमः, कालायनमः, सर्वभूतक्षयायनमः, औदुम्बरायनमः, दध्नायनमः, नीलायनमः, परमेष्टिनेनमः, वृकोदरायनमः, चित्रायनमः, चित्रगुप्तायनमः, । इस मंत्र से तीन तीन अंजली जल तिल समेत दे । इस चतुर्दशी से प्रतिपदा तक महाराज बलि का राज रहता है, इससे इन तीनों दिन घर स्वच्छ रक्खे, दीए बालें. उज्वल वस्त्र पहिने और गीतादिक से चित्त प्रसन्न रक्खें। रात को चौमुखा दीया, नर्क के नाम का, इस मंत्र से निकाले । दत्तो दीपं चतुर्दश्यां नरकप्रीतये मुदा । चतुर्वतिसमायुक्त सर्वपापापनुत्तये ।। पीछे हाथ में जलती लकड़ी व पलीता लेकर पित्रों को मार्ग दिखावे । मंत्र - अग्निदाधाश्चयेजीवा येप्यदग्धाः कुले मम । उज्वलज्योतिषादाधास्तेयांतु परमांगतिम् ।। यमलोकम्परित्यज्य आगता ये महालये। उज्वलज्योतिषावर्त्म प्रपश्यन्तु व्रजन्तु ते ।। इसी रात्रि को कोई काली-पूजन भी करते हैं और हनुमान जी का जन्मोत्सव भी इसी रात्रि को होता है और इसी रात्रि में वीरों का पूजन, कुमारी-पूजन और तंत्रोक्त मंत्रों की सिद्धि भी होती है पर यह अधिकारी-परत्व है । सतोगुनी भक्तों को तो परम भागवत हनुमान जी का ही पूजन ग्राह्य है । हनुमान जी को तुलसी दल पर श्री राम नाम लिखकर चढ़ाना और लड भोग रखकर रामायण का पाठ व और कुछ रामचरित्र सुनना । मंत्र - यत्र यत्र रघुनाथकीर्तनं तत्र तत्र कृत मस्तकांजलिम् । वाष्पवारि परिपूरित लोचनं मारुतिन्नमतराक्षसान्तकम् ।। इस चतुर्दशी को नक्तव्रत करना वा उड़द के पत्ते के शाक का फल विशेष है । जो इस चतुर्दशी को मंगलवार पड़े तो चित्राव्रत और शिवपूजन करना । अथ कार्तिक कृष्णा ३० – यह दीपावली अमावस्या है, इसमें दिन को व्रत करना । साँझ को भगवान के मंदिर में दीपदान करना और दीए के वृक्ष बनाना और अनेक प्रकार के भोग समर्पण करके हटरी में बैठाना । साँझ को अपना घर सब स्वच्छ करके यथाशक्ति उसकी शोभा करना । सड़कों को राजा आज्ञा देकर स्वच्छ करावे और तोरणादिक सड़क के बाहर लगाना, दूकान पर वस्तु रखना और घर में सब स्थानों पर दीया बाल के लक्ष्मी और बलि का पूजन करना, लक्ष्मी को खोए का लड्डू भोग लगाना और इस मंत्र से दीपदान करना । त्वं ज्योतिः श्री रविश्चन्द्रो विद्युत्सौवर्ण तारकाः । ज्योतिषांज्योतिर्दीपज्योतिर्नमोस्तुते ।। रात को राष मार्ग में', स्मशान में, नदी के वा तड़ाग के तटों पर, मंदिरों में, शिखरों में, गलियों में और दुर्गम स्थानों में राजा दिया बालने की अशा दे। सब लोग शृंगार करके, सुगंध लगा के, पान खाते बाहर निकलें और मित्रों से संबंधियों से मिले । वारांगना और नटनर्तकादिक नृत्य-गीत करै । राजा (यदि हिन्द हो) इस बात की डौंडी पिटवा दे कि आज महाराज बलि का राज्य है, कोई दुखी न हो, सब अपना मनमाना करै । जीवहिंसा, सुरापान, अगम्यागमन, चोरी और विश्वासघात ये पाँच पाप छोड़कर छुई हुई वस्तु का भोजन, वारांगनासेवन, अत और सब जाति के संग बैठना यह सब राजा बलि के राज में पाप नहीं हैं। गोप लोग गऊ का शृंगार करें और सब लोग गऊ को भोजन दें । मल्ल लोग मल्ल युद्ध करें । घोड़े वाले चोड़ा नचावे । रात को राजा नगर के बाहर निकले और बालकों को एकत्र करके उनका खेल देखें और उनको खिलौना मिठाई दे । सब लोग बाजे बजावें और आनंद की बातें करै । रात को स्त्रियों के वा ब्राहमणों वा स्नेहियों के संग जुआ खेलें । इसमें पूर्व पूर्व मुख्य है । आधी रात को जब पुरुष सोने लगें तब स्त्रियाँ सूप और डौंड़ी पीटती हुई दरिद्रा को घर से बाहर निकाले । इस दिन भी अभ्यंग की विधि है। अथ कार्तिक शुदा १ - इसमें श्री गोवर्दन-पूजन, बलि-पूजा, दीपोत्सव, गोक्रीड़ा, मार्गपालीबंधन, वृष्ठिकाकर्षण, नया वस्त्र पहिरना, उत्सव जूआ खेलना, मंगल मालिका और स्त्रियों की आरती करना ये मुख्य कर्म है । उसमें प्रथम श्री गोवर्धन-पूजन है । यह उत्सव अवश्व माननीय है क्योंकि इसके हेतु श्री मुख वाक्य सर्वेषां HAK कार्तिक नैमित्तिक कृत्य ८०७