पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८५६

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वेदपाठ बाजा, शंख, घंटा बजाते हुए नगर में घुमावे और जहाँ जहाँ रथ जाय वहाँ वहाँ लोग पूजा करें । मंत्र - यद्रोषविभ्रम विवृत्तकटाक्षपात संभ्रान्त नक्र मकरो भयगीर्ण घोषः । सिन्धुश्शिरस्यहण (परि) गृहय रूपी पादारविन्दमुपगम्य बभाष एतत् । नत्वावयं जड़धियोरुवि दाम एतत् ।। कूटस्थमादिपुरुष जगतामधीशं । यत्सत्वतस्सुरगणा रजसः प्रजेशा अन्येय भूतपतय स्समवात गुणेशः । । कामम्प्रयाहि जहि विश्रवसोवमेह त्रैलोक्य रावणमवाप्नु हि वीर पत्नीम् । वध्नीहि सेतुमिहिते यशसो वितत्यै गायन्ति दिग्विजयिनो यमुपेत्य भूपाः ।। स्वस्त्यतु विश्वस्य खलः प्रसीदताम् ध्यायन्तु भूतानि शिवम्मिघोपिवा । मनश्चभद्रम्भजता दधोक्षजे आवेश्य तान्नो मतिरप्य हैतुकी ।। पुक्तश्शैव्यादिवाहेमरकतसुरणत्किंकिणीजालमाला रत्नोधैमोप्रेक्षणेनामृतौघक्तिकानामविरलमणिभिस्मम्मृतेश्चैवहारैः ।। हेमैः कुम्भैः पताका शिवतर रुचिभिर्भूषितः केतु मुख्यैः । छत्रैर्ब्रहमेशवन्धो दुरित हरहरे: पातु जैत्रो रथोव ।। वक्त्रं नीलोत्पलरुचि लसत् कुण्डलाभ्यां सुमृष्टम् । चन्द्राकारं रचित तिलकं चन्दने नाक्षतैश्च ।। गत्यां लीला जनसुखकारी प्रेक्षणेनामृतोत्रम् पद्मवास सृततमुरसा धारयन् पातु विष्णुः । । मोदन्तां सुजनास्वनिन्दितधियस्त्यक्ताखिलोपद्रवाः । स्वस्थास्सुस्थिरबुद्धयः प्रतिहता मित्रारमन्तां सुखम् ।। रे दैत्यागिरिगहवराणि गहनान्याशु व्रजध्वं भयात् । दैत्यारिभगवान यन्नरहरि गन समारोहति ।। पलायध्वम्पलायध्ये रे रे दनुज दानवाः । संरक्षणाय लोकानां रथारूढ़ो नृकेशरी ।। इन मंत्रों को पढ़ते और भगवान का चरित्र गाते हुए रथ को घुमावे । रथ के खींचने का. रथ के संग चलने का. रथ पर बैठे भगवान के दर्शन करने का. तथाच पूजा करने का अनन्त माहात्म्य है । विस्तार भय से यहाँ नहीं लिखा । इसी दिन तुलसी जी का विवाह भी है । तुलसी-विवाह की विधि विशेष और ग्रंथों में लिखी है. देख लो । सेक्षेप से यहाँ लिखते हैं । तुलसी अपने हाथ से घर वा बगीचे में लगाना. जब तीन महीने का वृक्ष हो तब उसका पूजन आरंभ करना और फिर शुभ मुहूर्त देखकर विवाह करना । मंडप. कलश-स्थापन. वेदी इत्यादि सब विवाह की भाँति बनाकर नवग्रह, मख, मातृका-पूजन नांदी श्राद्ध करके दान करना । जो लग्न कोई अच्छी मिले तो उस लग्न में, नहीं तो गोधूली में विवाह करना । अंतरपट करके "वासश्रुतः" इस मंत्र से वस्त्र पहिराना । "यदावने" इस मंत्र से कंकण बांधना और मंगलाष्टक पाठ करके अंतरपट हटाकर "मयासम्वर्दिता यथाशक्त्यलंकृतामिमांनुलसी देवी दामोदराय वराय तुभ्यमहं सम्प्रददे" यह संकल्प करके जल भगवान के सामने छोड़ना और तुलसी का भगवान से छुला देना । उस समय यह मंत्र पढ़वाना "कोदात्कस्माअदात" इत्यादि । फिर होम करना "पंचत्वनो अग्ने इत्यादि" मंत्र से नव आहुति देकर फिर होम भारतेन्दु समग्र ८१२