पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८६

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को ६० इनको हु कछ कहि जाइये तो । तिनको मुखचंद दिखाइये तो। वियोगी इन्हें समझाइये तो। बहराइ के धीर धराइये तो ॥६१ अखियाँ जिहि द्यौस सो लागी । जू बानि महा अनुरागी । रंगी कल लाजहि त्यागी । लालन पोछि करी बड़-भागी ।६२ को यह रार निवारि सके। यह प्रेम के आँसू निवारिसके ।६३ जिनते कछु बातें न मैंने छिपाई।

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भले की बुरे की 'हरिचंद' से पतितह की जरी ऐसी लाज आवै कौन काज जानै आज थोरे की बहुत की न एक की न दोई की । लखन न दीनों भरि नैन प्राननाथ 'चाहे जो चुनिन्दा भयो जग बीच मेरे मन सदा व्याकुल ही रहैं आपु बिना तौ न तू कबहूँ कहूँ निदा कर कोई की ।५५ मैं बृषभानुपुरा की निवासिनि मेरी इक बारह तोहि न देख्यौ कभू रहै बृज-बीथिन भाँवरी । एक सँदेसो कहीं तुम सों पै सुनो जौ 'हरिचंद' जू ये अँखियाँ नित की हैं करो कङ्गताको उपावरी । जो 'हरिचंद' जू कुंजन मैं मिलि जाहि दुखियान को प्रीतम प्यारे कबौं करो लखि कै तुम बावरी । बूमि है वाने दया करिकै कहिये रोवै सदा नित की दुखिया बनि ये परसों कब होयगी रावरी ।५६ केहि पाप सों पापी न प्रान चलैं रूप दिखाओ इन्हें कबहूँ 'हरिचद' अटके कित कौन विचार लयो । नहिं जानि परै 'हरिचंद' कट मानिहैं औरन सों नहिं ये तव रंग बिधि ने हमसों हठ कौन ठयो । निसि आजहू की गई हाय बिहाय आँसुन को अपने अंचरान सों बिना पिय कैसे न जीय गयो । हत-भागिनि आँखिन कों नित के घर-बाहर-केन को काम कछु नहि दुख देखिबे कों फिर भोर भयो ।५७ हम तो सब भाँति तिहारी भई तुम्हें 'हरिचंद जू' जो बिगरी बदिक छाडि न और सों नेह करौं । 'हरिचंद' जू छाँड्यो सबै कछु समुझाइ प्रबोधि के नीति-कथा इन्है एक तिहारोई ध्यान सदा ही धरौं । अपने को परायो बनाइ कै लाजहू तुम्हरे बिनु लालन कौन है जो छाँड़ि खरी बिरहागि जरौं । सब ही सहौं नाहिं कहौं कछु पै तुव संग में निसि-बासर ही रहते लेखे नहीं या परेखे मरौं ।५८ आजु लों जो न मिले तो कहा हम चे हितकारिनी मेरी हुती 'हरिचंद जू' तो तुमरे सब भाँति कहावै । मेरो उराहनो है कछु नाहिं सो सब नेह गयो कित को सबै फल आपुने भाग को पावै । जो 'हरिचंद' मई सो मई अब और चवाव करै उलटो हरि प्रान चले चैहे तासों सुनावै । प्यारे जू है जग की यह रीति हौं कुलटा हौं कलंकिनी हौं हमने बिदा की समै सब कंठ लगावै ।५९ सब छाँड़ दयो कहा खोलौ । जान दे री जान दे बिचार कुल-कानहू को आछी रही अपने घर में तुम गवन दे मेरे कुलटापन के गाथ को । क्यों यहाँ आई करेजहि छोलौ । मैं तो रही भूलि बिन बात को बिचारे जौन लागि न जाय कलंक तुम्हें कहूँ प्रेम को बिगारे छाँडु ऐसे सब साथ को । दूर रही सँग लागि न डोलौ । देखो 'हरिचंद' कौन लाभ पायो जामै पछि- बावरी हौं जो भई सजनी तो हटो ताय रहि गई धन पाय खोयो हाथ को । हम सो मति आइ के बोलौ ।६५ तिन्है कौन है जौन संवारि सके । धीरज कोऊ न पारि सके । होय गई सो पराई। मिलिबे की न एकह बात बताई । हाय ये एकह काम न आई ।६४ भारतेन्दु समग्र ४६