पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८९४

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wayo गोवर्धनधरम बन्दे गोपालम गोपरूपिणम् । गोकुलोत्सवमीशानम् गोविन्दम् गोपिकाप्रियम् ।।१।। इस मंत्र का पुरुषोत्तम मास में बार बार जप करना । दोहा श्री पुरुषोत्तम पद सुमिरि, धारि हृदय आनंद । यह पुरुषोत्तम विधि लिखी, कविवर श्री हरिचंद ।।१।। प्रेन पियारे प्रेमनिधि, प्रमिन-जीवन-पान । तिनके पद अरपन कियो, यह मलमास-विधान ।।२।। इति श्री हन्नारदीय पुराण से संगृहीत पुरुषोत्तम माहात्म्य समाप्त हुआ। भक्तिसूत्र वैजयन्ती अर्थात श्रीशांडिल्य ऋषि के भक्ति के सौ सूत्रों पर भाषा भाष्य रचना काल सन् १८७३। यह पुस्तक हरिश्चन्द्र मैगजीन जि.१सं.१ सन् १८७४ में मूल और अर्थसहित छपी है। स. प्राणप्यारे! देखो, आज बसंत पंचमी है, इस से बहुत लोग आम के भौर वा फूलों के गुच्छे ले कर तुमको मिलने आबैंगे तो मैं भी एक फूलों की वैजयन्ती माला बनाकर लाया हूँ, अंगीकार करो; वैजयन्ती माला बनाने का यह हेतु है कि बनमाला होगी तो होली के खेल में अरुमैगी और इसके सिवाय इस वैजयन्ती से निश्चय करके ज्ञानादिक को जय करना है, पर प्यारे! बहुत सम्हल कर यह माला पहरना, टूट न जाय, क्योंकि सूत कच्चा है और कलियाँ ताजी और कोमल हैं, इससे कुम्हिलाने का भी भय है; जो हो, इस वसंत पंचमी को त्यौहारी मुझे यही दो कि इस सत्यानाशी अहं ब्रह्मवाद; को पूर्णरूप से नाश करके और भी सब बातों में इस नव वसंत में भारतवर्ष की सब आपत्तियों का बस अंत करो और अपने भक्तों के चित्त में प्रेम के नब पल्लव फिर से लहलहे करो, जो सदा एकरस रहै। माघ शु. ५ सं. १९३० काशी तुम्हारा हरिश्चंद्र भारतेन्दु समग्र ८५०