पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८६१

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40 न कार्तिकसम धर्म्यमयं नो कार्तिकात्परं । न कार्तिकसम काम्यं मोक्षदानं च कार्तिकात् ।। १५ ।। तस्मात्सौरैश्च गाणेशैः शाक्तैः शैवैश्च वैष्णवैः । कर्तव्यं कार्तिकस्नानं सर्वपापापनुतये ।। १६ ।। न कार्तिकसमो मासो न काशीसदृशी पुरी । न प्रयागसम तीर्थ न देवः केशवात् पुरः ।। १७ ।। प्रसंगादा बलादापि ज्ञात्वा 5 ज्ञात्वा कृतंतु यत् । स्नानं कार्तिकमासस्य न पश्येद्यमयातनां ।। १८ ।। तावद्गजीन्त पापानि ब्रहमहत्यादिकानि च । न कृतं कार्तिके स्नानं यावज्जन्तुभिरादरात् ।। १९ ।। तीर्थराजादितीर्थानि प्राले कात्तिकमासके । स्नानार्थं पंचगंगांतु समयांति न संशयः ।। २० ।। दुर्लभो मानुषो देहो दुर्लभा काशिका पुरी । तत्रापि कार्तिके मासि पंचगंगं सुदुर्लभम् ।। २१ ।। कार्तिक के समान न कोई धर्म है, न अर्थ है, न काम है, न मोक्ष है न दान है । सब एक ही हैं इससे शैव, वैष्णव, शाक्त और गाणपत्य सब को कार्तिक स्नान करना चाहिए । काशी के समान कोई पुरी नहीं, प्रयाग के समान कोई तीर्थ नहीं, केशव के समान कोई देवता नहीं और कार्तिक के समान कोई महीना नहीं है । संग साथ से वा बल से, जाने वा बिना जाने भी जिसने कार्तिकस्नान किया है उसको यम का भय नहीं है । ब्रह्महत्यादिक पाप तभी तक गर्जना करते हैं जब तक जीव ने कार्तिकस्नान नहीं किया । प्रयागादिक सब तीर्थ कार्तिक में पंचगंगा स्नान को आते हैं । एक तो मनुष्य का देह दुर्लभ है दूसरे काशी पुरी दुर्लभ है तिसमें भी कार्तिक महीने में पंचगंगा तीर्थ अति दुर्लभ है । और भी इसकी महिमा बहुत लिखा है। यथा पदापुराणे स्वर्गखंडे तृतीयाध्याये तथा नारदीये रुक्मांगदोपाख्याने प्रातः स्नानं नरो यो वै कार्तिके श्रीहरप्रिये । करोति सर्वतीर्थेषु यत् स्नात्वा तत्फलं लभेत् ।। २२ ।। सब तीर्थों में स्नान करने का जो फल है वह कार्तिक में प्रातः स्नान से मिलता है। तथा तत्रैव विशतितमेध्याये श्रष्ठं विष्णुव्रतं विप्र तत्तुल्या न शतं मखाः । कृत्वा व्रत व्रजेत् स्वर्ग वैकुंठं कार्तिकव्रती ।। २३ ।। श्रीविष्णु भगवान् का व्रत सब व्रतों में उत्तम है, सौ यज्ञ भी उसके समान नहीं हैं, जो लोग इस कार्तिक का व्रत करते हैं वे व्रती लोग वैकुंठ नामक स्वर्ग में जाते हैं। तथा वायुपुराणे । यदीच्छेदिपुलान् भोगान् चन्द्रसूर्यग्रहोपमान् । कार्तिकं सकलम्प्राप्य प्रातःस्नायी भवेन्नरः ।। कार्तिक का माहात्म्य सब शास्त्रों में बहुत कहा है, कहाँ तक लिखें । इस कार्तिक में एक व्रत और भी होता है, जिसका नाम मासोपवास है। यथा हेमाद्री विष्णुरहस्ये व्रतमेतत्तु गृहवीयाद्यावत्रिंशबिनानि आश्विनस्यासितेपक्षे एकादश्यामुपोषितः ।। २४ ।। वासुदेव समुविश्य कार्तिके सकले नरः । मास चोपवसेचस्तुस मुक्तिफलभाग् भवेत् ।। २५ ।। कृत्वा मासोपवास च विचार्य्य विधिवनमुने । कार्तिक कर्म विधि ८१७