पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८७४

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दिवाकरे स्ताचलमौलिभूते गृहाददरे पुरुषप्रमाणं । यूपाकृति यज्ञिय वृक्षदासमारोप्यभूमावथतस्य मूर्ध्नि ।। १५६ ।। यवांगुलच्छिद्रयुतास्तु मध्य द्विहस्तदीर्घा अथ पट्टिकास्तु । कृत्वा चझोष्टदला: कृतास्तु याभिर्भवेदष्टदिशानुसारि ।। १५७ ।। तत् कर्णिकायान्तु महाप्रकाशो दीपा: प्रदेया दलगास्त्थाष्टौ । निवेद्य धाय हराय भूम्यै दामोदरायाप्यय धर्मराजे । प्रजापतिभ्यस्त्वथमपितृभ्यः प्रेतेभ्य एवाथतमः स्थितेभ्यः ।। १५८ ।। जब संध्या होय तब घर के पास मनुष्य के बराबर पवित्र लकड़ी गाड़ के उसके ऊपर दो हाथ का बाँस लगाना. उस ऊपर चौमुखा वा अठमुखा दीया रख के आठ बत्ती वा आठ पत्ती पर आठ दीया बालना । इन आठों के निमित्त १ धर्म २ महादेव जी ३ पृथ्वी ४ श्री राधादामोदर ५ धर्मराज ६ प्रजापतिगण ७ पितृगण ८ अंधेरे में रहने वाले ग्रंत । इन आठों के निमित दीपदान करना और वैष्णवों के मंदिर में ऊंचा बाँस गाड़ के उस पर इस मंत्र से दीपदान करना । दामोदराय नभसि तुलायां दोलया सह । प्रदीपं ते प्रयच्छामि नमोनन्ताय वेधसे ।। १५९ ।। कार्तिकमाहात्म्य में २० वा २ व ५ हाथ का बाँस लिखा है । इस प्रकार आकाश दीपदान करके फिर भगवन्मंदिर में, राजमार्ग में, गंगा जी के तट पर दीपदान करना । यथा सनत्कुमारसंहितायाम कार्तिकेमासि सम्प्राप्ते गगने स्वच्छतारके । रात्री लक्ष्मी समायाति द्रष्टुम्भवनकौतुकम ।। १६० ।। यत्यत्र च दीपान्सा पश्यत्यब्धिसमुद्भवा । तत्रतत्र रति कुन्निान्धकार कदाचन ।। १६१ ।। देवालये नदीतीरे राजमार्गे विशेषतः । निद्रास्थान दापदाना तस्य श्री सर्वतोमुखी ।। १६२ ।। कीचकंटकसकार्ण विषमे दुर्गमस्थले । कुर्याद्यो दीपदानानि नरकं स न गछति ।। १६३ ।। कार्तिक महीने की रात का जत्र स्वच्छ नारे निकले रहते हैं तब लक्ष्मी जी घर का कौतुक देखने को आती है. सो वह जहाँ जहाँ दिये बलते दखता है वहाँ प्रसन्न होकर निवास करती हैं और जहाँ अधकार देखती हैं उस स्थान को त्याग करती हैं । देवता के मंदिर में नदी के तीर पर राजमार्ग में विशेष कर के और निद्रा की जगह दीया बालनेवाले लोगों को लक्ष्मी जी सर्वतामुख रहती हैं । कोच में. कांटे की जगह में ऊची. नीनी, सकरी दुर्गम जगह में जो लोग दीपदान करते हैं वे नरक में नहीं जाते । इस मंत्र से दीपदान करना मन्त्रहीन क्रियाहीन जपहीनं जनाईन । व्रतसम्पूर्णता यातु कार्तिक दीपदानतः ।। १६४ ।। और जो विद्यार्थी को पढ़ने के वास्ते तेल देते हैं उन्हें भी बड़ा पुण्य होता है। तथा तत्रैव यो वेदाभ्यासिन दद्याद्दीपार्थ तैलमुत्तम । कार्तिकमासि सम्प्राप्त समुक्तिफाभागभवेत ।। १६५ ।। जो कार्तिक में पढ़ने वाले विद्यार्थी को दीये का नल देते हे घे मुक्तिफल पाने है 1 और कार्तिक सुदी सप्तमी को कामना होय तो कीर्तवीर्य के वास्न दीपदान करना, यह सब कामना का पूर्ण करने वाला है। यथा प्रयोगरत्नाकर उंडाभरतत्रेच कर्ज मासि सितेपक्षे सातम्याग्भानुवासर । भारतेन्दु समग्र ८३०