पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८९

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21 जानत ही नहिं हों जग में किहि कों सबरे मिलि भाखत हैं सुख । चौंकत चैन को नाम सुने सपनेह्र न जानत भोगन को रुख । ऐसन सों 'हरिचंद' जू दर ही बैठनो का लखनो न भलो मुख । मो दुखिया के न पास रहौ उड़ि के न लगै तुमहू को कहूँ दुख ।८७ गरजे घन दौरि रहैं लपटाइ भुजा भरि के सुख पागी रहै । 'हरिचंद' जू भीजि रहैं हिय में मिलि पौन चलें मद जागी रहे। नभ दामिनी के दमके सतराइ छिपी पिय अंग सुहागी रहैं । बड़ भागिनी वेई अहैं बरसात मैं जे पिय-कंठ सो लागी रहैं ।८८ ऊधो पू सूधो गहो यह मारग ज्ञान की तेरे जहाँ गुदरी है। कोऊ नहीं सिख मानिहै या इक श्याम की प्रीति प्रतीति सरी है। ये बृजबाला सबै इक सी 'हरिचंद' जू मंडली ही विगरी है। एक जो होय तो ज्ञान सिखाइए कप ही में यहाँ भांग परी है ।८९ महाकज पुंजन में मिलि के बिहार कीने तहाँ बाँधि आसन समाधि समुझावै जिनि । जौन अंग लाग्यौ पिया अंगन में बार वार तापै कर धूर को रमाइबो बतावै जिनि । 'हरिचंद' जाही चख नित ही बिलोके श्याम ताहि मूंद योग को अयोग ध्यान लावै जिनि । जाही कान सुनी प्यार हरि की मधुर बातें हाहा ऊधो ताही काम अलख सुनावै जिनि ।९० कौन कहे इत आइए लालन पावस में तो दया उर लीजिए । को हम हैं कहा जोर हमारो है क्यों 'हरिचंद' वृथा हठ कीजिए । जो जिय में रुचै भेटिए ताहि दया करि कै तेहि को सुख दीजिए । कोरि ही कोरी भली हम हैं पिय भीजिए जू उनके रस भीजिए ।९१ सखि आयो बसंत रितून को कंत चहूँ दिसि फूलि रही सरसों । वर सीतल मंद सुगंध समीर सतावन हार भयो गर सों। अब सुंदर सांवरो नंदकिसोर कहै 'हरिनंद' गयो घर सो । परसों को बिताय दियो बरसों तरसों कब पाय पिया परसों ।१० आजु केलि-मंदिर सों निकसि नवेली ठाडो भौंर चारों ओर रहे गंध लोभि धार के । नैन अलसाने घूमें पटहु परे हैं भू में उर में प्रगट चिन्ह पिव कंठहार के । 'हरिचंद' सखिन सों केलि की कहानी कह रल में मसूसी रही आलस निवार के । साँचे में खरी सी परी सीसी उतरी सी खरी बाजूबंद बाँधै बाजू पार किवार के ।१३ साञ्चौ साज गाँव मिलि तीज के हिंडारना को तानि कै बितान खासो फरस बिछायो री । अवै मिलि गोपी तापें भीजि अँड झुंड काम छाप सी लगावे गावै गीत मन-भायो री । मोहिं जान पाछे परी देरी ते दया के 'हरीचंद अंक लेके लाल छिपि पहुँचायो री 1 जानि गई ताहु मैं नवाइनै गजब देखे पाय बिनु पंक के कलंक मोहि लायो री ।९४ खोरि सॉकरी मैं आजु विपि के बिहारी लाला तर पैं विराजें छल जिय अति कीनो है 1 ग्वाल-बाल साथ केह इत उत घाटिन में छिपे 'हरिचंद' दान हेतु चित दीनो है । ताही समैं गोपिन बिलोकि दि धाए सब ऊधम मचायो दुध दधि घृत छीनो है। दही जो गिरायो सो तो फेरहू जमाय लेहें मन कहाँ पैहैं दान-मिस जौन लीनो है।९५ लाज समाज निवारि सबै प्रन प्रेम को प्यारे पसारन दीजिये। जानन दीजिये लोगन को कुलटा करि मोहि पुकारन दीजिये। त्यों 'हरिचंद' सबै भय टारि के लालन घूघट टारन दीजिये । छाँडि संकोचन चंदमुखै भरि लोचन आजु निहारन दीजिये ।९६ पूरन पियूष प्रम आसव छकी हौ रोम रोम रस भीन्यो सुधि भूलि गेह गान की । लोक परलोक छाडि लाज सों बदन मोडि उपरि नची हौं तजि संक तात मात की प्रेम माधुरी ४९