पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८८७

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मनोवाक्कायज यञ्च जाताज्ञातेच येपुन: ।।२।। इतिसप्तविधपापम् स्नानान्मे सप्त सप्तिके । सप्तव्याधि समायुक्तम् हर माकरिसप्तमि ।।३।। स्नान के समय कुसुम मिली बत्ती का दिया सिर पर ऊँचा करके मंत्र से जल में सूर्य को दे । नमस्ते रुद्ररूपाय रसानाम्पतये नम: । वरुणाय नमस्तेस्तु हरिवास नमोस्तुते ।।४।। चंदन से अष्टदल लिखकर बीच में प्रणव सहित शिव पार्वती लिखकर क्रम से इन नामों से कमल के पत्तों पर सूरज की पूजा करै । रवयेनम :, भानवेनम :, विवस्वतेनम:, भास्करायनम :, सवित्रेनम :, अयिनम :, सहसकिरायनम : । सोने के सूर्य तिल पात्र में रख कर ब्राह्मण को दे और इस मंत्र से सूर्य अर्घ्य दे। सप्त सप्तिवहप्रीत सप्तलोकप्रदीपन । सप्तमी सहितो देव गृहाणायं दिवाकर ।।५।। जननी सर्वलोकानां सप्तमीसप्त सप्तिके । सप्तव्याहृतिकेदेवि नमस्ते सूर्यमंडले ।।६।। सोने का कनफूल वा सोने का दिया और सोने का न हो सके तो तिल के आटे का बनाकर तामे के पात्र में तिल गुड़ धी समेत लाल कपड़े में समेट कर इस मंत्र से दान करै । आदित्यस्य प्रसादेन प्रात: स्नान फलेनच । दुष्टदौर्भाग्यदु :खघ्नं मयादत्तं तुतालकम् ।।७।। यही सप्तमी मन्वादि भी है । इसी सप्तमी को रथदान का बड़ा फल है । माघ सुदी अष्टमी का तिल लेकर भीष्म तर्पण करना । मंत्र- भीष्म : शान्तनबो वीरस्सत्यवादी जितेन्द्रिय: । आभिरदिभरवाप्नोतु पुत्र पौत्रोचितांक्रियाम् ।।८।। वैयाघ्रपद गोत्राय सांकृत्यप्रवराय च । अपुत्राय ददाम्येतज्जलम्भीष्मायवर्मणो ।।९।। वसूनामवताराय शन्तनोरात्मजायच । अध्यं ददामि भीष्माय आबालब्रह्मचारिणो ।।१०।। यह तर्पण जिसका पिता जीता हो वह भी अपसव्य से करै । माघ सुदी द्वादशी का नाम भीम द्वादशी है । माघ की पूनम को स्नान का बड़ा पुण्य है । जो मेष के शनैश्चर और गुरु चंद्रमा सिंह के और सूर्य श्रवण नक्षत्र में हो तो महामाघी होती है। इति प्रानपियारे प्रमनिधि, प्रमिन-जीवन-प्रान । तिनके पद अरपन कियो, माघ नहान विधान ।। द्वादश्यां पुराण निषेधः । पाने सप्ताह-माहात्म्ये कुमार-नारद-सम्वाद : नित्यायाञ्च कथायान्तु पुराणानाम्मुनीश्वर । द्वादशीम्वर्जयेत् प्राज्ञस्सूत सूतक संभवात् ।।१।। श्रीमद्भागवतस्यापि सप्ताहे नैत्यिकेपिच । न निषेधोस्ति देवर्षे प्राहुरेवम्पुराविदः ।।२।। श्री भागवत सप्ताहो महायज्ञः स्मृतोबुधैः । आषाढ़ शुक्लाद्वादश्याम्पारणाहनिपार्वति ।।३।। पूर्वार्द्ध यामवेलायाम्भावित्वात्कृष्णमायया । मुग्धोदर्भकरो रामआहग्ल्लोमहर्षमिति ।। पौराणिकैजें यम् Robe 56 माघस्नान विधि ८४३