पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नमस्न अज्ञानतिमिरांधेभ्यो ज्ञानदीपप्रदायिनि । दत्त: नुर्मास प्रीत्यर्थ दीपायं प्रतिगृहयताम् ।। १३३ ।। अथ नैवेद्यम जगतांनाथ प्राणिनां प्रियदर्शन । बधाशक्ति मया दत्तं नैवद्य दवि गृहयताम् ।। १३४ ।। अथ जलम नमा भगर्वात श्रेणं नारायणि जगन्मये । ननांस त्वरया देवि पानीयं प्रतिगृहयताम।। १३५ ।। अथ ताम्बूनम अमृतेऽमृतसम्भूत तुलस्यमृतरूपिणि । राणाकप्यूरसंयुक्त नाम्बूलं प्रांतगृहयताम ।। १३६ ।। इदं फां मया दवि स्थापित पुरनम्नव । अनन सफला वाप्तिर्भवजन्मान जन्मनि ।। १३७ ।। नथ प्रक्षणा दक्षिण दक्षिणकर न्वदभक्तानाम्प्रयंकार । ऋगाम न सदाभवन्या विष्णुकान्न प्रदक्षिणाम ।। १३८ ।। -पथ नमस्कार पुष्पांजलिः नमानमा जगदान्य नादाद्य नमानमः । नमानमा जगभून्य नमस्त परमश्वरि ।। १३९ ।। नमस्तुगाम कल्याणि नमा विष्णप्रिय शुभ । माक्षपद नांव नमः मपन्प्रदायिनि ।। १४०।। नामा गत मा नित्यं सांपलभ्यागि सञ्चंदा । कार्निना वा स्मता वापि या पावनि मानुपान ।। १४१ ।। महाप्रसादान मञ्चपापनाशिनि । धिचापिहर दाव नगमि त्वां नमाम्यहम ।। १४२ ।। या दृष्टा निम्तिगायनशमना स्टा वायुःशवनी । गगाणामाभन्दिना निग्मना मित्तानकवामिनी ।। प्रन्यासांनावधाबिना भगवन कृष्णस्य संगपिना । न्यग्ना नन्दरण विन्तिाफलदा नम्यै नुनस्यै नमः ।। १४३ ।। अथ प्रार्थना प्रमाः माय वाश कृपया परया सदा । भाटलामध्यर्थ कर म माधप्रियं ।। १४४ ।। हम ग स निन्य लुनमा पूजन करना और तुलसी के पत्र में विष्णु का पूजन करना । यथा गागर गवामयनानन यन्फनभत लग। नृतमीपत्रमवन नताशगं क्रानिक स्मृतम ।। १४५ ।। अयुत गादान करन का जा फल है वह कार्तिक न एक तृगामा पत्र नद्यन म मिलता है. यह आप श्रामुख म आज्ञा करते हैं गरदना स । इम भनि नलसा पूजन करक, फिर आँवला की पूजा करना तथा कार्तिक माँवला का माला भा पहिरना । यथा स्कान्द कार्तिक माहास्य पुराणमागद्वार न । भारतेन्दु समग्र ८२८