पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८८६

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माघस्नान-विधि रचनाकाल सन् १८७३। सं. माघ स्नान विधि नव अथार । भरित नह नार नित. बरसन सुरस जर्यात अपूरब चन काज, लखि नाचन मन मार ।।१।। माध-स्नान पूस सुदी एकादशी वा पूनम से प्रारंभ करके माघ सुदी द्वादशा वा पूनम का समाप्त करना चाहिए । माघ में मूली नहीं खानी । नहाने की विधि के अनुसार स्नान करना । माघ स्नान के मन दःख दारिद्रय नाशाय श्री विष्णास्नागणाय च । प्रातः स्नान कराम्यद्य मात्र पापविनाशनमं ।।३।। मकरस्थ रखी माघ गोविन्दान्युन माधव । स्नाननानन मदेव यथाक्तफलता भव ।।। सूर्य का अर्ध देने का मत्र सवित्र प्रसविनच परन्धाम जले मम त्वतेजसा परिभ्रष्ट पापं यातु सहस्रधा । माघ स्नान का समय ठीक सूर्य उदय हान के पाछ परतु किमा का मत है कि अरुणाय म नहाना । जा माग मात्र न नहाया जाय सकै तो तीन दिन नहाना । मकर संक्रानि रथसप्तमी और माधी पुनम य नान दिन । या माघ वदी तरस चौदस, अमावस । था मात्र मृदा सभा कादगा. दातमा वा संक्रांति के पाटनीन दिन । पर मुख्य नीन दिन तरस से अमावस तक हा है । माघ नहाकर उसी समय आग नहीं तापना । तिन में मीठा मिलाकर दान करना और उसी का होम करना, तिल से तर्पण करना, तिल देना और तिल साना । अमला, तल, लकड़ा कम्मल, एक रत्ती सोना और का? तथा वृता के ना? ब्राह्मणों का दना । जब माप स्नान समान हा उस दिन घी निल मोठा का हाम कर इस मंत्र से मृय की प्रार्थना करनी । दिवाकर जगन्नाथ ग्रभाकर नमास्तन । परिपूर्ण करूप्वह माघम्नानमः पल ।। माघ में मकर संक्राति म स्नान करके वस्त्र और तिन धन दान करना । मात्र की अमावस्या का मौन स्नान करना । इस दिन जा सामवार या मंगल हो तो पुण्य विशेष है । अमावस्या यदि रविवार का हा और उस दिन अवण वा अश्विनी वा धनिष्ठा वा आर्द्रा वा अश्लषा वा मृगशिरा नक्षत्र हो ता भी बड़ा फल है । मात्र बना । को गणशपूजन । माघ वदी १४ का यम नर्पण करना । माघ मही ४ का दृढिराब का व्रत और पूजन करना । मात्र मुटी ५ श्री पंचमी है. इस दिन कद के फूल से लक्ष्मी की पूजा करनी और नए अंकर तथा नई बार में कामदेव की पूजा करनी । माघ मदा ५ रथसप्तमी है । इमाम प्राणायम स्नान का वड़ा पण्य है । ऊम स बल हिलाकर धतूर के सात पने सिर पर रगकर इन मंत्रा स नहाना । गद्यःजन्मकृतं पापं मय जन्ममुसाजस्। लन्मरागंचशाकंच माकरी हन्नु सप्तमी ।।१।। एतजन्मकृत पापम यञ्चजन्मानार्जनम । 40*4 भारतन्द समग्र ८४२