पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८७८

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उदृतासि वराहेण कृष्णेन शतबाहुना । नमस्ते सर्व देवानांप्रभवारणि सुव्रते ।। इस मंत्र से मृत्तिका शिर में लगाय के स्नान करै । स्नान करके जल में वस्त्र न निचोड़े। फिर आचमन करके कपड़ा पहन के फिर आचमन करै । फिर संध्या तर्पण आरंभ कर, तिसमें पहले उर्ध्वपुंइ धारण करके फिर संध्यादिक कर्म करै । इत्यादिक द्वितीयाध्याये । श्री भगवान आज्ञा करते हैं कि तुलसी की मृत्तिका वा गोपीचंदन वा प्रसादी कुंकुम चंदनादि से तिलक लगाने का बड़ा पुण्य है और गोपीचंदन से शंख चक्रादिक चिन्ह हृदय बाहुमूल इत्यादिक अंगों में धारण करना । इत्यादि तृतीयाध्याये । श्री भगवान कहते हैं कि तुलसी के काठ की माला जो धारण करते हैं वे चाहे भले हों चाहे बुरे हमारे हो होते हैं । लुलसी की काठ की या आंवले की माला जो लोग पहिनते हैं वे हमारे स्वरूप हैं । इस भांति तिलक धारण करके, फिर संध्या करके. गुरु को भेंट करके, साष्टांग दंडवत करके, हमारी मानसी पूजा करके फिर विधि पूर्वक षोडशोपचार पूजा करै । इत्यादि चतुर्थाध्याये। श्री भगवान आज्ञा करते हैं कि जो लोग हमें अगहन में पंचामृत से स्नान कराते हैं वे लोग कोटिन गोदान का फल पाते हैं । जो लोग शंख से हमें स्नान कराते हैं वे जीवनमुक्त हैं । जिनके घर शंख की पूजा होती है वे धन्य हैं। इत्यादि पंचमाध्याये। आप कहते हैं कि जो लोग हमारे सामने वंटा बजाते हैं उनकी पूजा का करोड़ गुना फल होता है क्योंकि घंटा पर गसड़ जी रहते हैं और गरुड़ जी के पक्ष से सामवेद निकलता है. इससे जो पूजा की समय घंटा बजाता है उसको बहुत फल होता है । जो लोग हमारी पूजा में नृत्य गान इत्यादिक करते हैं वे लोग अपने पित्रों के सहित वैकुंठ पाते हैं। जो लोग हमें तुलसी के काठ का चंदन चढ़ाते हैं वे हमारे प्रिय होते हैं । तुलसी दमनकं मइयं दत्वा यस्सेवते पुनः । मार्गशीर्षे सदा भक्तया सलभेद्वान्छितं फलं ।। १ ।। इत्यादि षष्ठाध्याये । श्री भगवान आज्ञा करते हैं कि जो लोग हमै अगहन में कमल का फूल चढ़ाते हैं वे लोग हमारे बल्लम होते हैं । हमको बिना सुगंधि के फूल और कीड़े का चाटा फूल नहीं चढ़ाना । सब फूलों में जाती फूल का विशेष माहात्म्य है. इस हेतु आप आज्ञा करते हैं। यथा- सर्वासाम्पुष्पजातीनां जातीपुष्यमिहोत्तमं । जातिपुष्पसहस्राणांयच्छेन्माला सुशोभना ।। महंययोविधिवदद्यात्तस्यपुण्यफलशृणु । कल्पकोटि सहस्राणी कल्पकोटिशतानि च ।। मत्पुरेवसते श्रीमान् ममतुल्य पराक्रमः ।। सर्वेषांपत्र पुष्पांणां तुलसी मम वल्लभा । अन्येषामपिदेवानां न निषिद्धाकदाचन ।। २ ।। सब फूलों में जातीफूल की विशेष महिमा है । हजार जाती फूल माला जो हमको समर्पण करता है वह हजार करोड़ कल्य और सौ करोड़ कल्प हमारे लोक में हमारे तुल्य पराक्रम होकर वास करता है । और सब फूलों से तुलसी हमको बहुत प्यारी है दूसरे देवताओं की पूजा में भी तुलसी निषिद्ध नहीं है। इत्यादि सप्तमे। श्री भगवान आज्ञा करते हैं कि तुलसी हमको अत्यंत प्रिय है। यथा श्री मत्तुलस्यार्चयते सकृतिमापत्रैः सुगन्धैर्विमलैरखंडितैः ।

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भारतेन्दु समग्र ८३४