पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८८८

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WO वृहन्नारदीय पुराण से सगृहीत पुरुषोत्तममास-विधान 'तत्कर्महरितोषं यत् सा विद्या तन्मतिर्यया' सन् १८७२ में लिखी गयी है। सत्तौर पुस्तक सन् १८७३ में छपी। इस किताब में 'अधिक मास का माहात्म्य है, इसमें कहीं कहीं पुराणों के बाक्य भी उछत हैं। पहले इसी में पुरुषोत्तम पंचक भी था। बाद की ग्रंथावली में उसे अलगाया गया है। सं. पुरुषोत्तममास विधान मृगमद मुद्रित चार कपोलम् । भृग मद मोचन लोचन लोलम् ।। मृगमद मेचक सुन्दर रूपम् । नौमि हरिं वृन्दावन भूपम् ।।१।। दोहा। चरण-शरण रह आय । भय एक दिन भगवान नारद त्री पुरुषोत्तम-राधिका कटि जैसे भवभोग रोग कुसोग बलाय ।।१।। जिन पुरुषोत्तम नाम सुभ, सहस कहे रचि गाय । सो पुरुषोतम बदन बपु. वल्लभ होहु सहाय ।।२।। पुरुषोत्तम-पद जुग सुमिरि, धरि हिय परम अनंद ! पुरुषोतम की विधि लिखी, पुरुषाधम हरिचंद ।।३।। एक समय अनेक देवर्षि, राजर्षि. शिष्य. प्रशिष्य समेत लोकोपकारशील स्वयम् तीधरूप तीर्थपाद चरणारविन्द मधुव्रत तीर्थ यात्रा के मिस नैमिषक्षेत्र में एकत्र हुए और वहाँ महाभागवत सूत पौराणिक भी आए । सूतजी से ऋषियों ने इस असार संसार के पार जाने का उपाय और श्री कृष्ण की लीला का प्रश्न किया । सूतजी बोले मैं अनेक तीर्थों में भ्रमण करता हुआ श्रीगंगाजी के किनारे भगवान श्री शुकदेव जी के मुखारविंद से श्री मदभागवत रूपी मधुर सुधारस का पान करके आया हूँ, जो आज्ञा हो वह कथा आप लोगों को सुनाऊँ । ऋषियों ने कहा सहज उपाय से भगवत-प्राप्ति का जो साधन हो वह कहिए । सूतजी बोले जी चारों ओर घूमते हुए बद्रिकाश्रम में भगवान नारायण के पास गए और यही प्रश्न किया कि भगवन् कलियुग के जीवों को स्वल्य साधन में भगवान की प्राप्ति का उपाय कहिय । यह सुनकर भगवान नारायण ने पुरुषोत्तम मास का माहात्म्य कहा । पांडवों को वन में अत्यंत कनेशित देखकर उनका दुस से छूटने हेतु भगवान श्री कृष्णचंद्र ने पुरुषोत्तम माहात्म्य सुनागा ! सब मासों के एक एक देवता नियत हैं, इससे जब पहले मलमास पड़ा तब उसका कोई देवता नहीं था और इस कारण लोग उसकी निन्दा करते थे । मलमास इस बात से अत्यंत दुखी होकर भगवान के पास गया और भगवान वैकुठनाथ उसको लेकर गोलोक में गए । पूर्ण परब्रह्म सच्चिदानन्द घन भगवान श्री कृष्णचंद्रमलमास का दुख सुनकर बोले मैं पुरुषोत्तम तेरा स्वामी हूँ अतएव तेरा नाम आज से पुरुषोत्तम मास होगा और सब मासों में तेरा फल विशेष होगा । जो साधन लोग कार्तिकादि पुण्य मासों से अनेक वर्ष में भी करके फल न पावेंगे. वह पुरुषोत्तम मास के थोड़े साधन में फल पावेंगे । भगवान श्रीकृष्ण धर्मराज जी से कहते है कि पूर्व जन्म में जब द्रोपदी मेधावी ऋषि की कन्या थी तब दुर्वासा ऋषि ने इसे पुरुषोतम मास का व्रत करने को कहा था परंतु स्त्री-बुद्धि से इसने पुरषोतम मास का अनादर किया और शिवजी का व्रत करके पाँच बेर पति मांगकर तुम पाँचों को पति पाया. परंतु पुरुषोत्तम के अनादर से बारहवर्ष की विपत्नि भोगनी पड़ी । सो तीन महीने पीछे पुरषोत्तम मास आनेवाला है. सो इसमें तुम लाग अवश्य व्रत करना। भारतेन्दु समग्र ८४४