पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८५२

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एतन्मममतन्तात क्रियतां यदि रोचते । अयं गोब्राहमणादीनाम्मयञ्च दयितोमखः ।। इसमें प्रम-मार्ग में वा और अन्य मार्ग में जैसी जिसकी रीति हो वह पूजन करे । अब साधारण लोगों के हेतु यह रीति लिखी जाती है । जहाँ साक्षात श्री गोवर्द्धन पर्वत है वहाँ तो उन्हीं की और जहाँ गोवर्द्धन नहीं है वहाँ गऊ के गोबर का पर्वत बनाना, उत्तर मुख रखना और एक कंदरा बनाना । वहाँ भगवान की मूर्ति रखकर षोडशोपचार पूजन करना और अन्नकूट भोग लगाना । जहाँ गिरिराज की शिला हो वहाँ तो गिरिराज की शिला कंदरा में रखकर पूजन करना । जहाँ शिला न हो वहाँ शालिग्नाम व छोटे श्री ठाकुर जी को भूरत रखकर पूजा करनी और गऊ गोप की भी पूजा करनी । पहिले भगवान की पूजा करनी, उसके मंत्र - वलिराज्ञो द्वारपाल भवानद्यभवप्रभो । निज वाक्यर्थनार्थाय सगोवर्द्धन गोपते ।। गोपालमूर्ते विश्वेश शक्रोत्सव विभेदक । गोवर्दनकृतच्छत्र पूजामे हरगोपते । देवे वर्षति यज्ञविप्लवरुषा वर्षाश्मपनिलैः । सीदतपालपशुस्त्रियात्मशरण दृष्टानुकम्प्युतस्मयन् । उत्पाट्यैक करेणशैकमवलो लीलोच्छिलघ्र यथा । विघ्रद्गोष्टमपान्महेन्द्रमदभित् प्रोयान्नइन्द्रोगवां ।। इति भगवत्-प्रार्थना मंत्र ।। गोबर्द्धनधराधार गोकुलत्राणकारक । विष्णुबाहुकृतच्छाय गवांकोटि प्रदोभव ।। एषोऽव जानतेमान कामरूपी बनौकसः । हंतहयस्मै नमस्यामः शम्म॑णे आत्मनोगवाम् ।। हंतायमदिरबला हरिदासवर्यो । यद्रामकृष्णचरणस्पर्श प्रमोदः । । मानंतनोति सहगोगणयोस्तयोर्यत् ।। पानीयसूयवसुकन्दरकन्द मूलैः । । इति गिरिराज-प्रार्थना मंत्रः । या लक्ष्मीर्लोकपालानां धेनुरूपेण संस्थिता । घृतं वहतियज्ञार्थे ममपापंव्यपोहतु । । अग्नतस्सन्तुमेगावो गावोमेसन्तु दृष्टतः । गावोमेहृदयेसन्तु गवाम्मध्येवसाम्यहम् ।। इति गो प्रार्थना मंत्रौ । अहोभाग्यमहोभाग्यं नन्दगोप ब्रजौकसाम । यन्मित्रम्परमानन्दं पूर्णब्रहमसनातनं ।। आसामहोचरणरेणुजुषामहंस्यां वृन्दावनेकिमपि गुल्मलतौषधीनां । यादुस्त्यजस्वजन आर्यपधंविहाय भेजुर्मुकुन्दपदवीं श्रुतिभिर्विमृतां । । यावैश्रियार्चितमजादिभिरासकामें: योगेश्वरैरपियदात्म निरासगोष्ठयां । कृष्णस्य तद्भगवतश्चरणारविन्दे न्यस्त स्तनेषुविजहुः परिरभ्यतापं ।। बन्दे नन्द व्रजस्त्रीणंपादरेणूमभीक्षणशः । 10 भारतेन्दु समग्र ८०८