पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८५५

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बुद्धचस्वदेवेश जगन्निवास मंत्रप्रसादेनसुखेनदेव । । इयं च द्वादशी देव प्रबोधार्थतुनिर्मिता । त्वयैवसर्वलोकानां हितार्थ शेषाशायिना ।। उत्तिष्ठोत्तिष्ठगोविन्दत्यजनिद्रामजगत्पते । त्वयिसुप्तेजगत्सुप्तमुत्थितेउत्थितं जगत् । उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द उत्तिष्ठगरुड़ध्वज । उत्तिष्ठपुण्डरीकाक्ष त्रैलोक्ये मंगलकुरु ।। तथाच जो निकुंज के परम रस के अधिकारी हों वह इस मंत्र से जगावें । विगता रजनी नाथ प्रमदानां सुखप्रदा । उदेत्ययंदिनमणिवियोगी जनवंचकः ।। प्राणनाथ जगन्नाथ गोपीनाथ कृपानिधे । चिरसुप्तोसिजागृष्व सुरतनम कर्षितः ।। ललितावाद्यतेवीणां विशाषा नृत्यतेंगणे। गायन्ति गोपिकास्सर्वास्तावकंनिर्मलयशः । । वयस्या द्वारि सम्प्राप्ताः क्रीड़ातवमानद ।। हय्यंगवीनहस्ता सा त्यां यशोदा भि वांछति । वियुक्ताश्चक्रवाकिन्यः पक्षिणो कुर्वते रवम् । वाति वायुस्सुखस्पर्शो दीपोयं मन्दतांगतः । । उत्तिष्ठोत्तिष्ठ प्राणेश उत्तिष्ठोतिष्ठ वल्लभ । मुखन्दर्शय मे नाथ वियोग शमयप्रिय । त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्सुप्तम्भवेदिदम । उत्थिते चेष्टते समुत्तिष्ठोतिष्ठ माधव ।। इन मंत्रों से जगा के पंचामृत स्नान कराना और चंदनार्दिक से उद्वर्तन करके शीत के नए वस्त्र समर्पण करके पुष्पादिकों से पूजन करना । मंत्र - गतामेवा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः । शारदानिच पुष्पाणि गृहाण मम केशव ।। इस भांति पुष्प, गंध, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य, तांबूल, फलादिक अर्पण करके आरती करके इन मंत्रों से स्तुति करना। यो विद्यया !नुपहतोपिदशार्दवृत्या' निद्रामुवाह जठरीकृतलोकयात्रः । अन्तर्जलेहि कशिपुस्पर्शानुकूलाम भीमोमिमालिनि जनस्य सुखं विवृण्वन् ।। सोसांवदभ्र करुणो भगवान् विवृद्ध प्रमस्मितेन नयनाम्बुरुहं विजृम्भन् । उत्थाय विश्वविजयायचनोविषादम् माध्व्यागिरा उपनयतात्पुरुषः पुराणम् ।। यन्नाभिपद्यभवनादज आविरासीत् लोकत्रयोपकरणो यदनुग्रहेण । तस्मै नमस्त उदरस्थ भवाय योग निद्रा वसान विकसन्नलिनेक्षणाय ।। प्रार्थना करके दंडवत प्रदक्षिणा करके कार्तिक के सब व्रत भगवान के सामने समाप्त करे । इस दिन श्री ठाकुर जी को रथ पर बिठा कर नगर में घुमाने का महापुण्य है। भगवान को रथ पर बैठा कर मंगलपाठ

कार्तिक नैमित्तिक कृत्य ८११ 54