पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८६०

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न यथा पादमे, भार्गवार्चनचन्द्रिकायां च आश्विनस्य तु मासस्य या शुक्लैकादशी भवेत् । कार्तिकस्य व्रतानीह तस्यां वै प्रारभेत्सुधीः ।। ४ ।। यथा विष्णुरहस्ये प्रारभ्यैकादशी शुक्लामाश्विनस्य तु मानवः । प्रातः स्नानम्प्रकुर्वीत यावत् कार्तिकभास्करः ।। ५ ।। यथा मदनपारिजाते विष्णुः, तथा नारदीये च कार्तिकं सकलं मास नित्यस्नायी जितेन्द्रियः । जपन हविष्यभुक शान्तः सर्वपापैः प्रमुच्यते ।। ६ ।। इन वाक्यों का सारांश अर्थ यह है कि आश्विन शुक्ल एकादशी से आरंभ करके जो कार्तिक में जितेंद्रिय होकर और व्रतादिक कर पंचगंगा में प्रातः स्नान करता है वह मुक्तिभागी होता है और उसको यमराज का भय नहीं रहता और भी इसका महाफल लिखते हैं । तथा पुराणसारोदारे, नारदीये च प्रयागे माघमासे तु सम्यक् स्नानस्य यत्फलं । तत्फलं कार्तिके काश्यां पंचनद्यां दिनेदिने ।। ७ ।। कते धर्मनदं नाम त्रेतायां धूतपापकं । द्वापरे बिन्दुतीर्थं च कलौ पंचनदं स्मृतम् ।। ८ ।। अव्रतः कार्तिको येषां गतो मूढधियामिह । तेषाम्पुण्यलेशोपि दुष्टानां शूकरात्मनां ।। ९ ।। माघमहीने में प्रयाग नहाने का जो फल है वह कार्तिक में पंचगंगा में एक दिन स्नान से मिलता है। सत्ययुग में धर्मनद, त्रेता में धूतपापा, द्वापर में बिंदुसर, कलियुग में पंचगंगातीर्थ ही मुख्य है । जो लोग कार्तिक में स्नान-व्रतादिक नहीं करते वे मूढ़बुद्धि हैं, उन्हें किसी पुण्य का फल नहीं होता । यथा पद्मपुराणे कार्तिकमाहात्म्ये सत्यभामा प्रति श्री कृष्ण वाक्यम् कार्तिके मासि ये नित्यं तुलासंस्थे दिवाकरे । प्रातः स्नास्यन्ति ते मुक्ताः महापातकिनोपि वा ।। १० ।। स्नान जागरणं दीप तुलसीवनपालन । कार्तिके ये प्रकुर्वन्ति ते नरा विष्णुमूर्तयः ।। ११ ।। कार्तिकव्रतिनां पुंसां विष्णुवाक्यप्रणोदिताः । रक्षां कुर्वन्ति शक्राद्याः राजानं किंकरा यथा ।। १२ ।। विष्णुप्रियं सकलकल्मषनाशनं यत् सर्वत्र धर्मधनधान्यविवृद्धिकारि । ऊर्जव्रतं सनियम कुरुते मनुष्यः किं तस्य तीर्थपरिशीलनसेवया च ।। १३ ।। ते धन्यास्ते सदापूज्यास्तेषां च कुलमेव च । विष्णुभक्तिपरा ये स्युः कार्तिकव्रतकादिभिः ।। १४ ।। तुला के सूर्य में कार्तिक में जो लोग प्रात: स्नान करते हैं वे महापातकी हों तो भी मुक्त होते है । स्नान, जागरण, दीपदान, तुलसीपूजन इत्यादिक जो लोग करते हैं वे सब विष्णु के स्वरूप हैं । कार्तिक के व्रती लोगों की इंद्रादिक देवता ऐसी रक्षा करते हैं जैसे राजा की सेवक रक्षा करै क्योंकि उनको श्री विष्णुभगवान की यही आज्ञा है । विष्णु का प्यारा, कल्मश नाश करने वाला, और सब धर्म धान्य धन का बढ़ाने वाला कार्तिक व्रत जो लोग करते हैं उनको तीर्थों में घूमने से और उसकी सेवा से क्या है अर्थात् वह सब कुछ कर चुके । वह और उनके कुल धन्य हैं और पूज्य हैं जो कार्तिक में व्रतादिक से विष्णु की भक्ति करते हैं 1 तथा सनत्कुमारसहितायां कार्तिकमाहात्म्ये भारतेन्दु समग्र ८१६