पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८६६

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अचिन्त्यफल प्राप्त्यर्थ श्रीगंगास्नानमहंकरिष्ये ।" ऐसे संकल्प करके फिर प्रतिज्ञा करना इस मंत्र से- कार्तिक ऽहं करिष्यामि प्रातः स्नान जनाईन । प्रीत्यर्थ तव देवेश दामोदर मया सह ।। ६१ ।। यह प्रतिज्ञा का मंत्र पढ़ना (यह मंत्र सब कार्तिकमाहात्म्य में लिखा है) फिर इन मंत्रों से दीजिए। यथा स्कान्दे पाद्मे ब्राहमे सनत्कुमारसंहितायां च नमः कमलनाभाय नमस्ते जलशायिने । नमस्तेस्तु हृषीकेश गृहाघय नमोस्तुते ।। नित्ये नैमिततिके कृत्ये कार्तिक पापशोधने । गृहाणायं मया दत्तं राधया सहितो हरे ।। ६२ ।। ब्रतिनः कार्तिके मासि स्नातस्य विधिदन्मम । गृहाणाय मया दत्तं दनुजेन्द्रनिषूदन ।। ६३ ।। दामोदर जगन्नाथ शंखचक्रगदाधर । राधाकान्त गृहाणाच्य प्रसीद परमेश्वर ।। ६४ ।। द्रवरूपेण देवेश वर्तते गांगवारिषु । इदमयं गृहाण तत्वं स्वीकृत्य करुणां कुरु ।। ६५ ।। ऐसे अर्घ्य प्रदान करके फिर बाल में अंवला तिल और तुलसी की मट्टी लगाना और जिस जिस दिन अंवला तिल न लगाना हो उस दिन केवल तुलसी की मट्टी लगाना । फिर श्रीगंगा जी की मृत्तिका का तिलक (अश्वक्रांते रथक्रांति) इस मंत्र से करके हाथ जोड़ के दंडवत् करके प्रार्थना करना । किरणा धूतपापा च पुण्यतोया सरस्वती । गंगा च यमुना चैव पंचनद्यः पुनन्तु माम् ।। ६६ ।। अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवन्तिका । पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिकाः ।। ६७ ।। विष्णोराज्ञामनुप्राप्य कार्तिकवतकारिणः । रक्षन्ति देवास्ते सव्वे मां पुनन्तु सवासवाः ।। ६८ ।। वेदमन्त्राः सबीजाश्च सरहस्यामखान्विताः । कश्यपाद्याश्च मुनयो मां पुनन्तु सदैवते ।। ६९ ।। नमस्ते देवदेवेश शंखचक्रगदाधर । देव देहि ममानुा युष्मत्तार्थनिषेवणे ।। ७० ।। नन्दिनीत्येष ते नाम देवेषु नलिनीतिच । दक्षा पृथ्वी च विहगा विश्वनाथा शिवा सती ।। ७१ ।। विद्याधरी सुप्रसन्ना तथा लोकप्रसादिनी । क्षेमावती जान्हवी च शान्ता शान्तिप्रदायिनी ।। ७२ ।। एतानि पुण्यनामानि स्नानकाले प्रकीर्तयेत् । भवेत्सन्निहिता तत्र गंगा त्रिपथगामिनी ।। ७० फिर हाथ जोड़ के यह मंत्र पढ़िए । स्वर्गारोहणसोपानं त्वदीयमुदक अतः स्पृशामि पादाभ्यामपराध क्षमस्व मे ।। ७४ ।। ऐसे प्रार्थना करके मौन होय के स्नान करना, भगवान का नाम लेना । श्री गंगा जी के निकट कुल्ला नहीं करना । ऐसे स्थान करके सीढ़ी पर एक अर्घ्य देना । शिवे । मंत्र । यन्मया दूषित तोय शारीरमलसम्मः । भारतेन्दु समग्र ८२२