पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८७१

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तुलस्यलंकृता ये ये तुलसीनामजापकाः । तुलसीवनपाला ये ते त्याज्या दूरतो भटाः ।। १२० ।। यमराज दूतों से आज्ञा करते हैं कि हे दूत लोग हमारी बात सुनो, जो तुलसी की कंठ पहिनते हैं, जो लोग तुलसी का नाम जपते हैं, जो लोग तुलसी के बन की रक्षा करते हैं उनको तुम लोग दूर ही से छोड़ देना । तथा स्कन्दपुराणे कार्तिकमाहात्म्ये तुलसीगन्धमादाय यत्र गच्छति मारुतः । दिशा दश च ता: पूताः भूतग्रामं चतुर्विधम ।। १२१ ।। तुलसी जी की सुगंध लेकर जहाँ जहाँ वायु जाता है वहाँ वहाँ की दसो दिशा और वहां के चारों प्रकार के जीव पवित्र हो जाते हैं। अब तुलसीपूजा के मंत्र लिखते हैं। अथ ध्यानम ध्यायेन्च तुलसी देवी श्यामां कमललोचना । प्रसन्नामलकरहार वराभय चतुर्भुजाम ।। १२२ ।। किरीटहारकेयूरकुण्डलादिविभूषितां । धवलाशुकसंयुक्तां पद्मासन निषेविताम ।। १२३ ।। अथ आवाहनम देवि त्रैलोक्यजननि सर्वलोकैकपावनि । आगच्छ भगवत्यत्र प्रसीद श्रीहरिप्रिये ।। १२४ ।। अथासनम सर्वलोकमये देवि सर्वदा विष्णुवल्लभे । देवि स्वर्णमयं दिव्यं गृहाणासनमव्ययम् ।। १२५ ।। अथापर्यम् सर्वदेवतलाकार सर्वदेवनमस्कृते । दत्तं पाद्य गृहाणेदं तुलसि त्वं प्रसीद मे ।। १२६ ।। अथाचमनीयम सर्वलोकस्य रक्षार्थ सदा कल्याणकारिणी । गृहाण तुलसि प्रीत्या इदमाचमनीयकम् ।। १२७ ।। अथ स्नानम गंगादिभ्यो नदीभ्यश्च समानीतमिदं जनं । स्नानाथ तुलसीदेवि प्रीत्या तत प्रतिगृहयताम ।। १२८ ।। अध वस्त्रम क्षीरोदमथनोदभूते लक्ष्मी चंद्रसहोदरे । गृहयतां परिधानार्थमिदं क्षौमाम्वरं शुभे ।। १२९ ।। अथ गन्धम श्रीगंधकुंकम दिव्यं कर्परागरूसंयुतं । कल्पित ते महादेवि प्रीत्यर्थ प्रतिगृहयतान ।। १३० ।। अथ पुष्पम नीलोत्पलमुकाहारमालन्यादीनि शोभने । पदादि गंधवत्शीने पुष्पाणि प्रतिगृहयताम ।। १३१ ।। अथ धूपम धूपं गृहाण देवेशि मनोहरि सुमंगलं । आज्यमिश्रनु तुलांस भक्तस्या भीष्टदायिनि ।। १३२ ।। अथ दीपन

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55 कार्तिक कर्म विधि ८२७ Mart