पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८६३

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हविष्येषु यवाः मुख्यास्तदनु ब्रीहयः स्मृताः । माषकोद्रवगौरादीन सर्वाभावेपि वर्जयेत् ।। ३५ ।। तत्रैव अग्निपुराणे ब्रीहि षष्टिक मुद्राश्च कलायाः सलिलम्पयः । श्यामाकाश्चैव नीवारा गोधूमाद्याव्रते हियाः ।। ३६ ।। हविष्य में इतनी वस्तु लेना । जाड़े का सपेद चावल, धान, मूंग, तिल, यव, मटर कैंगुनी, तिन्नी का चावल, बथुआ का शाक, हेला का शाक, कालिका का शाक, केमुका का शाक, साठी का चावल, सेंधा नोन और समुद्र का नोन, दही, घी, बिना घी निकला दूध, कटहर, आम, हरै, केला, हारफारेवड़ी, आँवला, चीनी मिश्री (गुड़बिना), पीपल, जीरा, नारंगी, इमली. तैल में न किया होय ऐसे अन्न को मुनि लोग हविष्य कहते हैं । हविष्य में जव मुख्य है वा नहीं तो धान भी ग्राहय है परंतु उड़द, कोदो, सपेद गेहूँ तो कुछ अन्न न मिलता होय तौ भी नहीं लेना । धान, साठी का चावल, मूंग, कलाई, जल, दूध, साँवाँ, तिन्नी, लाल गेहूँ ये व्रत में लेना । भोजन करने की वस्तु लिख के अब न खाने वाली वस्तु लिखते हैं । यथा सनत्कुमारसंहितायां कार्तिकमाहात्म्ये सर्वथैव न भोक्तव्यमामिषान्नं तु कार्तिके । तत्सर्वदा वर्जनीयं कार्तिके तु विशेषतः ।। ३७ ।। दग्धमन्नं द्विपक्कं च मसूराम्नं सवल्कलं । उबालकाः पर्युषितमन्नमामिष उच्यते ।। ३८ ।। वृन्ताकानि पटोलानि तुम्बिका च कलिंगकं । बिम्बीफलानि त्रपुमं फलशाकेषु चामिषं ।। ३९ ।। दोरका तुलसी चिल्ली छत्राकं पोत्र पत्रकं । चक्रवर्ती राजगिरिः पत्रशाकेषु चामिष ।। ४०।। गजरं रक्तमूलं च पलांडुर्लशुनं तथा । सर्वदेवामिषाणि स्युः कार्तिके स्मरणं त्यजेत् ।। ४१ ।। परमासैः स्वमांसानि यः पुष्णाति नराधमः । परजन्मनि तस्यैव विष्ठायां जायते कृमिः ।। ४२ ।। बालान्मृगान् पक्षिणोवा तथा बालफलानि च । घातयन्ति दुरात्मानो जायन्ते मृतबालकाः ।। ४३ ।। सर्वाण्येकत्रदानानि सर्वतीर्थान्यथैकतः । सर्वव्रतान्येकतश्च यहिंसाकलया सभा ।। ४४ ।। एवं विचार्य मुंजीत स्वान्नं विष्णुनिवेदितम् ।. कार्तिक में मांस और उस के समान जितनी वस्तु है वह सब सर्वथा न खाना । और यह मांस तो सर्वदा वर्जनीय है परंतु कार्तिक में विशेष करके अर्थात् मांस इत्यादिक बुरी वस्तु कभी नहीं खाना ! जल अन्न, दो बेर किया हुआ अन्न, मसूर, कुरथी, बासी अन्न ये सब भी मांस कहलाते हैं । मंटा, परवल, तुम्बी फल, तरबूज, कुंदुरू और ककड़ी, ये सब फल के शाक में मांस के तुल्य है । तुलसी, छाता शाक, पोई, चकोंड़, राजगीरा ये सब पत्ते शाक में आमिष के तुल्य है । गाजर, लाल मूली, लहसुन, गोभी, प्याज इत्यादि मांसवत् सर्वदा ही त्याग करना और कार्तिक में तो इन का स्मरण भी नहीं करना । दूसरे जीवों के मांस से जो पापी अपने मांस को पुष्ट करता है अर्थात् जो लोग बल पुष्टता वा स्वाद के लोभ से किसी पशु या पक्षी का मांस खाते हैं वे मनुष्याधम दूसरे जन्म में उसी जीव के (जिसका मांस खाया है) विष्टा के कीड़े होते हैं । छोटे पशुओं को, छोटे पक्षियों को जो मारते हैं, जो कच्चे फलों को तोड़ते हैं, वे लोग दूसरे जन्प में मरे बालक होते हैं । सब व्रत और सब दान और सब तीर्थ का एकत्र फल और अहिंसा का फल बराबर है ऐसा विचार के सुंदर प्रसादी अन्न ही भोजन करना, मासादिक सर्वथा नहीं खाना । तथा पाद्म कार्तिकमाहात्म्ये कार्तिक कर्म विधि ८१९