पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८८३

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अगहन सुदी ६ स्कंद षष्ठी या चम्पाषष्ठी है । इसमें सूर्य और स्कंद की पूजा करना । इस मंत्र से कार्तिकेय की पूजा करना । सेनाविदारकस्कंद महासेन महावल । रुद्रोमांगजषडवक्त्र गंगागर्भनमोस्तुमे ।। इत्यादि दिवोदासीये चम्पाषष्ठी। अगहन सुदी ७ सूर्य तीर्थ में नहाना और सूर्य की पूजा करना और श्रीयमुनाजी में वा पंचगंगा में स्नान करना, यह कंद पुराण के मार्गशीर्ष माहात्म्य में लिखा है। यथा- मार्गशीर्षतुयाशुक्ला सप्तमी भानुसंयुता । कर्तव्यासा प्रयत्नेन सूर्यपर्व शताधिका ।। तस्यांदतंहुतंजप्तं तपस्तप्तं कृतंचयत् । अक्षयंतद्विजानीयाद्यमुनायांन संशयः । । इत्यादि स्कांदे सूर्य सप्तमी अगहन सुदी ११ मोक्षा एकादशी, हेमाद्रि ग्रंथ में भविष्योत्तर का वाक्य लिखा है । इसमें जागरण और दीपदान का फल विशेष है। इत्यादि मोक्षात्रत अगहन सुदी १२ को मत्स्य पूजा करना । इस दिन मत्स्य भगवान का उत्सव है । यह बात स्कन्दपुराण के एकादशी माहात्म्य में लिखी है। यथा-- ततः प्रभात समय काय्यं मत्स्योत्सवबुधैः । इत्यादि । अगहन सुदी १४ को पिशाच मोचन तीर्थ पर श्राद्ध करना. यह त्रिस्थलीसेतु में लिखा है । इसमें श्राद से पित्रों का मोक्ष होता है। इत्यादि निर्णयसिन्धौ पिशाचमोचने श्राद्ध । अगहन सुदी १५ को दत्तात्रेय जन्म है. यह बात स्कंदपुराण के सहयाद्रि माहात्म्य में लिखी है । इससे दत्तात्रेय की पूजा और उनका दर्शन करना । यथा.- मार्गशीर्षे तथा मासिदशमेहिनमुनिमले । मार्गशीर्ष पौर्णमास्या मृगशीर्षयते बुध ।। जनयामास देदीप्यमानं पुत्रं सती शुभं । तम्बिष्णुमागत दृष्ट्वा अविर्नामाकरोत्सवं ।। दतवानस्वस्य पुत्रस्यदत्तात्रेयमितीश्वरम् । इत्यादि स्कांद दत्तात्रेयजन्मोत्सवः । इसी अगहन सुदी १५ का जो कुछ दान पुण्य स्नान बन पड़े करना उचित है । काई पर्व नहीं है. यह बात स्कंदपुराण के मार्गशीर्ष माहात्म्य में लिखी है। पूर्णिमा के समान यथा- स्नान दान तथा पूजा पूर्णावाग्रकराति यः । पष्टि वर्ष सहस्राणि रौरवे परिपच्यते ।।१।। गादानभूमिदानं न वस्त्रान्नानि च यदभवेत् । मार्गशीर्ष पौर्णमाभ्यांदानस्वादक्षयं फलं ।। अगहन की पनवासी का जो स्नानदानादिक नहीं करते वह साठ हजार वरस रौरव में वास करते हैं गहन मनी १५ का जो कछ दान करता है वह अक्षय होता है । अगहन में श्रीमदभागवत सुनने का बड़ा माहात्म्य है। यथा मार्गशीर्ष माहात्म्ये । 1 06 मार्गशीर्ष महिमा ८३९