पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८५४

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अथ कार्तिक शुद्धा ४ - इस दिन शेषादिक महानागों की पूजा करना । अथ कार्तिक शुदा ५ - इस दिन जया व्रत करना, विष्णु की जया सहित पूजा करना, श्वेत वर्ण द्विभुज जया का ध्यान करके विष्णु और जया की प्रत्यंग-पूजा करके बांस के पात्र में सप्तधान दान करना और "येन बद्रो बली राजा" इस मंत्र से रक्षाबंधन करना । अथ कार्तिक शुदा ६ - जो मंगलवार हो तो अग्नि का पूजन करके ब्राहमण भोजन कराना । अथ कार्तिक शुद्धा ७ इस दिन कार्तवीर्य की पूजा करके उनका दीप-दान करना । अथ कार्तिक शुद्धा ८- इस दिन गऊ का पूजन, गोग्रास दान करना और इसी में शाक व्रत है। नक्तव्रत करना, शाक खाना और शाक ही ब्राहमण को देना । अथ कार्तिक शुदा ९ - इस दिन श्री वृंदावन की परिक्रमा करना । यह नवमी द्वापर की युगादि भी है । इसमें कुष्मांड दान करना और जगदात्री का पूजन करना । तुलसी के विवाह का उत्सव इसी दिन से आरंभ होता है । जो तुलसी विवाह करे वह तीन दिन का व्रत करे । यद्यपि धात्री-पूजन कार्तिक में नित्य ही है तथापि जो और दिन न किया हो तो इस दिन करे । 'ॐ धात्र्यैनमः' इस मंत्र से षोडशोपचार पूजा करे और आठ दीए आठ ओर वाल कर यह मंत्र पढ़े- इमेदीपा मयादता प्रदीप्ताघृतपूरिता । धात्रिदेवि नमस्तुभ्यमतश्शान्तिम्प्रयच्छमे । । फिर मोगादिक समर्पण करके इन मंत्रों से पुष्पांजलि चढ़ावें - धात्रिदेवि नमस्तुभ्यं सर्वपापक्षयंकरि । पुत्रान्देहि महाप्राज्ञे यशोदेहिबलञ्चमे ।। प्रज्ञामेघाञ्चसौभाग्यं विष्णु भक्तिञ्च शाश्वतीम् । निरोगंकुरुमांनित्यं निष्पापंकुरु सर्वदा । सर्वजंकुरुमादेवि धनवंतन्तथा कुरु । सम्वत्सरकृतं पापं दूरी कुरुममाक्षये।। फिर इस मंत्र से सूत्र लपेटकर फेरी करे । दामोदरनिवासायै धात्र्यैदेव्यैनमोनमः । सूत्रेणानेनबध्नामि सर्वदेवनिवासिनीम् ।। फिर इन मंत्र से फूल चमवे । धात्र्यैनमः, शान्त्यैनमः, कान्त्यै.. मेधायै., प्रकृत्यै., विष्णुपल्यै. महालक्ष्म्यै., रमाय., कमलायै.. इन्दिरायै, लोकमात्रे., कल्याण्य., कमनीयाय., सावित्र्यै.. जगद्धात्र्यै., गायत्र्यै.. सुधृत्यै., अव्यक्तायै., विश्वरूपायै.. सुरूपायै., अब्धिभवायैनमः इन मंत्रों से फूल चढ़द्मना, धात्री के मूल में तर्पण करना । पितापितामहाश्चान्ये येऽपुत्रायेप्य तेपिवन्तु मयादत्तं धात्रीमूले क्षयम्पयः ।। आब्रहमस्तम्ब पर्यन्तमित्यादि से फिर तर्पण करे । यह तर्पण सव्य ही से करे । धात्री के नीचे दामोदर भगवान की पूजा करे, चित्रान्न, चित्रवस्त्र समर्प, ब्राह्मणों का जोड़ा खिलावे, भगवान की षोडशोपचार पूजा करके इस मंत्र से अर्घ दे । अध्यं गृहाण भगवन् सर्वकामप्रदोभव । अक्षय्यासंततिर्मेस्तु दामोदर नमोस्तुते । । इत्यादि अथ कार्तिक शुदा १०- इस दसमी को सार्वभौम व्रत होता है। अथ कार्तिक शुदा ११ – इस एकादशी का नाम प्रबोधिनी है । इस दिन भगवान सो कर उठते हैं, इससे यह परम मंगल दिन है । इस दिन जिस समय मुहूर्त अच्छा हो उस समय भगवान को जगाना । पहिले नीचे पृथ्वी में अनेक रंगों से मंगल-मंडप, सथिया, चक्र इत्यादिक बना कर उस पर चौसठ ऊख का चार खंभा बनाकर खड़ा करना, उसके नीचे भगवान को बिठाना और फिर घंटा शंख बजाते हुए इन मंत्रों से जगाना । ब्रहमेन्द्ररुद्राग्नि कुवेरसूर्य सोमादिभिर्वन्दित वन्दनीय । गोत्रिणः । भारतेन्दु समग्र ८१०